‘मुगल-ए-आजम’ को संगीत देने वाले नौशाद अली के इस हुनर से उनकी शादी तक अंजान थे घरवाले…

हिंदी सिनेमा में कई ऐसे सितारे उभरकर आए जो आज भी अपनी कला के लिए याद किए जाते हैं. उनका काम और उनके व्यक्तित्व की आज भी लोग सरहाना करते हैं. उनमें से ही एक रहे हैं महान और अंग्रणी संगीतकार नौशाद अली. उन्होंने हिंदी सिनेमा के कई बेहतरीन फिल्मों में संगीत दिया है. नौशाद अली का जन्म 25 दिसंबर, 1919 लखनऊ में हुआ था. उन्होंने अपने जीवनकाल में केवल 67 फिल्मों में संगीत दिया था. 5 मई 2006 को 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. उन्हें विशेष रूप से फिल्मों में शास्त्रीय संगीत के उपयोग को लोकप्रिय बनाने के लिए जाना जाता है.

 

 

स्वतंत्र संगीत निर्देशक के रूप में उनकी पहली फिल्म 1940 आई प्रेम नगर थी। उनकी पहली सफल फिल्म रतन (1944) थी। इसके बाद उन्होंने 35 सिल्वर जुबली हिट, 12 गोल्डन जुबली और 3 डायमंड जुबली मेगा सफल दिए। नौशाद को बॉलीवुड फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिए 1981 और 1992 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

फर्जी अकाउंट बनाने वाले पर गुस्साए यह मशहूर कॉस्टिंग डायरेक्टर, सोशल मीडिया पर लताड़ा…

नौशाद अली को बचपन से ही संगीत में रुचि थी। बचपन में नौशाद क्लब में जाकर साइलेंट फिल्म देखा करते थे और नोट्स तैयार किया करते थे। इतना ही नहीं नौशाद अली बचपन में एक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स की दुकान पर सिर्फ इसलिए काम करते थे ताकि उन्हें हारमोनियम बजाने का मौका मिले। आपको जानकर हैरानी होगी कि नौशाद अली की शादी होने तक भी उनके घर वालों को नहीं पता था कि वो संगीतकार हैं। जब नौशाद की शादी हुई थी, उस वक्त शादी में उनके ही कंपोज किए गए एक गाने की धुन बजाई जा रही थी लेकिन नौशाद तब भी नहीं बता पाए कि ये गाना उन्होंने ही कंपोज किया है। इतना ही नहीं नौशाद के ससुराल वालों को भी ये बताया गया कि वह पेशे से बंबई में दर्जी हैं क्योंकि उस दौर में संगीत से जुड़े काम खराब माना जाता था।

 

फिल्म ‘पाकीजा’ के संगीत में भी नौशाद अली का योगदान था। दरअसल गुलाम मोहम्मद साहब के निधन के बाद नौशाद ने ही उस फिल्म का संगीत पूरा किया था। उस बचे हुए संगीत पक्ष में उन्होंने हिंदुस्तानी लोकसंगीत का जमकर इस्तेमाल किया था। जो बैकग्राउंड में बजते थे। हिंदी सिनेमा के सौ साल के इतिहास में अगर शीर्ष की पांच फिल्में चुनी जायें तो ‘मुगल-ए-आजम’ का नाम सबसे ऊपर लिखा जाएगा। इस फिल्म में संगीत नौशाद ने दिया था।

 

टुनटुन, सुरैया, मोहम्मद रफी और शमशाद बेगम जैसी आवाजों को पहला ब्रेक देने वाले नौशाद एक मात्र संगीतकार हैं, जिन्होंने कुंदन लाल सहगल से लेकर कुमार सानू तक को प्लेबैक का मौका दिया। उन्होंने आखिरी बार साल 2005 में फिल्म ‘ताज महल: एन एटरनल लव स्टोरी’ के लिए गाना कंपोज किया था।

 

 

 

LIVE TV