
मौजूदा आम चुनावों के दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश के सियासी संग्राम पर सबकी निगाह है। यहां जातिगत समीकरण सपा-बसपा गठबंधन के पक्ष में नजर आते हैं लेकिन मोदी-फैक्टर, विकास कार्य और जातिगत समीकरणों में सेंध की वजह से हर सीट पर भाजपा मजबूत स्थिति में है। वहीं कांग्रेस ने भले ही प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाकर चुनाव को तिकोना बनाने की कोशिश की, लेकिन दो-तीन सीटों को छोड़कर कांग्रेस कहीं भी लड़ती नहीं दिखाई दे रही है।
अंतिम दो चरणों में पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिन 27 सीटों पर चुनाव हुए, इनमें से 26 सीटें पिछले चुनाव में भाजपा ने जीती थीं। केवल आजमगढ़ सीट सपा के खाते में गई थी। इन्हीं 27 सीटों में से 16 सीटें ऐसी थीं, जहां सपा-बसपा को पिछले चुनाव में मिले वोटों का योग भाजपा के विजयी उम्मीदवार को मिले वोट से ज्यादा है। इस बार गठबंधन के रणनीतिकारों की उम्मीद इसी पर टिकी है कि यदि सपा या बसपा अपने वोट दूसरे दल के उम्मीदवार को ट्रांसफर कराने में सफल रहे तो, सीधे—सीधे अंकगणित के अनुसार भाजपा इस क्षेत्र में महज 11 सीटों पर सिमट सकती है।
लेकिन, जमीनी हकीकत यह भी है कि चुनाव महज अंकगणित से नहीं लड़े जाते। उसमें रणनीति और केमिस्ट्री का ज्यादा योगदान होता है। और गठबंधन के जातीय अंकगणित के बावजूद भाजपा को इन्हीं के बूते अपनी जीत का भरोसा है।
भाजपा ने इन सीटों को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। खासतौर पर अंतिम चरण की तेरह सीटों के लिए। इनके पूर्वी सिरे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट गोरखपुर है तो पश्चिमी छोर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट वाराणसी। उनके अलावा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का फोकस भी पश्चिम बंगाल के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश पर ही रहा। पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनाव समाप्त होने तक मोदी ने लगभग पंद्रह रैलियों को संबोधित किया।
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वहीं योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में डेरा डालकर आसपास की सभी सीटों को जिताने की जिम्मेदारी उठाई। भाजपा का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी सीट से बने माहौल की वजह से क्षेत्र की सभी 13 सीटों पर उसे लाभ होगा। साथ ही कई केंद्रीय मंत्री और हैवीवेट भाजपा नेताओं को भी पूर्वी उत्तर प्रदेश की अलग-अलग सीटों की जिम्मेदारी दी गई है।
गैर-यादव पिछड़े, गैर-जाटव दलितों में पैठ की नीति
– भाजपा की रणनीति गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों मे पैठ बनाने की है। यही वे वर्ग हैं जिन्हें केंद्र सरकार की योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ हुआ है। चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मुफ्त मकान मिलना हो, उज्ज्वला के तहत एलपीजी कनेक्शन या शौचालय। पार्टी कार्यकर्ता इन समुदायों में एक-एक व्यक्ति के घर जाकर सघन प्रचार कर रहे हैं।
– यही वजह है कि आजमगढ़ जैसी यादव-मुस्लिम बाहुल्य वाली सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के मुकाबले खड़े भोजपुरी कलाकार निरहुआ भी भाजपा की रणनीति और केमिस्ट्री की वजह से दम भर रहे हैं। पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद मुलायम सिंह यादव ने यहां लगभग 63 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी।
– इसी तरह, गाजीपुर में केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा बसपा के अफजाल अंसारी से मुकाबले में जातिगत समीकरण खिलाफ होने के बावजूद अच्छा चुनाव लड़ रहे हैं। अफजाल का दावा है कि यादव, दलित और मुसलमान मिलाकर क्षेत्र के मतदाताओं का 55 प्रतिशत हो जाते हैं और उनकी जीत सुनिश्चित है। लेकिन सिन्हा ने अन्य पिछड़ी जातियों, दलितों ही नहीं बल्कि यादवों में भी सेंध लगाई है। उनकी सभाओं में कुछ मुसलमान भी दिखाई देते हैं। उनके द्वारा अपने क्षेत्र में कराए कार्यों की वजह से उन्हें सभी जातियों में कुछ न कुछ समर्थन मिल रहा है।
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हालांकि पूर्वांचल में ये चुनाव गठबंधन और भाजपा के बीच है लेकिन, कुछ छोटे दल भी इन्हें प्रभावित कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में पीस पार्टी, कौमी एकता दल, भारतीय समाज सुहेलदेव पार्टी, महान दल जैसी पार्टियों ने कुछ इलाकों में जड़ें जमाने में सफलता पाई है। इस चुनाव में शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) भी मैदान में है, प्रसपा का समझौता पीस पार्टी के साथ है।
पीस पार्टी के उम्मीदवार को गत चुनाव में डुमरियागंज में एक लाख वोट मिले थे। जबकि बसपा के साथ इस बार गठबंधन कर चुके कौमी एकता दल ने घोसी और बलिया में डेढ़ लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे। इसके अलावा भारतीय समाज सुहेलदेव पार्टी के ओमप्रकाश राजभर को सलेमपुर सीट पर 66 हजार वोट मिले थे। इस बार राजभर ने 30 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं और वे भाजपा के खिलाफ जमकर प्रचार कर रहे हैं। महान दल का कांग्रेस के साथ तालमेल हुआ है।
प्रियंका के बयान से गफलत
पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने कई मजबूत उम्मीदवार उतारे। संत कबीर नगर से पूर्व सांसद भालचंद्र यादव, कुशीनगर से आरपीएन सिंह, चंदौली से शिवकन्या कुशवाहा, मिर्जापुर से ललितेश पति त्रिपाठी, देवरिया से नियाज अहमद और घोसी से बालाकृष्ण चौहान आदि। लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी के एक बयान से उलझन की स्थिति की रिपोर्ट हैं। प्रियंका ने कहा था कि कांग्रेस जहां जीतने की स्थिति में नहीं है, वहां उसने ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं जो भाजपा के वोट काट दें। इसके बाद तो कांग्रेस के उम्मीदवारों को वोटकटवा कहा गया। कुछ जगहों से ऐसी रिपोर्ट भी हैं कि इसके बाद उनके समर्थक कांग्रेस के बजाए गठबंधन के लिए काम करने लगे।