जानें क्यों मनाया जाता है रसोगोला दिबसा, कब और कैसे से हुई इसकी शुरुआत?

रसगुल्ला सबसे प्रसिद्ध मिठाइयों में से एक भारतीय पकवान है. जो मुख्य रूप से ओड़िसा और पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय है। जिसे देखकर लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. और यह खाने में भी मजेदार लगते हैं.

जानें क्यों मनाया जाता है रसगुल्ला दिवस, कब और कैसे से हुई इसकी शुरुआत?

रसगुल्ला दिबासा या रसगुल्ला दिवस स्वादिष्ट मिठाई की महिमा को उजागर करने के लिए मनाया जाता है।

हमलोग अक्सर किसी खास मौके पर रसगुल्ले बनाते-खाते हैं. पर ओडिशा में इस एक खास दिन को पर्व की तरह मनाया जाता है. जिसे नाम दिया गया है  रसोगोला दिबसा. यानी रसगुल्ला दिवस. जो इस स्वादिष्ट मिठाई की महिमा को उजागर करने में मदद करता है।

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पूरे राज्य में हर साल 15 जुलाई को इस राज्य के लोग रसोगोला दिबसा  मनाते हैं. खास बात यह भी यह दिन भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के बाद ही मनाया जाता है. आइए जानते हैं कि आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई और क्यों ओडिशा के लोग इसे सेलिब्रेट करते हैं?

लंबी चली लड़ाई में बाजी बंगाल ने मारी थी

दरअसल, ओडिशा के पुरी में हर साल रसगुल्ला दिवस मनाने की प्रथा शुरु हुई थी. साल 2014 में इसकी पारंपरिक शुरुआत हुई. रसगुल्ले की लड़ाई बंगाल और उड़ीसा की पुरानी रही है और इस लंबी चली लड़ाई में बंगाल की जीत हुई थी. 2014 में इस लड़ाई की शुरुआत हुई जिसमें उड़ीसा के पुरी में रसोगोला दिबसा मनाकर ये कहा कि पुरी में रसगुल्ले का जन्म हुआ था, जिसके बाद ये मामला कोर्ट पहुंचा और 2017 में इसका फैसला आया कि रसगुल्ला बंगाल की देन है.

हालांकि जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग बंगाल को सफेद रसगुल्ले के लिए दिया गया था, जिसे बंगलार रसगुल्ला कहा जाता है, जबकि ओडिशा का रसगुल्ला स्वाद और रंग में इससे काफी अलग होता है. लड़ाई जीतने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने भी हर साल 14 नवंबर को रसगुल्ला दिवस मनाने का ऐलान किया है.

रसगुल्ले से प्रसन्न हुईं रूठी महालक्ष्मी

ओडिशा के लोगों का तर्क है कि रसगुल्ला पुरी में पैदा हुआ था. उनका मानना था कि देवी लक्ष्मी को भोग लगाया जाने वाला रसगुल्ला उनका है. इसके पीछे कथा ये थी एक बार भगवान जगन्नानाथ बिना लक्ष्मी को बताए नौ दिन की रथयात्रा पर निकल गए थे. जिसके बाद लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ से नाराज हो गई थीं और भगवान से नाराज होकर मंदिर के कपाट बंद कर लिए थे. तब महालक्ष्मी मां को मनाने के लिए जगन्नाथ भगवान रसगुल्ला ही लेकर उन्हें मनाने गए. जिसके बाद मां लक्ष्मी प्रसन्न हुईं थीं.

क्यों मनाया जाता है रसगुल्ला दिवस?

इस दिन जगन्नाथ रथयात्रा पूरी होकर वापस श्रीमंदिर की तरफ जाती है, इसे ही नीलांदरी बिजी कहते हैं. ये जगन्नाथ रथयात्रा का आखिरी दिन होता है. भगवान जगन्नाथ का यात्रा का आखिरी दिन को ही रसगुल्ला दिवस या रसगोला दिबस के रूप से मनाया जाता है.

कब से हुई इसकी शुरुआत?

रसगुल्ले को अपनाने की लड़ाई और भगवान को खुश करने के बीच यह खास दिन मनाने की शुरुआत हुई. सबसे पहले 30 जुलाई, 2015 को पुरी में जगन्नाथ यात्रा के समापन पर रसगुल्ला दिवस मनाया गया. पुरी के रसगुल्ला का जन्म स्थान मानते हुए इसकी शुरुआत की गई. उड़िया कलेंडर के अनुसार इसे 6 जुलाई को मनाया जाता है, लेकिन कई बार इसका दिन रथ यात्रा के जोड़कर तय किया जाता है.

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ऐसे होता है सेलिब्रेट

रसोगोला दिबसा युवाओं में इसका खासतौर से काफी क्रेज रहता है. ट्विटर से लेकर तमाम सोशल साइट्स पर लोग इस दिन को अपने तरीके से सेलिब्रेट करते हैं. एक-दूसरे को बधाई देते हैं. नाते-रिश्तेदारों के यहां रसोगुल्ला लेकर मिलने जाते हैं. वहीं भगवान को भी इस दिन खासतौर से रसगुल्ला का प्रसाद चढ़ाया जाता है.

रसोगोला दिबसा को सेलिब्रेट करने के लिए मशहूर सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने रेत पर खास कलाकृति उकेरी. उन्होंने पुरी बीच पर भगवान जगन्नाथ और मां लक्ष्मी को रसगुल्ला अर्पित करते हुए कलाकृति बनाई. साथ ही उड़िया और अंग्रेजी में रसोगोला दिबसा भी लिखा है. उनके इस आर्ट को लोग ट्विर के जरिए रीट्वीट भी कर रहे हैं.

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