रवीन्द्रनाथ टैगोर ने राखी से जोड़ा था हिंदू-मुस्लिमों को

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को जोड़ासांको में हुआ था। साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय देने वाले रवींद्रनाथ को ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

भारतीय राष्ट्रगान की रचयिता और काव्य, कथा, संगीत, नाटक, निबंध जैसी साहित्यिक विधाओं में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। रवींद्रनाथ ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्राएं की थी। सात अगस्त 1941 को उनका देहावसान हो गया। उनके जीवन का एक किस्सा काफी रोचक है, जब उन्होंने हिंदुओं और मुस्लिमों को राशी से जोड़ दिया था।

दरअसल, साल 1905 में ब्रिटिश भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लार्ज कर्जन ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की। ब्रिटिश सरकार ने कहा कि ऐसा उसे मजबूरी में करना पड़ रहा है और इससे प्रशासनिक कामकाम बेहतर होगा।

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दरअसल, तत्कालीन बंगाल में वर्तमान पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम और बांग्लादेश शामिल था। योजना के तहत असम के साथ ढाका, त्रिपुरा, नोआखाली, चटगांव और मालदा जैसे इलाकों को मिलाकर पूर्वी बंगाल और असम नाम का एक नया राज्य बनना था।

मगर, बंगाली समुदाय को इसमें छिपी साजिश की गंध आ गई। बंगाल का पूर्वी हिस्सा मुस्लिम बहुल था, जबकि पश्चिमी हिस्से में हिंदू समुदाय की आबादी ज्यादा थी। लोग समझ गए कि यह अंग्रेजों की बांटो और राज करो वाली पुरानी चाल है।

बंगाल के बंटवारे की इस योजना का देशव्यापी विरोध शुरू हो गया। कांग्रेस ने इसके विरोध में स्वदेशी अभियान की घोषणा की और विदेशी सामानों के बहिष्कार का ऐलान किया। पूरे देश में विदेशी कपड़ों की होली जलाने लगी।

मगर, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने ऐलान किया कि बंटवारे के दिन यानी 16 अक्टूबर को राष्ट्रीय शोक दिवस होगा।बंगालियों के घर में उस दिन खाना नहीं बनेगा। बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के आपसी भाईचारे का संदेश देने के लिए टैगोर ने राखी का उपयोग किया।

रवींद्रनाथ टैगोर चाहते थे कि हिंदू और मुसलमान एक दूसरे को राखी बांधकर शपथ लें कि वे जीवनभर एक-दूसरे की सुरक्षा का एक ऐसा रिश्ता बनाए रखेंगे, जिसे कोई तोड़ न सके।

16 अक्टूबर को टैगोर ने गंगा में डुबकी के साथ अपना दिन शुरू किया। सैकड़ों राखियां लेकर टैगोर की अगुवाई में एक जुलूस निकला, जो रास्ते में हर किसी को राखी बांधता जा रहा था। लोग जुड़ते जा रहे थे और कारवां बढ़ता जा रहा था। छतों पर खड़ी महिलाएं जुलूस पर अक्षत फेंक रही थीं और शंख बजा रही थीं।

लोगों को अंग्रेजों की साजिश समझ में आ चुकी थी। लिहाजा, इस विरोध अभियान का असर हुआ और कुछ समय के लिए बंगाल विभाजित होने से बच गया। हालांकि, अंग्रेजों ने 1912 में बिहार, असम और उड़ीसा को बंगाल से अलग कर दिया गया। इस बार यह बंटवारा भाषाई आधार पर हुआ था।

हालांकि, गुरुदेव की बंगाल को विभाजन को रोकने की कोशिश पूरी नहीं हो सकी। आखिरकार, बंगाल का जो विभाजन हुआ उसकी वजह से बांग्लादेश नाम का नया देश अस्तित्व में आया। हिंदू और मुस्लिम ही नहीं बंटे, बल्कि काफी खून-खराबे के बाद सरहदों में लाखों लोगों को बांट दिया गया।

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