
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी मामले में पत्रकार प्रशांत कनौजिया के मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कभी-कभी अदालत को भी सोशल मीडिया का दंश झेलना पड़ता है। कभी यह उचित होता है और कभी अनुचित, लेकिन हमें अपने अधिकारों का पालन करते रहना होता है।
जस्टिस इंदिरा बनर्जी और अजय रस्तोगी की पीठ ने सोमवार को कनौजिया की पत्नी जगीशा अरोड़ा की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पत्रकार की गिरफ्तारी को चुनौती दी गई थी। यूपी सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि चूंकि आरोपी न्यायिक हिरासत में है, इसलिए इस पर विचार नहीं किया जा सकता।
इस पर पीठ ने कहा कि अगर यह स्वतंत्रता से वंचित करने का मामला है तो हम अपने हाथ बांधकर नहीं रह सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत देने का मतलब उसकी पोस्ट या ट्वीट को स्वीकृति देना नहीं है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि इस मामले में जरूरत से ज्यादा की गई कार्रवाई के मद्देनजर यह आदेश दिया जा रहा है।
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भाजपा कार्यकर्ता का मामला अलग
सुनवाई के दौरान पीठ ने सोशल मीडिया पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ आपत्तिजनक मीम शेयर करने गिरफ्तार की गई भाजपा की यूथ नेता प्रियंका शर्मा के मामले को अलग बताया। पीठ ने 14 मई को प्रियंका को जमानत देते हुए लिखित में माफी मांगने का आदेश दिया था। पीठ ने कहा कि प्रियंका शर्मा के मामले में हमने पाया कि ज्यादातर पोस्ट (मीम) बेहद आपत्तिजनक थे। ऐसे में दूसरों के अधिकार में हस्तक्षेप करने पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है।
पत्नी बोली, आदेश से संविधान में विश्वास मजबूत हुआ
प्रशांत कनौजिया की पत्नी जगीशा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद संविधान में विश्वास और मजबूत हुआ है। पुलिस ने गैरकानूनी तरीके से मेरे पति को गिरफ्तार किया था। हमने सांविधानिक तरीके से सभी प्रक्रियाओं का पालन किया और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मेरे पति ने हल्के फुल्के अंदाज में ट्वीट किया था और इसमें कुछ भी अनुचित नहीं था।