मोदी चले मालदीव के दौरे पर, लेकिन 5 लाख की आबादी वाला देश इंडिया के लिए क्यों है इम्पोर्टेन्ट?…

दूसरी बार पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी शनिवार हिंद महासागर में स्थित एक छोटे से देश मगर बेहद महत्वपूर्ण मालदीव के एकदिवसीय दौरे पर जा रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां मालदीव की संसद को संबोधित करेंगे और साथ ही वहां पर सामरिक महत्व के Coastal Surveillance Radar system का उद्घाटन करेंगे. ये रडार समुद्र में जहाजों को ट्रैक कर पाने की इंडियन नेवी की क्षमता में इजाफा करेगा.

29 मई को जब ये खबर आई कि दूसरी बार पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली विदेश यात्रा पर मालदीव जा रहे हैं तो कई लोग चौंक गए. आखिर 5 लाख की आबादी वाला ये देश साउथ ब्लॉक के अफसरों की नजर में इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है.

दरअसल मालदीव की दक्षिण एशिया और हिन्द महासागर में जो स्ट्रेटजिक (सामरिक) लोकेशन है वो भारत के लिए बेहद अहम है. मालदीव वो देश है जहां पिछले कुछ सालों में चीन ने अपना प्रभुत्व बढ़ाया है.

चीन ने इस देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में भारी निवेश किया है. दीगर है लक्षद्वीप से मालदीव की दूरी मात्र 700 किलोमीटर है. भारत कभी नहीं चाहेगा कि विश्व मंच पर उसका प्रतिद्वंदी चीन उसके नजदीक आए. इसके अलावा मालदीव के साथ दोस्ती बढ़ाकर भारत नेबरहुड फर्स्ट की नीति पर चल रहा है.

 

भारत की पड़ोसी प्रथम की नीति

पड़ोसी देशों के साथ दोस्ती भारत की विदेश नीति का अहम हिस्सा है नेबरहुड फर्स्ट. यानी कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ दोस्ताना रिश्ते रखेगा और पूरे क्षेत्र में सबका साथ-सबका विकास की नीति पर जोर देगा.

मालदीव यात्रा से पहले पीएम मोदी ने खुद भी कहा है, “मालदीव का मेरा दौरा दोनों देशों के महत्व को प्रतिबिंबित करता है, हम दोनों समुद्री क्षेत्र के पड़ोसी के रूप में अपने रिश्तों से जुड़े हैं और लंबे अरसे से हमारी मित्रता बनी हुई है.” पीएम ने कहा कि उनके दौरे से समुद्री क्षेत्र में स्थित मालदीव के साथ रिश्तों में मजबूती आएगी.

 

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ड्रैगन की चाल पर नजर

2013 से 2018 के बीच मालदीव में ऐसी सरकार आई, जिसके साथ भारत के रिश्ते कड़वाहट भरे रहे. इसकी शुरुआत 2012 में ही हो चुकी थी. जो भारत मालदीव का अहम सहयोगी था, उसी की पूंजी को मालदीव में शक की निगाह से देखा जाने लगा.

मालदीव की तत्कालीन सरकार ने मालदीव के माले हवाई अड्डे के विकास के लिए भारत की जीएमआर समूह को दिया गया 50 करोड़ डॉलर का ठेका रद्द कर दिया था. इसे दोनों देशों के बीच रिश्तों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था.

2013 से 18 के बीच चीन ने मालदीव में जमकर निवेश किया. मालदीव की सरकार और कंपनियों को लोन दिया. हालात यहां तक पहुंच गए कि मालदीव के कुल विदेश कर्ज में 2018 में चीन का हिस्सा 70 फीसदी हो गया.

भारत के लिए ये निश्चित रूप से चिंताजनक था. 2018 में मालदीव में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत के साथ अच्छे रिश्तों की हिमायती सरकार बनी है.

भारत अब चीन के बढ़ते प्रभाव की काट ढूढ़ंने के लिए पिछले साल राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह के शपथग्रहण के दौरान पहुंचकर पीएम नरेंद्र मोदी ने इस देश के साथ अच्छे रिश्तों की शुरुआत कर दी थी. अब नरेंद्र मोदी जब दूसरी बार पीएम बने तो वह इस सफर को आगे बढ़ा रहे हैं.

 

समुद्री व्यापार को सुरक्षा

मालदीव एक ऐसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग से सटा हुआ है जिससे होकर भारत खाड़ी देशों से कच्चे तेल का आयात करता है. लिहाजा भारत के लिए जरूरी है कि इस मार्ग पर उसका कब्जा और दबदबा रहे. इसके लिए मालदीव के साथ रिश्तों में गर्मजोशी जरूरी है.

1200 द्वीपों और 90 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले मालदीव के किनारे नौसैनिक दृष्टि से अहम है. भारत और चीन दोनों ही देश चाहते हैं कि ये इलाका नौसैनिक रणनीति के लिहाज से उसके दायरे में रहे, ताकि समुद्री व्यापार बेरोक टोक फले फूले.

 

भारत का सॉफ्ट पावर

मालदीव के साथ रिश्ते सुधारने के लिए भारत अपने सॉफ्ट पावर का भी इस्तेमाल कर रहा है. इस सिलसिले में यहां बॉलीवुड के काफी फिल्मों की शूटिंग होती रहती है.

यही नहीं भारत ने मालदीव को क्रिकेट सिखाने का भी जिम्मा लिया है. विदेश मंत्रालय बीसीसीआई के साथ मिलकर मालदीव के क्रिकेटरों को ट्रेनिंग देने की योजना पर काम कर रहा है. भारत यहां पर एक स्टेडियम बनवा रहा है.

 

5 लाख की आबादी, 10 लाख पर्यटक

मालदीव की आबादी 5 लाख के आसपास है, लेकिन इस देश में हर साल 10 लाख के करीब सैलानी पहुंचते हैं. ये सैलानी भी इस देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने का काम करते हैं.

भारत से बड़ी संख्या में लोग इस देश में व्यापार और पर्यटन के मकसद से पहुंचते हैं. इस देश का भारत के साथ पुराना सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहा है.

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