
मां बनना किसी भी महिला के लिए दुनिया का सबसे सुखद अहसास होता है। आज हर कोई चाहता है बच्चा जाहे लड़का हो य लड़की जो भी हो पर स्वस्थ्य हो। प्रेग्नेंसी के वक्त महिला के शरीर में हार्मोन को बदलाव होता रहता है। जिस कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। आइये जानते हैं वो कौन सी परेशानियां है जिनका आपको प्रेग्नेंसी के दौरान काफी ध्यान देना होगा। साथ ही जानते हैं उनके बचाव के उपाय।
पैरों और कमर में दर्द
प्रेग्नेंसी के वक्त महिलाओं में पैरों में दर्द, सूजन जैसी आम समस्या है। कई बार से दर्द काफी हद तक बढ़ जाता है। कभी-कभी ये दर्द शरीर के बाकी हिस्सों को भी अपनी चपेट में ले लेता है। इसका काफी असर रीढ़ की हड्डी पर भी पड़ता है। जिस वजह से रीढ़ की हड्डी के नीचे दर्द होता है।
बचाव-
एक ही दिशा में लगातार काम करने से बचे। बहुत देर तक बैठे य खड़े न रहें। ऑफिस य घर में काम करते वक्त पैरों को जमीन पर न टिकाएं। लेटते वक्त पैरों के नीचे तकिया रखें। बैठते समय पीठ के पीछे कुशन रखें।
प्रीइंक्लेंप्सिया
प्रेग्नेंसी के शुरुआती 20 सप्ताह में कुछ स्त्रियों का ब्लडप्रेशर बहुत तेज़ी से बढऩे लगता है और उसके साथ यूरिन से प्रोटीन का रिसाव शुरू हो जाता है। इसी अवस्था को प्रीइंक्लेंप्सिया कहा जाता है। इसी परेशानी के चलते महिलाओं में उनका ब्लडप्रेशर 160/110 तक पहुंच जाता है। इससे कई बार उसके चेहरे पर और पैरों में सूजन आ जाती है। इससे गर्भस्थ शिशु का विकास धीमी गति से होता है। ऐसी स्थिति में सिर या पेट में तेज दर्द और नॉजि़या जैसे लक्षण नज़र आते हैं।
बचाव-
प्रेग्नेंसी में ब्लडप्रेशर की नियमित जांच कराएं। अगर हल्का भी ब्लडप्रेशर बढ़े तो तुरंत डॉक्टर के पास समर्पक करें। प्रीइंक्लेंप्सिया की आशंका होने पर ब्लडप्रेशर के साथ यूरिन और ब्लड टेस्ट भी किया जाता है। नमक का सेवन सीमित मात्रा में करें। गंभीर स्थिति में गर्भवती स्त्री और गर्भस्थ शिशु के न्यूरो प्रोटेक्शन के लिए स्त्री की वेन्स में मैग्नीशियम सल्फेट का इन्जेक्शन लगाया जाता है और उसे हाइपर सेंसिटिव दवाएं दी जाती हैं।
डायबिटीज
अगर मां में डायबिटीज की समस्या है तो उसके शिशु में भी यह समस्या देखने को मिलती है। इस वजह से डायबिटीज न हो इसका पूरा ध्यान रखें। आज कल के खान पान और व्यायाम न कर पाने की वजह से 40 से 50 फीसद महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज की समस्या बढ़ जाने का खतरा बढ़ जाता है।
बचाव-
हर महीने पर ओरल ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट (ओजीटीटी) की जांच कराना चाहिए। साथ ही मीठी चीजें,चावल,आलू और जंक फूड से दूर रहना चाहिए।
एनीमिया
शिशु के विकास के लिए ब्लड की आवश्यकता बढ़ जाती है। ऐसे में शरीर में ब्लड की मात्रा बनी रहे इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसलिए अपनी डाइट में आयरन को थोड़ा सा बढ़ा देना चाहिए। अगर डाइट में आयरन के स्तर को न बढ़ाया गया तो शरीर में हीमोग्लोबिन का लेवल घट जाता है। इसे एनीमिया कहते हैं। दरअसल ब्लड में मौजूद हीमोग्लोबिन शरीर की सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान एनीमिया होना मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए घातक हो सकता है।
बचाव-
अपनी डाइट में फलों और सब्जियों को शामिल करें। अपने शरीर में ब्लड को बनाने के लिए चुकंदर,हरी पत्तों वाली सब्जी,सेब.अनार,केला,अंजीर और खजूर को शामिल करें। साथ ही चना, गेहूं के चोकर को भी अपनी डाइट में शामिल करें। खट्टे फलों को भी सेवन करें। खट्टे फलों में संतरा,मौसमी,आंवला और नीबू को जरूर शामिल करें। क्योंकि इनमें आयरन की अधिक मात्रा होती है।
मॉनिंक सिकनेस
प्रेग्नेंसी के दौरान ज्यादातर महिलाओं में सुबह के समय जी मिचलाने और वोमिटिंग की समस्या आम है। प्रेग्नेंसी के दौरान शरीर में एचसीजी यानी ह्यूमन क्रॉनिक गोनाडोट्रॉपिन हॉर्मोन बढ़ जाता है जिस वजह ये महिलाओं में ये दिक्कत होने लगती है। इस दौरान शरीर में एस्ट्रोजेन हॉर्मोन की भी मात्रा बढ़ जाती है।
बचाव-
इस दौरान जो भी खाने को पसंद हो उसे खाना चाहिए। सुबह उठने के बाद अपनी पसंद की कोई भी नमकीन चीज़ खा लें, खाने के बीच में पानी पीने से बचें, इससे वोमिटिंग की आशंका बढ़ जाती है। जिन चीज़ों के गंध से परेशानी होती है, उनसे दूर रहने की कोशिश करें। अगर दिन में एक या दो बार वोमिटिंग हो तो दवा लेने की ज़रूरत नहीं होती।
यूटीआई
गर्भावस्था में स्त्रियों के शरीर में प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन का स्तर काफी बढ़ जाता है। इससे उन्हें यूटीआई यानी यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन हो सकता है। ऐसी अवस्था में यूरेटर और ब्लैडर की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं। इससे यूरिनरी ट्रैक की संरचना में झुकाव सा आ जाता है। नतीजतन यूरिन का प्रवाह इस ढंग से होता है कि वह किडनी को हलका सा टच करते हुए ब्लैडर से बाहर निकलता है। इसी वजह से प्रेग्नेंसी में यूटीआई के साथ किडनी इन्फेक्शन की भी आशंका बढ़ जाती है।
बचाव-
पानी, जूस और छाछ जैसे तरल पदार्थों का सेवन अधिक मात्रा में करें। इस दौरान स्ट्रीट फूड खाने से बचें। पर्सनल हाइजीन के प्रति विशेष रूप से सजगता बरतनी चाहिए। पब्लिक टॉयलेट के इस्तेमाल से पहले भी फ्लश चलाना न भूलें। दवाओं का नियमित सेवन करें क्योंकि एंटीबायोटिक्स का कोर्स अधूरा छोडऩे पर दोबारा इन्फेक्शन की आशंका बढ़ जाती है।