यहाँ लोग भगवान से खुद मांगते हैं मौत, जी रहे हैं लाश से भी बद्तर जिंदगी…

इंसान की प्रवृत्ति हमेशा अधिक पाने की होती है। चाहे उसे कोई भी चीज कितनी भी अधिक मात्रा में क्यों न मिल जाए लेकिन वो कभी भी संतुष्ट नहीं होता है।

किसी भी चीज को जब हम बाजार में खरीदने जाते हैं तो कोशिश हमेशा हमारी यही रहती है कि सबसे बेस्ट चीज हमें ही मिले।

बात चाहे बाजार से किसी चीज को खरीदने की हो या फिर बात मकान जैसे बड़े इन्वेस्टमेंट की हो,मार्केट में हम हमेशा बेस्ट की तलाश करते हैं।

यहाँ लोग भगवान से खुद मांगते हैं मौत

घर के मामले में तो ये बात और भी गंभीर हो जाती है। अपने घर को लेकर लोग कॉम्प्रोमाइज करना बिल्कुल भी पसंद नहीं करते,आखिर उन्हें अपनी जिंदगी वही बितानी है।

आज हम आपको उन लोगों के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि अपने घरों को लेकर भी कॉम्प्रोमाइज करते हैं। ये लोग ऐसे घर में रहते हैं जिसके बारे में शायद हम सोच भी नहीं सकते हैं।

हम यहां बात हॉन्गकांग के बारे में कर रहे हैं जहां दो लाख से अधिक लोग इस तरह अपनी जिंदगी काटने को मजबूर है।

यहां ये लोग कॉफिन हाउस में रहते हैं। कॉफिन हाउस इसलिए क्योंकि ये घर वाकई में एक कॉफिन या कब्र के आकार जितना होता है। कभी-कभी तो इन घरों को देखकर तो ऐसा लगता है कि मानों इनसे ज्यादा जगह लाशों को रहने के लिए मिलती है।

यहां लोग किराया देने के बावजूद ऐसे रहने को विवश है। इन कॉफिन होम्स में किचन और टॉयलेट एक साथ होते हैं।

इंसान यहां सामानों के साथ एडजस्ट करते हैं। इन घरों में एक छोटी सी जगह में लोग अपनी जरूरत की सारी चीजों को समेटकर रखते हैं।

बाहर से ये घर रंग-बिंरगे दिखते हैं लेकिन अंदर का नजारा वाकई में काफी दयनीय है। हाउसिंग क्राइसिस के चलते यहां लोग ऐसे रहने को मजबूर है।

इन सारी बातों को जानने के बाद आपको यही लग रहा होगा कि इनका किराया शायद बेहद ही कम होगा। ऐसे में आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन घरों के लिए लोगों को महीने के 11,500 रूपए तक की कीमत चुकानी पड़ती है।

ऐसे मकानों में यहां लोगों के रहने का दौर साल 1950 से 1960 के दशक में शुरू हुआ जब चाइनीज सिविल वॉर के दौरान यहां भारी संख्या में चीनी माइग्रेंट पहुंचे थे।

इस वजह से उस दौरान हॉन्गकांग की आबादी 20 लाख की संख्या पार कर गई ऐसे में लोगों को रहने के लिए इन्हीं केज होम्स या इनएडिक्वेट हाउसिंग का सहारा लेना पड़ा।

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बता दें साल 1990 तक यहां इनएडिक्वेट हाउसिंग की संख्या हजारों तक थी लेकिन साल 1990 में इनकी संख्या बढ़कर एक लाख के करीब पहुंच गई।

यहां कितने लोग रह रहे हैं इसका आंकड़ा मिल पाना मुश्किल है क्योंकि यहां कई केज होम्स गैर कानूनी ढ़ंग से चलाए जा रहे है।

इन घरों को देखने के बाद शायद ही किसी को अपने घर से शिकायत रहेगी क्योंकि यहां जिंदगी गुजारने के लिए वाकई में काफी जद्दोजहत करनी पड़ती है।

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