राम-भरत जोड़ी: रवि किशन बोले- “योगी मेरे श्री राम और मैं उनका भरत!”

चुनाव: गोरखपुर में 2018 के उपचुनाव में पटखनी खाने के बाद बीजेपी ने इस बार भोजपुरी फिल्म स्टार रवि किशन को मैदान में उतारा है. रवि किशन ने कहा कि योगी जी मेरे श्री राम हैं और मैं उनका भरत हूं, इसलिए चुनाव में किसी तरह की कोई चुनौती नहीं है. यहां गठबंधन फ्लॉप फिल्म के फ्लॉप शो की तरह हो चुका है.

लोकसभा चुनाव-2019 में पूर्वांचल की गोरखपुर संसदीय सीट सुर्खियों में है. इस सीट पर बीजेपी 1991 से  लगातार जीत दर्ज करती आई है, लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद इस संसदीय सीट का गणित बिगड़ गया. 2018 में हुए उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र दत्त शुक्ला को मात देकर इतिहास रचा था. 2019 में बीजेपी अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए भोजपुरी स्टार रवि किशन को मैदान में उतारा है.

बातचीत में रवि किशन शुक्ला ने कहा ”योगी जी मेरे श्री राम हैं और मैं उनका भरत. गोरखपुर में पीएम मोदी और सीएम योगी के निःस्वार्थ भाव से किए गए काम को देखकर जनता मुझे वोट देगी.” यहां मेरे लिए कोई चुनौती नहीं है. रहा सवाल गठबंधन का तो वह फ्लॉप फिल्म के फ्लॉप शो की तरह हो चुका है.

 

मंदिर से तय होगा आगे का सफर

पहले मठ या बीजेपी के सवाल पर रवि किशन ने कहा कि ये दोनों एक-दूसरे के विपरीत है. मंदिर में हमारी आस्था है और पार्टी राष्ट्रहित का माध्यम. इसलिए दोनों को एक साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता है. रवि किशन ने कहा कि मैं पीएम मोदी और सीएम योगी के आशीर्वाद से चुनावी मैदान में उतर चुका हूं . मैंने गोरखनाथ मंदिर से चुनावी आगाज किया है. यहीं से आगे का सफर तय होगा.

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हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए पैदा हुए हैं पीएम मोदी

कांग्रेस से बीजेपी में शामिल होने के फायदे के सवाल पर रवि किशन ने कहा कि राष्ट्र प्रेम सबसे ऊपर है. राष्ट्र प्रेम में हमारे प्रधानमंत्री डूबे हुए हैं और हम भी उनमें लीन होकर चौकीदार बन गए हैं. रवि किशन ने कहा कि हिंदू संस्कृति और संस्कार की रक्षा के लिए पीएम मोदी ने जन्म लिया है. वह दुनिया में अपनी इस छवि की वजह से देश का कद ऊंचा कर रहे हैं.

 

क्या है रवि किशन के एंट्री की वजह

गोरखपुर के सियासत में गोरखनाथ मंदिर से बहुत कुछ तय होता है, इसलिए ‘मेरा बूथ-सबसे मजबूत’ वाली दलील यहां कमजोर पड़ जाती है. गोरखपुर की राजनीतिक समझ रखने वाले बताते हैं कि बीते कुछ समय से मंदिर और पार्टी दो अलग-अलग खेमे हो गए हैं. हालांकि मठ की पसंद को ही कार्यकर्ताओं को मानना पड़ता है.

पत्रकार राजन चौधरी का कहना है कि बीते उपचुनाव में बीजेपी ने जिस प्रत्याशी को मैदान में उतारा था, उसे दबे मन से मठ ने स्वीकार किया था, जिसका खामियाजा भी बीजेपी को भुगतना पड़ा. इस बार आपसी गुटबाजी को देखते हुए पैराशूट कैंडिडेट पर दांव खेला गया है. अब सवाल उठता है कि क्या बीजेपी यहां इतनी कमजोर हो गई है जो उसे एक जमीनी उम्मीदवार नहीं मिला?

राजन चौधरी ने कहा कि मठ की सहमति से बीजेपी इस बार रवि किशन को टिकट देकर गुटबाजी से तो निकल गई, लेकिन उसे मठ और बीजेपी से नाराज लोगों को मनाना होगा. साथ ही जातीय गणित भी बैठाना होगा.

 

क्या है जातीय गणित

इस सीट पर सबसे ज्यादा निषाद समुदाय के वोटर हैं. गोरखपुर सीट पर करीब 3.5 लाख वोट निषाद जाति के लोगों का है. उसके बाद यादव और दलित वोटर्स की संख्या है. 2 लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं. इसके अलावा करीब 13 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. गोरखपुर लोकसभा सीट के तहत सूबे की पांच विधानसभा सीट आती है. इनमें कैम्पियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवा सीट है. मौजूदा समय में इन सभी पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.

 

क्या था 2014 और 2018 के जीत का अंतर

2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर सीट पर योगी आदित्यनाथ ने सपा की राजमति निषाद को 3,12,783 वोट से मात दी थी. 2017 में योगी के सीएम बनने के बाद उन्हें अपनी सीट छोड़नी पड़ी थी. इसके बाद 2018 में हुए उपचुनाव में सपा के प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को कांटेदार मुकाबले में 21,881 मतों से मात दे दी. सपा के प्रवीण निषाद को 4,56,513 वोट, जबकि बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को 4,34,632 वोट मिले थे. वहीं, कांग्रेस के डॉक्टर सुरहिता करीम को 18,858 वोट मिले थे.

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