श्मशान घाट के 250 साल पुराने कालभैरव मंदिर में हुई पूजा, भक्तों की लगी भीड़

Report – Ashish Singh/Lucknow

एक ऐसी जगह जहां जिन्दा और मुर्दा दोनों आते हैं. जहाँ तंत्र-मंत्र की साधना होती है और अघोरी तांत्रिक धुनी रमाये रहते हैं. जहां अग्नि ही शवों का आभूषण हैं जिसके जरिये मृतक की आत्मा परम वैकुण्ठ धाम की ओर प्रस्थान करती है.

शमशान का नाम सुनते ही मन में एक अजीब सी सनसनाहट दौड़ने लगती है लेकिन यह सब श्मशान की पवित्र भूमि पर ही देखने को मिलता है.

आपको बता दें कि शमशान को भले ही सन्नाटे और अनंत शाँति के लिए जाना जाता हो लेकिन आज यहां पर माहौल बदला हुआ है और ऐसा हो भी क्यों ना. जब श्मशान के देवता. भगवान कालभैरव का विशेष पर्व मनाया जा रहा हो. श्मशान के इसी बदले हुए माहौल को हम आप तक ला रहे हैं.

कालभैरव मंदिर

राजधानी लखनऊ के ठाकुरगंज स्थित गुल्लाला श्मशान घाट में 250 साल पुराना कालभैरव का मंदिर है! श्मशान घाट होने के कारण प्रतिदिन यहां पर शवों का अंतिम संस्कार होता रहता है, इसलिए यहां पर एक अलग तरह का ही माहौल बना रहता है. लाइव टुडे की टीम जब दोपहर में पहुंची तो यहां पर नजारा बदला हुआ मिला. ना तो यहां पर सन्नाटा था और ना ही माहौल में तनाव था.

प्रवेश द्वार को रंगबिरंगी झालर और बिजली के बल्बों से सजाया गया था. मुख्य मार्ग से करीब एक किमी दूर स्थित श्मशान घात तक डीजे की धुन पर बम भैरव का तेज संगीत कानों तक पहुंच रहा था. माहौल में शराब और गांजे की महक चारों ओर महसूस की जा सकती थी.

शमशान के ईष्ट देवता काल भैरव के मंदिर के ठीक सामने तंत्र साधक पान के पत्ते पर नींबू काट कर हवन कुंड में आहुति दे रहे थे. जब हवन कुंड से धुआं निकलना बंद हो जाता तो शराब के जरिये अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती थी. ठीक उसी समय मंदिर के गर्भ गृह में काल भैरव का अभिषेक शुरू होता है, जो घंटों चलता रहा.

श्मशान के संरक्षक भल्लू पांडेय ने बताया कि यहां पर ऐसी मान्यता है कि काल भैरवाष्टमी के दिन ऐसा करने से लोगों के दुःख-दोष दूर होते हैं. इसीलिए आज के दिन साधक कालभैरव को उनके विधि विधान से पूजन करते हैं. जिन जगहों पर शवों के अन्तिम संस्कार होते हैं आज वहां भंडारे का भोजन बन रहा था.

जिसका सुगंध सभी को अपनी और खीच रही थी. यह ईश्वर की कृपा ही है कि जहाँ सामान्य दिनों में लोग आने से कतराते हैं, आज के दिन वहां लोग अपने बच्चों के साथ आये थे, श्मशान घाट में बच्चे खेल रहे थे घूम रहे थे, किसी के अंदर कोई डर नहीं था. तो केवल उत्साह, आराधना, साधना, भक्ति और संतुष्टि.

शमशान भूमि में कालभैरव के मंदिर के साथ ही गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर भी है. यहां पर साधक गुप्त पूजा अर्चना के लिए आते हैं. इस मंदिर की  विशेषता इसे अन्य जगहों से अलग करती है.

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आपको बता दें कि यह मंदिर जिस स्थल पर बना है उसके गर्भ गृह के ठीक नीचे पांच नर मुंड हैं, जो गुप्त हैं! इसीलिए इस स्थान को गुप्तेश्वर कहा जाता है! रात्रि के समय और अर्धरात्रि के बाद यहां पर पूजा करने का विशेष महत्व है और ऐसी मान्यता है कि गुप्त साधना से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है.

यहां के संरक्षक भल्लू पांडेय ने बताया कि शमशान भूमि के इस मंदिर में कई नामी-गिरामी लोग आ चुके हैं. उन्हीं में से एक वर्तमान में मध्यप्रदेश के राज्यपाल और राजधानी लखनऊ के निवसी लाल जी टंडन भी शामिल हैं. हालाँकि उन्होंने अन्य नाम बताने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह एक गुप्त पूजा है, इसलिए इसे गुप्त रहना चाहिए.

शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को दोपहर में भगवान शिव के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए इस तिथि को काल भैरवाष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है.

पुराणों के अनुसार अंधकासुर दैत्य ने एक बार अपनी क्षमताओं को भूलकर अहंकार में भगवान शिव के ऊपर हमला कर दिया. उसके संहार के लिए शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई! काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं. इसलिए शिव की आराधना से पहले भैरव उपासना का विधान बताया गया है. उनकी साधना से समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता है.

कालभैरव का व्रत रखने से उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.वर्तमान में भैरव की उपासना बटुक भैरव और काल भैरव के रूप में प्रचलित हैं. तंत्र साधना में भैरव के आठ स्वरूप की उपासना की बात कही गई है.

ये रूप असितांग भैरव, रुद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाली भैरव, भीषण भैरव संहार भैरव.कालिका पुराण में भी भैरव को शिवजी का गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है,  इसलिए कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है.

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