
आज 26 नवंबर 2025 है। ठीक 17 साल पहले 2008 की इसी तारीख को रात 8 बजकर 50 मिनट पर मुंबई की सड़कों पर मौत का तांडव शुरू हुआ था। लश्कर-ए-तैयबा के दस फिदायीन आतंकियों ने समुद्र के रास्ते शहर में घुसकर ताज महल पैलेस, ओबेरॉय ट्राइडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, नरीमन हाउस, लियोपोल्ड कैफे और कामा अस्पताल को एक साथ निशाना बनाया। साठ घंटे तक चले इस नरसंहार में 166 मासूमों की जान चली गई और तीन सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए।
कराची से निकले ये आतंकी भारतीय मछली पकड़ने वाली नाव कुबेर को हाईजैक करके कोलाबा तट पर उतरे। हर आतंकी के पास एके-47, सैकड़ों गोलियां, हैंड ग्रेनेड, आरडीएक्स और जीपीएस था। पाकिस्तान में बैठे उनके हैंडलर हर पल लाइव निर्देश दे रहे थे। डेविड हेडली ने पहले मुंबई की रेकी की थी। खुफिया एजेंसियों ने चेतावनी भी दी थी, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।
सीएसटी पर अजमल कसाब और इस्माइल खान ने प्लेटफॉर्म पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। ताज और ओबेरॉय में सैकड़ों मेहमान बंधक बना लिए गए। नरीमन हाउस में यहूदी परिवारों को निशाना बनाया गया। एटीएस चीफ हेमंत करकरे, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, एसीपी अशोक कामटे, इंस्पेक्टर विजय सालस्कर समेत अठारह बहादुर पुलिसकर्मी शहीद हो गए। तुकाराम ओंबले ने अकेले कसाब को जिंदा पकड़ लिया और अपनी जान कुर्बान कर दी। ताज के कर्मचारी करमबीर कंग और उनके साथियों ने सैकड़ों मेहमानों को जलती इमारत से सुरक्षित निकाला।
साठ घंटे की लड़ाई में एनएसजी ने नौ आतंकियों को मार गिराया। एकमात्र जिंदा पकड़ा गया कसाब 2012 में फांसी पर लटकाया गया। लेकिन इस हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी आज भी पाकिस्तान में आजाद घूम रहे हैं।
सत्रह साल बाद भी ताज की दीवारों पर गोलियों के निशान और जलने की गंध उस काली रात की याद दिलाते हैं। आज पूरा देश उन 166 शहीदों और अनगिनत नायकों को सलाम करता है जिन्होंने मुंबई की जान बचाई।





