सामने आया UFO से जुड़ा सबसे बड़ा सच, पौराणिक काल में हो रहा था उपयोग!

 

यूएफओअंकित रस्तोगी

आधुनिकता के इस दौर में जहां वैज्ञानिकों ने तरह-तरह के आविष्कार करके लोगों को अचंभित किया है, वहीं अक्सर जिक्र में आने वाले यूएफओ यानी उड़न तश्तरी की खोज एक कल्पना मात्र बनी हुई है। इसका अस्तित्व है भी या नहीं इस बारे में भी संदेह जताया जाता है। लेकिन जिसने इसे अपनी आँखों से देखा वह अपनी बात पर टिका रहता है कि उसने यूएफओ को देखा। इसी सन्दर्भ में दुनिया के महान वैज्ञानिकों का गुट चर्चा करता रहता है।

यूएफओ यानी उड़न तश्तरी का अस्तित्व

यूएफओ के अस्तित्व की बात करें तो तमाम वैज्ञानिकों का मानना है कि यह वाकई में है। जिसका उपयोग दूसरे ग्रहों में रहने वाले लोग एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाने के लिए करते हैं। इसकी क्षमता के बारे में भी अंदाजा लगाने वाले कहते हैं कि यह एक अत्याधुनिक तकनीक की देन है। इसके माध्यम से यह विमान पलक झपकते ही करोड़ों मील की दूरी तय कर लेता है।

लाख कोशिशों और प्रयोगों के बाद भी दुनिया भर के वैज्ञानिक अभी तक इस विमान में उपयोग की गयी तकनीक की खोज नहीं कर पाए हैं।

यूएफओ

हैरत की बात है कि जब आधुनिक युग के मनुष्य यूएफओ की गुत्थी को सुलझाने में माथा पच्ची कर रहे हैं। वहीं वैदिक काल में विज्ञान की इस तकनीक को भारत में बखूबी इस्तेमाल किया गया।

अफसोस की बात है कि कालांतर के कारण वह तकनीक उन महान लोगों से अगली पीढ़ी में स्थानांतरित नहीं की जा सकी, जिसकी वजह से हमारे लिए अब वह एक कल्पना के समान हो गई है।

इस बात का साक्ष्य आज भी मौजूद है जिसे नकारा नहीं जा सकता। जी हां, यदि हम हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थ रामायण के पन्ने पलट के देखें तो उसमें एक अद्भुत विमान का वर्णन बार-बार किया गया है।

लोग धार्मिक आस्था के साथ उसका उल्लेख भी बड़े ही हर्ष के साथ करते हैं। पर मस्तिष्क की विडंबना है कि उसे सिर्फ आज लोगों ने दैवीय चमत्कार का एक उदाहरण मात्र मान कर मन को संतोष दे दिया है।

बता दें यहाँ बात की जा रही है पुष्पक विमान की। यह वही विमान है जिसमें रावण सीता माता का हरण करके लंका ले गया था।

यूएफओ

इस विमान के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह सिर्फ उसी के आदेश पर चलता था जिसने इस विमान को चलाने और निर्देश देने वाले मन्त्रों को खुद में साध्य कर लिया हो।

इस मामले में यदि हम इसे जरा गंभीरता से लें तो यह विमान रावण से पहले भगवान कुबेर के पास था। भगवान कुबेर रावण के सौतेले भाई थे जिनसे यह विमान छीन लिया गया था।

इसके साथ ही रामायण में उस वक्त एक अन्य विमान का भी उल्लेख किया गया है, यह विमान तब अस्तित्व में आया था जब भगवान श्री राम, लंकापति रावण से युद्ध करने के लिए गए थे।

यूएफओ

कहा जाता है युद्ध से ठीक पहले स्वर्ग से देवताओं ने उनके लिए एक दिव्य विमान भेजा था, जिसमें पुष्पक जैसी ही खूबियाँ मौजूद थीं। जब भगवान राम रावण से युद्ध लड़ने को तैयार हुए तो देवताओं ने देखा कि लंकापति रावण अपने रथ पर सवार होकर युद्ध के लिए आया है। इस पर देवताओं ने एक विशेष रथ को भगवान् राम के लिए भेजा।

ये रथ एक तेज रोशनी के साथ भगवान् राम के सम्मुख प्रकट हुआ। आज के लिहाज सोचें तो ये भी रथ न होकर एक यूएफओ था। रावण का वध होने के बाद ये रथ वापस दिव्यलोक चला गया।

सवाल यह उठता है कि यदि यह विमान सिर्फ व्यक्ति विशेष के द्वारा ही चलाया जा सकता तो रावण के निर्देशों पर पुष्पक कैसे चलने लगा था।

खैर इन बातों पर यदि गहराई से चर्चा की जाए तो यह प्रकरण काफी लंबा खिंच जाएगा। मुद्दे की बात यह है कि पुष्पक विमान में वो सभी खूबियाँ मौजूद थीं, जिन खूबियों से आज यूएफओ को पहचाना जाता है।

पुराणों के अनुसार पुष्पक विमान एक ऐसा चमत्कारिक यात्री-विमान था, जिसमें चाहे जितने भी यात्रीसवार हो जाएं, एक कुर्सी हमेशा रिक्त रहती थी।

यही नहीं यह विमान यात्रियों की संख्या और वायु के घनत्व के हिसाब से स्वमेव अपना आकार छोटा या बड़ा कर सकता था।

ये है वैज्ञानिकों का तर्क

इस तथ्य के पीछे वैज्ञानिकों का यह तर्क है कि वर्तमान समय में हम पदार्थ को जड़ मानते हैं, लेकिन हम पदार्थ की चेतना को जागृत करलें तो उसमें भी संवेदना सृजित हो सकती है और वह वातावरण व परिस्थितियों के अनुरूप अपने आपको ढालने में सक्षम हो सकता है।

रामायण काल में विज्ञान ने पदार्थ की इस चेतना को संभवतः जागृत कर लिया गया था, इसी कारण पुष्पक विमान स्व-संवेदना से क्रियाशील होकर आवश्यकता के अनुसार आकार परिवर्तित कर लेने की विलक्षणता रखता था। तकनीकी दृष्टि से पुष्पक में इतनी खूबियां थीं, जो वर्तमान विमानों में नहीं हैं।

ताजा शोधों से पता चला है कि यदि पुष्पक के जैसा ही कोई अन्य विमान आकाश गमन करे तो उसके विद्युत चुंबकीयप्रभाव से मौजूदा विद्युत व संचार जैसी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएंगी।

पुष्पक विमान के बारे में यह भी पता चला है कि वह उसी व्यक्ति से संचालित होता था इसने विमान संचालन से संबंधित मंत्र सिद्ध किया हो, मसलन जिसके हाथ में विमान को संचालित करने वाला रिमोट हो। शोधकर्ता भी इसे कंपन तकनीक (वाइब्रेशन टेकनोलाजी) से जोड़ कर देख रहे हैं।

पुष्पक की एक विलक्षणता यह भी थी कि वह केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ही उड़ान नहीं भरता था, बल्कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक आवागमन में भी सक्षम था। यानी यह अंतरिक्षयान की क्षमताओं से भी युक्त था।

यहां मिलता है इसका प्रमाण

यूएफओ

रामायण एवं अन्य राम-रावण लीला विषयक ग्रंथों में विमानों की केवल उपस्थिति एवं उनके उपयोग का विवरण है, इस कारण इतिहासकार इस पूरे युग को कपोल-कल्पना कहकर नकारने का साहस कर डालते हैं। लेकिन विमानों के निर्माण, इनके प्रकार और इनके संचालन का संपूर्ण विवरण महार्षि भारद्वाज लिखित वैमानिक शास्त्र’ में है।

यह ग्रंथ उनके प्रमुख ग्रंथ यंत्र-सर्वेश्वम्’ का एक भाग है। इसके अतिरक्त भारद्वाज ने अंशु-बोधिनी’ नामक ग्रंथ भी लिखा है, जिसमें ‘ब्रह्मांड विज्ञान’ (कॉस्मोलॉजी) का वर्णन है।

इसी ज्ञान से निर्मित व परिचालित होने के कारण विमान विभिन्न ग्रहों की उड़ान भरते थे। वैमानिक-शास्त्र में आठ अध्याय, एक सौ अधिकरण (सेक्शंस) पांच सौ सूत्र (सिद्धांत) और तीन हजार श्लोक हैं। इस ग्रंथ की भाषा वैदिक संस्कृत है।

विश्वकर्मा ने की थी इसकी रचना

शास्त्रानुसार शिल्पाचार्य विश्वकर्मा ने ब्रह्मदेव हेतु दिव्य पुष्पक विमान की रचना की थी। विश्वकर्मा के पिता प्रभास वसु व माता योग सिद्धा थी।

देवताओं हेतु विमान व अस्त्र-शस्त्र भी विश्वकर्मा जी द्वारा निर्मित हैं। रामायण अनुसार पुष्पक विमान की विशेषता यह थी कि इसका स्वामी जो मन में विचार करता था, उसी का यह अनुसरण करता था।

पौराणिक विज्ञान खोजकर्ताओं की मान्यता है कि प्राचीन भारतीय विज्ञान आधुनिक विज्ञान की तुलना में अधिक संपन्न था।

वैदिक साहित्य में चाहें वो दैत्यों हो या मनुष्य उनके द्वारा उपयोग किया पहला विमान पुष्पक ही माना जाता है।

आज भी मौजूद हैं हवाई अड्डे

यूएफओ

इतना ही नहीं लंका में विमानों को रखने के लिए हवाईअड्डे भी बनाएं हुए थे जिसका जिक्र रामायण में भी किया गया है।

इस बात का प्रमाण श्रीलंका के रामायण अनुसंधान कमेटी के वैज्ञानिकों ने 4 हवाई अड्डों की खोज करके दे दिया है। इस कमेटी ने 9 सालों से लंका का कोना-कोना छानकर इन हवाई अड्डों की खोज की है ।

2004 में लंका में स्थित अशोक वाटिका की खोज करने वाले अशोक केंथ हैं। उन्हें सरकार द्वारा कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

यूएफओ

उनका कहना है कि रामायण में वर्णित लंका वास्तव में श्री लंका ही है। यहां उसानगोडा, गुरुलोपोथा, तोतुपोलाकंदा तथा वरियापोला नामक चार हवाई अड्डे मिले हैं।

दक्षिण भारत की कुछ रामायण के अनुसार रावण का निजी हवाई अड्डा उसानगोडा था। इस सन्दर्भ में यह कहा जाता है कि हनुमान जी ने माता सीता की खोज करते समय इसे नष्ट कर दिया था तथा श्री राम ने अयोध्या पहुंचने के उपरांत पुष्पक विमान को पुनः कुबेर को लौटा दिया था।

इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि आज जिस यूएफओ की तकनीक को खोजने में दुनिया भर के वैज्ञानिक अपनी जिन्दगी गवां चुके हैं। उस तकनीक का सृजन वैदिक काल में ही हो गया था। लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि जिस तकनीक का आविष्कार हमारे भारत में हुआ उसे ढूँढने के लिए हम इधर उधर हाँथ पैर मार रहे हैं।

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