नहीं हो पाती इस बीमारी की पहचान, लाचार हो जाता है इंसान

विश्व ऑस्टियोपोरोसिसनई दिल्ली| ओस्टियोपोरोसिस से होने वाले फ्रैक्चर और इसके कारण होने वाली विकलांगता की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस की पूर्व संध्या पर, चिकित्सा विशेषज्ञों ने भारत में तेजी से बढ़ रहे ऑस्टियोपोरोसिस के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान शुरू करने का आह्वान किया।

विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस

विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस (20 अक्टूबर) के अवसर पर स्वयंसेवी संस्था ‘आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन (एसीएफ)’ के अध्यक्ष एवं नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ हड्डी रोग सर्जन, डॉ. (प्रो.) राजू वैश्य ने कहा, “ऑस्टियोपोरोसिस की हमारे देश में आम तौर पर पहचान नहीं हो पाती है और इलाज नहीं हो पाता है।

यहां तक कि सबसे अधिक जोखिम वाले कई रोगियों जिनका फ्रैक्चर हो चुका हो, उनमें भी ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान नहीं हो पाती और उनका इलाज नहीं हो पाता है।”

उन्होंने कहा, “समस्या यह है कि यहां तक कि प्रभावित लोगों (ऑस्टियोपोरोसिस के लिए एक उच्च जोखिम वाले लोगों) को भी रोग के जोखिम कारकों के साथ-साथ रोग के कई खतरों के बारे में पता नहीं होता है। विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस हड्डियों एवं जोड़ों को स्वस्थ बनाने और ऑस्टियोपोरोसिस को प्राथमिकता देने के लिए देश को एक साथ मिलकर काम करने का समय है।”

वरिष्ठ आथोर्पेडिक सर्जन और इंस्टीच्यूट ऑफ बोन एंड ज्वाइंट (एमजीएस हॉस्पिटल), नई दिल्ली के निदेशक डॉ. अश्विनी माइचंद ने कहा, “हर व्यक्ति को अपने आहार में कैल्शियम, प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित उचित खुराक लेनी चाहिए। इस आदत को स्कूल उम्र से ही शुरू कर देना चाहिए ताकि शिक्षक यह सुनिश्चित कर सकें कि हर बच्चा दिन भर में उचित पोषक तत्व ले रहा है। महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों में, अधिकतर समय नुकसान पहले से ही हो चुका होता है, इसलिए उन्हें कैल्शियम, बाईफास्फोनेट और पैराथाइरॉयड हारमोन के रूप में मिनिस्कल सहारे की जरूरत होती है। हालांकि समग्र स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना और धूप के संपर्क में रहना हर किसी के लिए अनिवार्य है।”

दुनिया भर में, ऑस्टियोपोरोसिस, के कारण हर साल 89 लाख से अधिक फ्रैक्च र होते हैं। इस तरह हर 3 सेकंड में एक ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्च र होता है। अनुमान के अनुसार ऑस्टियोपोरोसिस दुनिया भर में 20 करोड़ महिलाओं को प्रभावित करता है जिनमें लगभग 10 में से एक महिला की उम्र 60 वर्ष, 5 में से एक महिला की उम्र 70 वर्ष, 5 में से 2 महिला की उम्र 80 वर्ष और दो तिहाई महिलाएं 90 वर्ष की होती हैं।

कम आय वर्ग की 30-60 वर्ष की भारतीय महिलाओं के बीच किये गये एक अध्ययन में, सभी हड्डियों की बीएमडी विकसित देशों में दर्ज की जाने वाली बीएमडी की तुलना में काफी कम थी। उनमें अपर्याप्त पोषण के कारण ऑस्टियोपीनिया (52 प्रतिशत) और ऑस्टियोपोरोसिस (29 प्रतिशत) के मामले काफी अधिक पाए गए।

प्रतिष्ठित अस्थि शल्य-चिकित्सक एवं आकाश हेल्थकेयर के प्रबंधक निदेशक डॉ. आशीष चौधरी ने कहा, “ओस्टियोपोरोटिक मरीज की हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती है कि इस रोग से पीड़ित मरीज आसानी से गिर जाते हैं। ऐसी घटनाआंे में, कुल्हे व कलाई की हड्डियों की टूटने की अधिक संभावना होती है। अनुमानत: 5 लाख ओस्टियोपोरोटिक मरीजों पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि इनमें से 2 लाख लोग कूल्हे की हड्डी फ्रैक्चर होने से पीड़ित हैं और 3 लाख मरीज कलाई की हड्डी फ्रैक्चर होने से पीड़ित हैं। इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि भारतीय लोगों की हड्डियों पर ओस्टियोरोपोरोसिस का कितना असर है।”

उन्होंने कहा कि भारत के लोगों में अस्थियों में कम द्रव्यमान, न्यूनतम कैल्शियम व विटामिन डी की कमी होने के कारण, इस रोग का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। यह भ्रम है कि यह सिर्फ बुढ़ापे का विकार है। यदि हम डेयरी उत्पाद व विटामिन डी की खुराक के साथ पर्याप्त कैल्शियम का सेवन नहीं करते हैं, तो ओस्टियोपोरोसिस कम उम्र में ही उत्पन्न हो सकता है। इस रोग की चपेट में ज्यादातर महिलाएं आती है और यह रोग 50 से 58 वर्ष की महिलाओं को प्रभावित करता है। पुरुषों में यह रोग, विलम्ब से यानि 65 से 70 वर्ष की उम्र में आता है।

डॉ. चौधरी ने कहा, “इस रोग के सामान्य लक्षणों में पीठ दर्द, बोना कद और कूबड़ निकलना होता है। इस विकार को रोकने के लिए, नियमित अस्थि घनत्व चेकअप कराना आवश्यक है। इसकी जांच में डेंसिटोमीटर मशीन सहायक है। अल्प घनत्व का मतलब है कि जटिल फ्रैक्चर की अत्यधिक संभावना।”

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