डोकोमो के फैसलों से वाकिफ थे रतन टाटा

साइरस मिस्त्रीमुंबई| टाटा और डोकोमो के अलगाव के मामले को साइरस मिस्त्री ने जिस तरीके से निपटाया, यह टाटा संस के अध्यक्ष पद से उन्हें हटाए जाने के कारणों में से एक था। मिस्त्री के कार्यालय ने मंगलवार को कहा कि सभी फैसले रतन टाटा और बोर्ड की सहमति से लिए गए थे। साइरस मिस्त्री के कार्यालय से जारी आठ बिंदुओं वाले बयान में कहा गया है, “डोकोमो के साथ करार मिस्त्री के टाटा समूह के अध्यक्ष बनने के पहले हुआ था।”

“डोकोमो मुद्दे का मिस्त्री की देखरेख में जिस तरह से निपटारा किया गया, वह टाटा की संस्कृति और मूल्यों के विरुद्ध है, यह आरोप निराधार है। ऐसा कहना कि रतन टाटा और ट्रस्ट के न्यासियों ने उस तरह से स्वीकृति नहीं दी होती, जिस तरह से मुकदमेबाजी की गई, वह लोगों को जो मालूम है उसके विपरीत है।”

यह डोकोमो द्वारा करार भंग करने के बदले में 1.17 अरब डॉलर क्षतिपूर्ति की मांग करने के संदर्भ में है।

बयान में यह भी कहा गया है कि टाटा समूह की ओर से डोकोमो से आग्रह किया गया था कि भारतीय रिजर्व बैंक की स्वीकृति लेने में वह शामिल हो, लेकिन जापानी कंपनी इसके लिए सहमत नहीं हुई। जब टाटा की ओर से रिजर्व बैंक की स्वीकृति के लिए आवेदन दिया गया तो डोकोमो ने मामला पंचाट तक पहुंचा दिया और इसलिए यह सहमति नहीं मिल पाई।

बयान में कहा गया है कि इसमें पंचाट का फैसला डोकोमो के पक्ष में और टाटा समूह के खिलाफ गया। मिस्त्री के नेतृत्व में टाटा समूह ने इस फैसले को ब्रिटेन में चुनौती नहीं दी। इसके विपरीत टाटा समूह ने डोकोमो को क्षतिपूर्ति की राशि का भुगतान करने के लिए एक बार फिर रिजर्व बैंक से संपर्क साधा। रिजर्व बैंक ने इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया।

डोकोमो ने फैसले को लागू कराने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में संपर्क किया। टाटा समूह ने आठ हजार करोड़ रुपये जमा भी करा दिए।

बयान में कहा गया है कि इस पूरी प्रक्रिया में रतन टाटा और ट्रस्टी एन. ए. सूनावाला को जानकारी दी गई और उन लोगों ने मिस्त्री के साथ अलग-अलग बैठकों में भाग लिया। इसके जरिए यह स्पष्ट रूप से कहा जा रहा है कि शीर्ष प्रबंधन भी इसमें शामिल है।

यह भी कहा गया है कि उन लोगों ने कानूनी सलाहकार(दोराबजी टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी, जिन्होंने इस विवाद में टाटा समूह का प्रतिधित्व किया था) के साथ बैठक में भी भाग लिया था। तब हमेशा रतन टाटा और सूनावाला ने टाटा समूह द्वारा की जाने वाली कार्रवाई और कानूनी सलाहकार की सलाह पर सहमति जताई।

सभी फैसले टाटा सन्स बोर्ड की सर्वसम्मति से लिए गए थे। वास्तव में ये सभी फैसले सामूहिक थे और जो कार्रवाई की गई वे प्रत्येक सामूहिक फैसले के अनुरूप था।

इन सभी तथ्यों के आलोक में यह कहना कि मिस्त्री ने अपने स्तर से या टाटा के मूल्यों के खिलाफ या रतन टाटा और सूनावाला की जानकारी के बगैर निर्णय लिए, यह झूठ के साथ ही शरारतपूर्ण भी है।

जापान की कंपनी एनटीटी डोकोमो ने वर्ष 2009 के मार्च में टाटा टेलीसर्विसिस की 26.5 फीसदी हिस्सेदारी 2.5 अरब डॉलर में खरीदी। जुलाई 2014 में डोकोमो ने टाटा सन्स को कहा कि वह इससे बाहर होना चाहती है। सौदे की शर्त के मुताबिक उसने जितना धन कंपनी में निवेश किया था, उसका या बाजार मूल्य का 50 फीसदी वापस लेना चाहती थी।

पिछले साल फरवरी में रिजर्व बैंक ने टाटा को क्षतिपूर्ति करने का टाटा सन्स का आग्रह ठुकरा दिया, जिसके बाद जापानी कंपनी लंदन स्थित अंतर्राष्ट्रीय पंचाट में पहुंच गई। अदालत ने टाटा को डोकोमो को 1.17 अरब डॉलर क्षतिपूर्ति का निर्देश दिया।

यह भुगतान नहीं हो सका। टाटा ने यह राशि दिल्ली की एक अदालत में जमा करा दी है और अदालत के निर्देश का इंतजार कर रही है।

टाटा सन्स ने मिस्त्री को पिछले माह ही अध्यक्ष पद से हटाया दिया है।

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