
दुनिया में आए हर जीव को कभी न कभी मौत का सामना जरुर करना पड़ता है। इससे ना तो आज तक कोई बच पाया है और ना ही आगे ऐसा होगा।
जिंदगी भर इंसान पैसे, शानों-शौकत के चक्कर में इधर से उधर भागता रहता है, छल-कपट का सहारा लेता है, लेकिन मृत्यु के बाद उसे सबकुछ संसार में ही छोड़कर ऊपर जाना पड़ता है।
साथ केवल अच्छे कर्म ही जाता है जिसके आधार पर उसे नया जन्म मिलता है।
एक और चीज इस राह में इंसान का साथ देता है और वह है ‘राम नाम।’ आप सभी ने ऐसा देखा होगा कि, हिंदुओं में जब शव को ले जाया जाता है तो लोग रास्ते भर राम नाम सत्य है बोलते जाते हैं।
क्या आपको पता है कि, ऐसा क्यों किया जाता है? इसके पीछे कारण क्या है? आज हम आपको इसी बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
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सबसे पहले बता दें, इस बात का उल्लेख महाभारत काल में पांडवों के सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक के जरिए किया था।
‘अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम्। शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम्।।’
यानि कि,मृतक को श्मशान ले जाते समय सभी ‘राम नाम सत्य है’ कहते हैं परंतु शवदाह करने के बाद घर लौटते ही सभी इस राम नाम को भूलकर फिर से माया मोह में लिप्त हो जाते हैं।
लोग मृतक के पैसे, घर इत्यादि के बंटवारे को लेकर चिन्तित हो जाते हैं। इसी सम्पत्ति को लेकर वे आपस में लड़ने-भिड़ने लगते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर आगे कहते हैं कि, “नित्य ही प्राणी मरते हैं, लेकिन अन्त में परिजन सम्पत्ति को ही चाहते हैं इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य होगा?”
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‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है’ बोलने का मतलब मृतक को सुनाना नहीं होता है बल्कि इसे कहने का उद्देश्य साथ में साथ में चल रहे परिजन, मित्रों को केवल यह समझाना होता है कि जिंदगी में और जिंदगी के बाद भी केवल राम नाम ही सत्य है बाकी सब व्यर्थ है।
एकदिन सबकुछ यहीं छोड़कर जाना है। साथ में सिर्फ हमारा कर्म ही जाता है। आत्मा को गति सिर्फ और सिर्फ राम नाम से ही मिलेगी।