पुराणों के अनुसार इस समय खत्म हो जायेंगे ये प्रसिद्ध मंदिर, इनके साथ ही हो जायेगा पूरी दुनिया का अंत

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम हिंदू धर्म का सबस महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। उत्तराखंड के हिमालय में केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

इस प्रसिद्ध तिर्थ के बारे में कहा जाता है की यहां आने वाले हर मनुष्य को स्वर्ग के समान अनुभूती होती है। लेकिन क्या आपको पता है केदारनाथ धाम से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।

पुराणों के अनुसार इस समय खत्म हो जायेंगे ये प्रसिद्ध मंदिर,

इस मंदिर में कई रहस्य ऐसे है जिनके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। केदारेश्वर मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा था, आइए जानते हैं इससे जुड़े कुछ अन्य रहस्यों के बारे में…

तीन पहाड़ो के बीच केदारेश्वर धाम स्थित है। केदारेश्वर धाम के एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदार, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड का पहाड़ है।

सिर्फ यही नहीं यहां 5 नदियों का संगम भी है, मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी का महासंगम है। इन नदियों में अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी के किनारे है केदारेश्वर धाम। बसा हुआ है।

पुराणों की भविष्यवाणी के अनुसार इस समूचे क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा और भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे।

पुराणों के अनुसार वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में ‘भविष्यबद्री’ नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।

400 सालों तक कैसे बर्फ में दबा रहा केदारनाथ का मंदिर और जब बर्फ से बाहर निकला तो पूर्णत: सुरक्षित था। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट के हिमालयन जियोलॉजिकल वैज्ञानिक विजय जोशी के अनुसार 13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था।

उसमें यह मंदिर क्षेत्र भी था। वैज्ञानिकों के अनुसार मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी इसके निशान देखे जा सकते हैं।

केदारेश्वर मंदिर भूरे रंग के विशाल कटवां पत्थर और मजबूत शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। मंदिर का चबूतरा 6 फुट ऊंचा है और इस पर 85 फुट ऊंचे, 187 फुट लंबे और 80 फुट चौड़े खंभे हैं।

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मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी हैं। आश्चर्य की बात तो यह है की इतने भारी पत्थरों से मंदिर का रुप कैसे दिया गया होगा। मंदिर की छत खंभों पर रखी गई है, इसमें भी आश्चर्य है की कैसे इतने विशालकाय मंदिर की धत खंभों पर रखी गई है।

पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

मंदिर सबसे पहले पांडवों द्वार बनवाया गया था, लेकिन किन्हीं कारणों से यह मंदिर लुप्त हो गया था। इसके बाद मंदिर का निर्माण 508 ईसा पूर्व जन्मे और 476 ईसा पूर्व देहत्याग गए आदिशंकराचार्य ने करवाया था।

कहा जाता है मंदिर के पीछे ही आदिशंकराचार्य की समाधि बनाई गई है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। पहले 10वीं सदी में मालवा के राजा भोज द्वारा और फिर 13वीं सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।

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