नक्सलियों के गढ़ में लोगों के लिए वरदान है यह मेडिकल स्टोर, जानें इससे जुड़ी कुछ अहम बातें

नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास ना होने और आम लोगों की मुश्किल जिंदगी के बारे में हमें अक्सर मीडिया में आने वाली खबरों के जरिए पता चलता रहता है। कई लोग नक्सलियों से डर कर खामोश रहना मुनासिब समझते हैं, लेकिन अगर महिलाएं समाज में बदलाव लाने की ठान लें तो सामने खड़ी कोई भी बाधा उनके दृढ़ इरादों को कमजोर नहीं कर सकती। छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ की 23 साल की युवा महिला कीर्ता दोर्पा ने नक्सलियों के गढ़ में समाज को आगे ले जाना वाला ऐसा कदम उठाया है, जिसे यहां का समाज हमेशा याद रखेगा। नक्सलियों के गढ़ में लोगों के लिए वरदान है यह मेडिकल स्टोर, जानें इससे जुड़ी कुछ अहम बातें

इस इलाके में नक्सलियों के प्रभाव की वजह से विकास नहीं हो सका है। यहां की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। हेल्थ इमरजेंसी होने पर भी यहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मयस्सर नहीं है। साथ ही यहां एचआईवी इंफेक्शन से प्रभावित मरीजों की संख्या भी काफी ज्यादा है। ऐसी स्थिति में यहां के लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए दवाओं की उपलब्धता की जरूरत है। कीर्ता ने इस इलाके की इस बड़ी जरूरत के मद्देनजर यहां मेडिकल स्टोर खोला है। इस मेडिकल स्टोर के खुलने से यहां के लोगों को दवाओं के लिए दूर-दराज के इलाकों तक जाने की मशक्कत नहीं उठानी पड़ेगी। साथ ही यहां की महिलाओं के लिए भी इससे बड़ी सहूलियत मिलेगी।

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अहम बातें

नक्सलियों के गढ़ अबूझमाड़ जंगल में 23 साल की आदिवासी महिला कीर्ता दोर्पा ने पहली बार खोला मेडिकल स्टोर
एचआईवी इंफेक्शन से प्रभावित मरीजों के लिए पीईपी दवाइयों की सख्त जरूरत
अबूझमाड़ के 3,900 वर्ग किमी में फैले नक्सली लिबरेटेड जोन में नहीं मुहैया होती सरकारी सुविधाएं

कीर्ता दोर्पा के इस क्रांतिकारी कदम से बदलेगी इलाके की तस्वीर

मुरिया जनजाति की कीर्ता दोर्पा नारायणपुर जिले के ओरछा में रहती हैं। यहां अपना स्टोर खोलने के बाद इलाके के लोग काफी खुश हैं। गौरतलब है कि नक्सल प्रभावित इलाका होने के वजह से यहां के लोगों को दवाएं खरीदने के लिए 70 किमी से ज्यादा की यात्रा करनी पड़ती है। कीर्ता ने यह मेडिकल स्टोर इंद्रावती नेशनल पार्क के जंगल के बीचोंबीच स्थित जगह में खोला है। इस इलाके में स्वास्थ्य सुविधाओं की बहाली के लिए यहां कुछ समय पहले जन औषधि चल रहा था, लेकिन किन्हीं कारणों से वह बंद हो गया और उसके दोबारा खुलने के भी कोई आसान नजर नहीं आ रहे थे। ऐसे में कीर्ता ने मेडिकल स्टोर खोलने का और अपने इलाके के लोगों को इसके लिए सेहतमंद रखने का फैसला किया। कीर्ता ने एक इंटरव्यू में बताया, ‘मैंने यहां के लोगों से पूछा कि आमतौर पर उन्हें कौन सी दवाइयों की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है और उसी के आधार पर मैंने दुकान में दवाइयां रखी हैं। अब इलाके में लोगों की जरूरत की सभी दवाएं उपलब्ध हैं।

कीर्ता के साहस ने बदली महिलाओं की सोच

कीर्ता ने नक्सलियों के प्रभाव वाले इस क्षेत्र में मेडिकल स्टोर खोलने के दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, ‘हमने मेडिकल स्टोर खोलने के लिए काफी लड़ाई लड़ी। मुझे खुशी है कि इलाके के लोगों को अब जरूरी दवाओं के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। इससे उनका कीमती समय और पैसा दोनों की बचत होगी। समय पर दवाओं की उपलब्धता होने से लाखों लोगों की अनमोल जिंदगी बचाई जा सकेगी।’

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लोगों के लिए वरदान है मेडिकल स्टोर

सूत्रों के अनुसार कीर्ता ने मेडिकल स्टोर खोलने के लिए एक फार्मासिस्ट के साथ साझेदारी की है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में दवाइयों का स्टॉक ज्यादा होता है, लेकिन फिर भी कई बार जरूरी दवाइयों की कमी पड़ जाती है। ऐसे में मेडिकल स्टोर के खुलने से लोगों की अहम जरूरतें पूरी हो सकेंगी।’ कीर्ता अपने काम को लेकर काफी एक्साइटेड हैं। उन्होंने मेडिकल स्टोर खुलवाने में मदद करने के लिए स्थानीय लोगों को धन्यवाद दिया है और उन्हें पूरा भरोसा है कि आने वाले समय में इलाके में विकास को गति मिलेगी।

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