रिसर्च में हुआ खुलासा , भारत में बढ़ती गर्मी से कम हो जाएंगी करोड़ो नौकरियां साथ ही 5% तक घटेगी GDP…

सयुंक्त राष्ट्र संघ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत में बढ़ती गर्मी की वजह से साल 2030 तक 3.4 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बढ़ती गर्मी दुनिया भर में काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी पर क्या असर डालेगी।

बतादें की भारत में सबसे ज्यादा लोग खेती समेत तमाम दूसरे असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां मजदूरों को उनके शारीरिक श्रम के बदले में मजदूरी मिलती है। ऐसे लोगों को धूप में सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक काम करना पड़ता है। इस बीच में आराम करने की अवधि भी लगभग तीस मिनट होती है।

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वहीं बढ़ती गर्मी की वजह से ऐसे मजदूर दिन के घंटों में काम नहीं कर पाएंगे, क्योंकि इस दौरान तापमान अपने चरम पर होगा। इस वजह से काम के घंटों में कमी आएगी, जो सीधे तौर पर मजदूरों की आमदनी को प्रभावित करेगी।

जहां सयुंक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में भी ये बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर खेतिहर और बिल्डिंग निर्माण में लगे मजदूरों पर पड़ेगा।
भारत में 90 फीसदी मजदूर असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं जिनमें खेती और बिल्डिंग निर्माण जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में मजदूरों को धूप और लू का सामना करते हुए सुबह दस बजे से लेकर शाम पांच बजे तक काम करना पड़ता है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘बढ़ती गर्मी की वजह से दुनिया भर में काम के घंटों में 2.2 फीसदी की कमी आएगी। इसका सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ेगा। साल 1995 में भारत में काम के घंटों में 4.3 फीसदी की कमी आई थी। लेकिन साल 2030 तक ये आंकड़ा 5.8 फीसदी तक बढ़ने की आशंका है।’

साल 2019 में भी ऐसे मामले सामने आए हैं जिनकी वजह से इस तरह की नौकरियों के कम होने के संकेत मिले हैं। बीबीसी ने बिहार में आम मजदूरों पर गर्मी के असर को लेकर एक रिपोर्ट की है। इसमें सामने आया है कि गर्मी की वजह से काम के लिए उपलब्ध मजदूरों की संख्या और काम की उपलब्धता में कमी आई है।

ईंट भट्टों पर काम करने वाले मजदूरों के संबंध में रिपोर्ट बताती है, ‘भारत में करोड़ों लोग अपने गांवों को छोड़कर शहर किनारे बने ईंट भट्टों पर काम करते हैं। इन मजदूरों में बच्चे भी शामिल होते हैं, जो अक्सर निचले सामाजिक-आर्थिक तबके से आते हैं। ये लोग कठिन स्थितियों में काम करते हैं और बदले में काफी कम मजदूरी हासिल करते हैं। कभी-कभी इन मजदूरों को उनकी मजदूरी भी नहीं मिलती है।’

दरअसल सेंटर फॉर इन्वॉयरन्मेंट स्टडीज के उपनिदेशक चंद्र भूषण ईंट भट्टों पर काम करने वाले मजदूरों को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं। वह कहते हैं, ‘मैंने हाल ही में कई भट्टों का दौरा किया और पाया कि इन भट्टों पर तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से कहीं आगे बढ़कर 55 से 60 डिग्री तक पहुंच जाता है।

यहां काम करना कितना मुश्किल है, ये इस बात से समझा जा सकता है कि यहां काम करने वाले लोग प्लास्टिक या रबड़ से बनी चप्पलें नहीं पहन पाते हैं, क्योंकि वे गर्मी की वजह से पिघल जाती हैं। ऐसे में ये लोग लकड़ी की बनी चप्पलें पहनने पर विवश होते हैं।

 

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