राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर दिल्ली की सत्ता के गलियारों में नेता कुछ भी कहते रहें, मगर असम के मुस्लिमों ने इस मुद्दे पर अपनी सोच बदल ली है।
खासतौर पर, दो नदी घाटी, एक बरक और दूसरी ब्रह्मपुत्र के क्षेत्र में पहले एनआरसी का विरोध देखने को मिला था। अब इन दोनों ही घाटियों में रहने वाला मुस्लिम समुदाय नागरिकता विधेयक के समर्थन में आ गया है।
लोग अब विरोध की बजाए दस्तावेज लेकर अपनी नागरिकता को पक्का बनाने के लिए संबंधित अधिकारियों से बहस करते नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में बोलते हुए बहुत खरे शब्दों में बता दिया कि एनआरसी पर उनकी सरकार दृढ़ है।
जहां इससे पहले राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान की रक्षा करते हुए नागरिकता अधिनियम में संशोधन करने का प्रयास किया जाएगा।
उन्होंने 17वीं लोकसभा के गठन के बाद अपने पारंपरिक वक्तव्य में कहा था कि मेरी सरकार ने घुसपैठ से प्रभावित क्षेत्रों में प्राथमिकता के आधार पर नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर की प्रक्रिया को लागू करने का फैसला किया है।
लेकिन असम के एनआरसी मसले पर गहरी जानकारी रखने वाले प्रोफेसर ज्योतिलाल चौधरी, जो कि सिलचर में रहते हैं, का कहना है, कई सारे युवाओं से जुडे संगठन इस बाबत लोगों की भावनाएं भड़काते रहे हैं। पिछले साल जब इस बिल पर चर्चा शुरू हुई तो ऐसे संगठनों ने मुस्लिमों को गुमराह कर दिया।
बिल को लेकर गलतफहमी पैदा करने का प्रयास किया गया। यहां तक कि असम के कुछ भागों में गलत आशंकाएं पैदा कर माहौल बिगाड़ने की निर्मूल कोशिश हुई।
देखा जाये तो लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसे बयान सामने आए। यहां बता दें कि बरक और ब्रह्मपुत्र घाटी में ही एनआरसी पर सबसे ज्यादा विरोधी स्वर सुनने को मिल रहे थे। बरक घाटी में तीन जिले पड़ते हैं। इनमें से दो जिले मुस्लिम बाहुल्य हैं। ब्रह्मपुत्र घाटी में तीस जिले शामिल हैं। यहां पर भी बड़े क्षेत्र में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी है। हालांकि तादाद हिन्दुओं की ज़्यादा है।
लोकसभा चुनाव से पहले सरकार ने एनआरसी को लेकर लोगों की सभी शंकाओं को दूर करने का प्रयास किया। उस वक्त असम सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय हैरान रह गया, जब यह खुफिया इनपुट मिला कि बरक और ब्रह्मपुत्र घाटी में बड़े पैमाने पर एएएमएसयू और दूसरे कई संगठन धार्मिक भावनाएं भड़का कर दंगे जैसे हालात पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं।
ये लोग सच्चाई से विपरीत बातें लोगों के जेहन में डालने लगे। असम की सोनोवाल सरकार ने गृह मंत्रालय की मदद से तुरंत इस पर काबू पा लिया। लोगों को खुलकर हर बात बताई गई। लोग समझ गए कि नागरिकता विधेयक उनके अहित में नहीं है।
उन्होंने सरकार की बात मानी, पंचायत चुनाव में भाजपा को जिताकर इसका प्रमाण भी दे दिया। विरोध करने वाले चारों खाने चित हो गए। रही सही कसर लोकसभा चुनाव में पूरी हो गई। 14 लोकसभा सीटों में से भाजपा को नौ सीटें मिल गई।
बरक में दो और ब्रह्मपुत्र घाटी में सात सीटें मिलने का मतलब लोगों ने एनआरसी पर मोदी सरकार के साथ चलने की मंशा जताई है। यही नहीं, एनआरसी को अप्डेट करने की तिथि छह माह के लिए आगे बढ़ाना और जेपीसी की सकारात्मक रिपोर्ट, इन सब ने सरकार की राह और आसान कर दी।
दरअसल 1.02 लाख लोगों को असम के लिए बने ड्राफ्ट नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स से हटा दिया गया है। हटाए जाने वाले इन अतिरिक्त नामों वाली यह सूची बुधवार को जारी की गई है।
देखा जाये तो ये नाम पिछले साल जुलाई में प्रकाशित ड्राफ्ट नागरिक सूची में शामिल थे, लेकिन इन्हें बाद में जांच के दौरान अयोग्य पाया गया है। लिस्ट में जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, उन्हें व्यक्तिगत रूप से उनके आवासीय पतों पर पत्र भेजकर सूचित किया जाएगा।
ऐसे लोग निर्धारित एनआरसी सहायता केंद्रों पर 11 जुलाई तक अपने दावे दाखिल कर सकेंगे। 30 जुलाई, 2018 को जब एनआरसी ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया तो 40.7 लाख लोगों के नाम हटाए जाने को लेकर काफी विवाद हुआ था। कुल 3.29 करोड़ लोगों में से ड्राफ्ट में सिर्फ 2.9 करोड़ नाम शामिल किए गए थे। अब सारा रिकार्ड सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट किया जा रहा है।