मिर्गी को जड़ से खत्म करती है बाबा की यह खास दवा

एपिलेप्सी या मिर्गी ऐसी अवस्था है जबकि व्यक्ति को असमय झटके आते हैं या फिर कुछ समय के लिए उसकी चेतना तक चली जाती है। ऐसा मस्तिष्क में असंतुलित इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी के कारण होता है। सामान्यत: मिर्गी बचपन में होती है जो अगर लाइलाज रहे तो उसके लक्षण बार-बार सामने आने लगते हैं। मगर कुछ मौकों पर स्ट्रोक के कारण भी बुजुर्गों में मिर्गी के लक्षण व्यक्त होने लगते हैं। मिर्गी के झटके ज्यादा आते हैं या कभी-कभार, यह इस बात से तय करता है कि असामान्य इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी से मस्तिष्क का कितना हिस्सा प्रभावित है।

मिर्गी को जड़

बांबे हेंप कंपनी के सह-संस्थापक जहान पेस्टोन जामास ने शुक्रवार को कहा मिरगी जैसे क्रोनिक रोगों के इलाज में भांग से बनने वाली दवाइयां असरदार साबित हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि कई अनुसंधान से पता चला है कि भांग का दुष्प्रभाव नगण्य होता है जबकि औषधीय गुणों के कारण मानसिक रोगों के अलावा कैंसर के इलाज में भी इससे निर्मित दवाइयों का उपयोग हो सकता है। बांबे हेंप कंपनी (बोहेको) वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (आईआईआईएम) की ओर से यहां आयोजित एक कार्यक्रम के मौके पर आईएएनएस से बातचीत में जमास ने कहा, “भांग में टेट्रा हाइड्रो कैनाबिनोल (टीएचसी) नामक एक रसायन होता है, जिससे नशा होती है। इसके अलावा भांग में सारे औषधीय गुण ही होते हैं।

उन्होंने कहा कि टीएचसी का उपयोग दर्द निवारक दवाओं में किया जाता है, जो कैंसर से पीड़ित मरीजों को दर्द से राहत दिलाने में असरदार होती है। जमास ने कहा कि दवाई बनाने के लिए भांग की खेती करने की जरूरत है, लेकिन वर्तमान नारकोटिक्स कानून में भांग की पत्ती और फूल दोनों को शामिल किए जाने से इसमें रुकावट आती है। उन्होंने कहा, “सरकार से हमारी मांग है कि ऐसी नीतियां बनाई जाएं जिससे अनुसंधान के उद्देश्य से भांग की खेती करने की अनुमति हो।” उन्होंने कहा कि गांजे से 15,000 उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार की औषधियों के रूप में किया जा सकता है।

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‘भारत में भांग अनुसंधान एवं विकास : वैज्ञानिक, चिकित्सा और कानूनी परिप्रेक्ष्य’ विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के अलावा सीएसआईआर-आईआईआईएम के निदेशक डॉ. राम विश्वकर्मा, टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई के निदेशक डॉ. राजेंद्र बड़वे, लोकसभा सदस्य डॉ. धर्मवीर गांधी समेत कई विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।

इस मौके सांसद गांधी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “हमारे पूर्वज अनादि काल से भांग और गाजे का सेवन करते आए हैं। यहां तक कि भागवान शंकर हो भी भांग चढ़ाया जाता है। इस प्रकार पहले कभी भांग और गाजे के सेवन को लेकर कोई समस्या नहीं आई, लेकिन इस क्षेत्र में माफिया की पैठ होने पर समस्या गंभीर बन गई है। ड्रग माफिया युवाओं में नशाखोरी को बढ़ावा दे रहा है।”

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एनडीपीएस मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ वकील प्रसन्ना नंबूदिरी ने कहा, कि एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 10 (2) (डी) के तहत जो रोक है, उसके अनुसार भांग की पैदावार करने वालों को राज्य सरकार के अधिकारियों के यहां भांग को जमा कराना होता है और यह चिकित्सकीय एवं वैज्ञानिक उद्देश्य के लिए भांग के पौधों की पैदावार करने की दिशा में एक बड़ी बाधा है। भांग की खेती करने के संबंध में एनडीपीएस नियम बनाने के मामले में अनेक राज्य सरकारों की विफलता भी एक बड़ी रुकावट है। बांबे हेंप कंपनी (बोहेको) की स्थापना 2013 में की गई थी। यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ साझेदारी में भांग के चिकित्सा और औद्योगिक उपयोग का अध्ययन करने वाला भारत में पहला स्टार्टअप है।

दौरा पड़ने पर क्या न करें

  • मिरगी प्रभावित व्यक्ति को दौरा आने पर उसे रोकने की कोशिश न करें अन्यथा वह आपको चोटिल भी कर सकता है।
  • दौरा आने पर खाने या पीने के लिए कुछ नहीं दें। एक घूंट पानी भी दौरे के दौरान गले में अटक सकता है।
  • दौरा आने पर मुंह में कुछ भी रखने से बचना चाहिए। दौरे के दौरान लोग अपनी जीभ को भीतर लेते हैं लेकिन उसके मुंह में कुछ भी रखने का प्रयास न करें।
  • दौरे के बाद व्यक्ति कुछ देर के लिए अचेत हो सकता है और ऐसा लगता है कि इस दौरान वह श्वास नहीं ले रहा है मगर ऐसे में उसे कार्डियो पल्मोनरी रेस्पिरेशन की कोशिश कभी न करें।

 

 

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