
आधुनिक युग में यदि समाज की बात की जाए तो इसका निर्माण दो पैरो वाले जीव यानी इंसानो से होती है। इंसानों को मुख्यता स्त्री और पुरुष(लिंग) के आधार पर पहचाना जाता है। प्राचीन समय से विज्ञान और मनोविज्ञान में इस बात का जिक्र किया जाता रहा है कि इंसान इस बात को जानने की कोशिश में लगा रहता है कि आखिर दोनों लिंग यानी स्त्री और पुरुष में क्या भिन्नता है और यदि भिन्नता है तो क्यों?
इस बात का जवाब दे पाना बहुत ही जटिल है। आम तौर पर लोग कहते हैं कि ये कुदरत की देन है या ईश्वर ने हमे ऐसा बनाया है।
वहीं इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि लिंग भेद के कारण ही एक दूसरे के प्रति स्त्री और पुरुष एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करते है। लेकिन विज्ञान ने इस बात की गहराई में जाकर जीन के आधार पर इसे समझाने की कोशिश की है।
सालों की माथापच्ची के बाद हाल ही में शोधकर्ताओं द्वारा एक निष्कर्ष निकाला गया, जिसमें इस बात को उजागर किया गया कि जीन अध्ययन में 6500 जीन सामने आए जो स्त्री और पुरुष में भिन्न होते है। साथ ही लिंग के आधार पर ही इंसान पर अपना सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
इस बात को हम कुछ इस तरह से कह सकते हैं कि एक जीन जो पुरुषों के लाभकारी साबित होता हुआ दिखाई देता है, वही जीन महिलाओं में विरोधात्मक प्रभाव परिलक्षित करते हैं।
बता दें यह शोध वंशानुगति के साथ आने वाले बदलाव और घटती प्रतिरोधक क्षमता को सुधारने के विचार से किया गया।
इस शोध की शुरुआत Weizmann Institute’s Molecular Genetics Department की ओर से शोधकर्ता प्रोफेसर शेमुएल पेट्रोएटवोस्की और डॉ मोरान ने की।
शोधकर्ताओं ने इस दौरान करीब 20 हजार जीन पर रिसर्च की और पाया कि करीब 20 हजार जीन स्त्री और पुरुष में भिन्न तरह से परिलक्षित होते हैं।
शोध के दौरान उन्होंने यह भी पाया कि आज के दौर में करीब 15 प्रतिशत जोड़े आज के दौर में संतान सुख पाने की प्रयासरत हैं और संतान न प्राप्त कर पाने के दुःख से परेशान हैं। यह आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, जिसका असर उन पर भौतिक और मानसिक रूप से देखा जाता है।
शोधकर्ताओं ने इस बात को साफ़ किया कि जीनअध्ययन को यदि गहराई से देखें तो हम जानेंगे कि ये समस्या महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा है।
इसे इस तरीके से भी समझा जा सकता है कि संतान पैदा करने के मामले में स्त्रियों में इसकी क्षमता सीमित है, जबकि पुरुष इस मामले में कहीं आगे निकल जाते हैं।
यानी महिलाएं अपनी अगली पीढ़ी में अत्याधित प्रभावी गुण स्थान्तरित कर पाती हैं, बजाय पुरुषों के। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि पुरुष इस मामले में कमजोर जान पड़ते हैं। यानी आने वाली पीढ़ी में पुरुष अच्छी नस्ल दे पाने में समर्थ नहीं रह पाते।
इसी शोध के आधार पर शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला की इंसानो के बेहतर स्वास्थ्य के लिए तथा उनके इलाज में भिन्नता जरूरी है। इसी के जरिए ज्यादा बेहतर तरीके से उनमें व्याप्त खामियों को दूर किया जा सकता है।