…ताकि सलामत रहे दुनिया, ये लोग लगाते हैं कुदरत के जख्मों पर मरहम

विश्व पर्यावरण दिवसलखनऊ : आज विश्व पर्यावरण दिवस है. पर्यावरण की खस्ता हालत के बारे में सभी को पता है. पर्यावरण को दुरुस्त करने के लिए सरकार कई योजनाएं लाती है. लेकिन सब बेकार हो जाती हैं. पर्यावरण में बदलाव एक दिन में नहीं आएगा. उसके लिए लगातार कोशिश जारी रखनी होगी. पर्यावरण को बचाने की कोशिश लखनऊ के ये लोग सालों से कर रहे हैं.

अनुपम मित्तल

अच्छे काम की शुरुआत अपने घर से होती है ऐसा लोगों को कई बार कहते सुना होगा. लेकिन अनुपम मित्तल ने करके दिखा दिया है. अनुपम गोखले मार्ग पर रहते हैं. अनुपम पेशे से आर्किटेक्ट हैं और वह अपने क्लाइंट्स को घर में एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगाने की नसीहत देते हैं. इसके साथ ही इन्होंने अपने घर पर एक छोटा एसटीपी (3 kld) लगवाया. इससे घर के बेकार पानी को फिर से इस्तेमाल के लायक बनाया जाता है. इस पानी का इस्तेमान अनुपम बाथरूम और गार्डेन में करते हैं. एसटीपी के जरिए महीने में करीब 50 हजार लीटर पानी की बचत होती है. अनुपम ने अब तक पब्लिक और प्राइवेट प्लेस पर 20 से ज्यादा एसटीपी लगवाए हैं.

प्रभा चतुर्वेदी

पिछले 23 सालों में पेपर मिल कॉलोनी में रहने वाली प्रभा चतुर्वेदी ने पर्यावरण को बेहतर बनाया है. चेन्नै की एक्सनोरा संस्था के साथ काम करते हुए प्रभा ने कूड़ा प्रबंधन की मुहिम शुरू की. उनकी कॉलोनी का सबसे बेकार पार्क आज उनकी कोशिशों के चलते एक खास पहचान रखता है. इस पार्क को उन्होंने शहर का पहला ऑर्गेनिक वेस्ट तैयार करने वाला पार्क बना दिया है. इस पार्क में मोहल्ले के करीब 70 घरों के किचन और गार्डेन के वेस्ट से कई क्विंटल ऑर्गेनिक खाद तैयार की जाती है.

प्रभा के साथ राजीव शर्मा, प्रतिभा मित्तल, मालिका सहाय, हेमलता शर्मा, डॉ. वीके जोशी और सुधा कांडपाल समेत उनके ग्रुप के बाकी सदस्य पिछले 23 बरसों से इस काम में जुटे हैं. लोग घर पर ही गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग रख लेते हैं. इसके बाद सभी लोग अपना सॉलिड कूड़ा पार्क में डालते हैं और मिट्टी से उसे ढक देते हैं. इससे जो खाद बनती है उसका इस्तेमाल कॉलोनी के सभी लोग करते हैं. इसके अलावा प्रभा ने अपने घर की छत पर बारिश के पानी को इस्तेमाल में लाने के लिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया है. इस पानी को बगीचे में लगे पेड़ों के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है.

विनोद कृष्ण सिंघल

विनोद कृष्ण सिंघल नगर निगम के यदुनाथ सान्याल वार्ड के पार्षद हैं. विनोद ने अपने इलाके के मॉडल हाउस पार्क को जन्नत बना दिया है. विनोद कूड़े से खाद बनाते हैं. इसकी प्रेरणा उन्हें अपनी बेटी से मिली है. विनोद ने घर की छत पर डिब्बे में कूड़े से खाद बनाई. इसके लिए किचन वेस्ट का इस्तेमाल किया. कूड़े से खाद बनने के साथथ उसमें बैक्टीरिया भी पनपने लगे. उसके बाद उन्होंने गौ मूत्र मिलाया,  बैक्टीरिया खत्म हो गया. इसके बाद उसे घर के बगीचे में इस्तेमाल किया. उसके बाद क्षेत्रवासियों की  मदद से पार्क में खाद बनानी शुरू की. इस पार्क को शहर के 10 सबसे अच्छे पार्कों में शामिल किया गया. आज इलाके के कई घरों में कंटेनर में खाद तैयार की जाती है. इस खाद की मदद से पार्क में कई तरह की सब्जियां और फल उगाए जा रहे हैं.

इमरान

कान्हा उपवन को सरकार ने प्रदेश के बेसहारा पशुओं के लिए बनाया है. यहां गाय के गोबर से खाद और बिजली बनाई जाती है. इस बिजली का इस्तेमाल यहां के वेटेनरी हॉस्पिटल के लिए किया जाता है. इस बायोगैस प्लांट को इमरान चलाते हैं. नगर निगम ने इमरान की तकनीक को आजमाया और 30 साल के लिए प्लांट उन्हें लीज पर दिया. इमरान के मुताबिक, बायोगैस से गैस जनरेटर चलाकर 125 किलोवोल्ट बिजली बनाई जाती है. इस बिजली को हॉस्पिटल, कर्मचारियों के घरों और कान्हा उपवन की कैंटीन में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा नगर निगम ने एक कदम और बढ़ाते हुए यहां 500 किलोवोल्ट का एनर्जी प्लांट भी लगाया है. यह प्लांट रिफ्यूज्ड डिराइव्ड फ्यूल (जलाए जाने योग्य लकड़ी, प्लास्टिक और अन्य पदार्थ) को नियंत्रित ऑक्सीजन की मौजूदगी में जलाने पर निकली गैसों से चलता है. यहां 125 किलोवोल्ट के जनरेटर से प्लांट के ऑफिस और लैब को बिजली सप्लाई की जा रही है.

विमलेश निगम

गोमती नगर के विमलेश निगम ‘गो ग्रीन सेव अर्थ’ नाम की संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष हैं. विमलेश ने बचपन में मीठा आम खाने की लालच में एक पेड़ लगाया था. इसके बाद विमलेश ने वृक्षारोपण और लुप्त जानवरों को बचाने का प्रण कर लिया. विमलेश ने कुशीनगर के 14 इलाकों में एक लाख 20 हजार पौधे बांटकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है. विमलेश लखनऊ, कुशीनगर, इंदौर, गोरखपुर और दिल्ली समेत कई जगहों पर लोगों को जागरूक कर रहे हैं. वह लखनऊ में चिड़ियाघर, यूनिवर्सिटी, आईएमएस में कई पौधे लगा चुके हैं.

विमलेश मोर, गिद्ध और गौरेया जैसे लुप्त हो रहे जीवों को बचाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं. वह हर साल मार्च, अप्रैल, मई और जून में पक्षियों को गर्मी से बचाने लिए मिट्टी के घर और पीने के पानी का इंतजाम करते हैं और उउनके चेक-अप के लिए कैंप लगाते हैं.

 

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