गाँधी की हत्या से जुड़ा ऐसा सच, जो अभी तक था परदे के पीछे…आप भी जान लें…

देखा जाए तो गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 फरवरी 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया माधव सदाशिव गोलवलकर ऊर्फ गुरुजी को गिरफ़्तार करवाने के बाद आरएसएस समेत कई हिंदूवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था।

लेकिन गांधी की हत्या में संघ की संलिप्तता का कोई प्रमाण न मिलने पर छह महीने बाद 5 अगस्त 1948 को गुरु जी रिहा कर दिए गए थे,  और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने संघ को क्लीनचिट देते हुए 11 जुलाई 1949 को उस पर लगे प्रतिबंध को उठाने की घोषणा की थी।

दरअसल, क़रीब डेढ़ साल हुई जांच पड़ताल के बाद सरदार पटेल ने भी माना था कि गांधी जी की हत्या में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं, क्योंकि नाथूराम गोडसे ने हत्या का आरोप अकेले अपने ऊपर ले लिया था।

महात्मा गाँधी

पिछली कांग्रेस सरकार के शासनकाल में हुए कई घोटालों को उजागर करने वाले सुब्रमण्यम स्वामी के सवाल को एकदम से ख़ारिज़ भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि वाक़ई हत्या के बाद महात्मा गांधी की लाश का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था, इससे आधिकारिक तौर पर पता नहीं चल सका कि आख़िर हत्यारे नाथूराम ने उन पर कितनी गोलियां चलाई थीं।

हालांकि गोडसे ने अपने बयान में कहा था कि वह गांधी जी पर दो ही गोली चलाना चाहता था, लेकिन तीन गोली चल गई, जबकि कई लोग दावा कर रहे थे कि उसकी रिवॉल्वर से तीन नहीं, कुल चार गोलियां चली थीं।

बहरहाल, गोली लगने के बाद महात्मा गांधी को घायल अवस्था में किसी अस्पताल नहीं ले जाया गया, बल्कि उन्हें वहीं घटनास्थल पर ही मृत घोषित कर दिया गया और उनका शव उनके आवास बिरला हाऊस में रखा गया।

जबकि क़ानूनन जब भी किसी व्यक्ति पर गोलीबारी होती है, और उसमें उसे गोली लगती है, तब सबसे पहले उसे पास के अस्पताल ले जाया जाता है और वहां मौजूद डॉक्टर ही बॉडी का परिक्षण करने के बाद उसे ‘ऑन एडमिशन’ या ‘आफ्टर एडमिशन’ मृत घोषित करते हैं।

दरअसल, गांधी की हत्या से जुड़े हर पहलू को नेहरू की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने अनावश्यक रूप से रहस्यमय बना दिया। देश के लोग आज तक ढेर सारे बिंदुओं से अनजान है।

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गांधी की हत्या क़रीब सात दशक से पहेली बनी हुई है। यहां तक कि गांधी के जीवन के निगेटिव पहलुओं को उकेरते हुए जितनी भी किताबें छपती थीं, सब पर सरकार की ओर से प्रतिबंध लगा दिया जाता था, जिससे बाद में लेखक-प्रकाशक कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाते थे और कोर्ट के आदेश के बाद वह प्रतिबंध हटता था।

गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे ने अपने इकबालिया बयान में साफ़-साफ़ कहा था कि गांधी की हत्या केवल उसने (गोडसे ने) ही की है। इसमें कोई न तो शामिल है और न ही कोई साज़िश रची गई।

गांधी की हत्या के लिए ख़ुद गोडसे ने माना था कि उसने एक इंसान की हत्या की है, इसलिए उसे फांसी मिलनी चाहिए।

इसी आधार पर गोड्से ने जज आत्माचरण के फांसी देने के फ़ैसले के ख़िलाफ अपील ही नहीं की।

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उसने हाईकोर्ट में अपील केवल हत्या का साज़िश करार देने के पुलिस के फ़ैसले के ख़िलाफ़ की थी।

देश के विभाजन के लिए गांधी को ज़िम्मेदार माननेे वाला नाथूराम चाहताा था कि गांधीवाद के पैरोकार उनसे गांधीवाद पर चर्चा करें, ताकि वह साबित कर सके कि गांधीवाद से देश का कितना नुक़सान हुआ।

गांधी की हत्या के बाद नाथूराम को पहले दिन तुगलक रोड पुलिस स्टेशन के हवालात में रखा गया था।

उस समय गांधी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी, गोडसे से मिलने गए थे।

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