दिनों-दिन तेजी से स्किन से संबंधित बीमारी फैलती ही जा रही है। स्किन से संबंधित बीमारी ज्यादातर शरीर में पाई जाने वाली लाल रक्त कोशिकाओं के स्तर में गुरावत के कारण होती है। यब समस्याएं पहले तो बहुत ही आसान नजर आती है लेकिन जब यह बीमारी बढ़ती जाती है तो यह समस्या कब भयानक रूप ले लेती ही पता ही नहीं चलता है। ऐसी ही एक स्किन डर्माटिलोमेनिया स्किन पिकिंग डिसऑर्डर या एसपीडी कहते हैं।
इस बीमारी में फंसा हुआ व्यक्ति बार-बार अपनी स्किन को छूता है, रगडता है, खरोंचता है, नोचता है और साथ ही उसे बाहर निकाल कर भी फेंकता है। यह समस्या अचानक नहीं धीरे-धीरे अपनी चरम तक पहुंचती है। इस बीमारी से स्किन की रंगत पर भी प्रभाव पड़ता है।
इन्फेक्शन
जब लगातार एक स्थान पर बार-बार स्किन को काटा जाता है तो वहां पर स्किन को इन्फेक्शन का खतरा बढा जाता है। क्योंकि कई लोग स्किन को निकालने के लिए नुकीली चीज का भी इस्तेमाल करने से नहीं कटराते हैं। इससे स्किन टिशूज के डैमेज होने का खतरा कई गुना बढ़ा जाता है। इस बीमारी का प्रभाव केवल स्किन तक ही सीमित नहीं रहता है यह समस्या दिमाग तक भी इस तरह से घर कर जाती है इसके लोगों का व्यवहार शर्मिंदगी वाला भी हो जाता है। इस रोग से ग्रसित लोग आत्महत्या तक करने की कोशिश करते हैं।
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खुद को पहुंचा सकते हैं नुकसान
यह एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति खुद की त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। घबराहट, डर, उत्साह और बोरियत जैसी स्थितियों से निपटने के लिए भी लोग इस तरह के व्यवहार का सहारा लेते हैं। यह लगातार और जुनून में किया जाने वाला व्यवहार होता है जिसकी वजह से त्वचा के टिशूज को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। कई शोधों में यह बात सामने आई है कि डर्माटिलोमेनिया ट्रिचोटिलेमेनिया यानी अपने ही बालों को खिंचने की समस्या से मिलती-जुलती है।
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बिहेवियरल थैरेपी
डर्माटिलोमेनिया के लिए कॉग्नेटिव बिहेवियरल थैरेपी मददगार होती है। इस थैरेपी की मदद से स्किन पिकिंग की आदत को छुड़ाने में मदद मिलती है। ऐसा करने के लिए उत्सुक होने से रोकने के लिए एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं भी रोगी को दी जाती हैं। अपने परिवार या मित्रों के सपोर्ट से भी इस समस्या से निजात पा सकते हैं।