मार्स ग्रुप पर ईडी के सर्च का “सच”

आधा सच और अधूरी जानकारी पूरे झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होती है..लिहाजा लोकतंत्र में सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जनता के सामने सही तथ्यों को सही तरीके से रखा जाए..एक मीडिया हाउस होने के नाते हम अपनी जिम्मेदारी के तहत आज आपको कुछ ऐसी सच्चाइयों से अवगत कराने जा रहे हैं जो आप तक जरूर पहुंचनी चाहिए…

मार्स ग्रुप पर ईडी के सर्च का "सच"

22 फरवरी 2020 को प्रवर्तन निदेशालय ने बाइक बोट घोटाले के संबंध में नोएडा, लखनऊ, चंडीगढ़ के 12 ठिकानों पर तलाशी अभियान शुरू किया. इस घोटाले के संबंध में बहुत से लोग जेल में हैं. जिसका मुकदमा चलाया जा रहा है. बहरहाल लखनऊ में इस तलाशी अभियान की चपेट में मार्स ग्रुप और एकार्ड हाइड्रोलिक्स नाम की कंपनियां भी आईं. जिनके लखनऊ स्थित दफ्तरों में ये अभियान चलाया गया.

मार्स ग्रुप पर ईडी के सर्च का सच

ईडी की डिप्टी डायरेक्टर शालिनी शर्मा के नेतृत्व में चलाए गए इस अभियान में मार्स ग्रुप और एकार्ड हाइड्रोलिक्स नाम की कंपनियों से जुड़ी कोई गड़बड़ी नहीं मिली, जिसके दस्तावेज़ी सबूत मौजूद है. ईडी की टीम अपने साथ कुछेक फाइल्स और 3 हार्ड डिस्क ले गई जिसके बारे में पड़ताल हो रही है.

किसी तरह का कैश या कोई दूसरी अनुचित सामग्री इस सर्च ऑपरेशन के दौरान नहीं मिली. हालांकि ईडी के अफसरों के हवाले से जो खबरें दी गईं उनसे ऐसा लगता है कि मानो कोई बहुत भारी भरकम गड़बड़ी के दस्तावेज मिले हों, लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है.

बाइक बोट घोटाले से जबरन जोड़ा गया मार्स ग्रुप का नाम-

अब आपको आंकड़ों के साथ समझाते हैं कि बोट बाइक स्कैम की आरोपी कंपनी गर्वित और मार्स ग्रुप की कंपनियों के बीच क्या संबंध हैं.

  1. एकॉर्ड हॉइड्रोलिक्स और गर्वित कंपनियों के बीच पहला समझौता दिसंबर 2018 में हुआ.
  2. समझौते के तहत एकॉर्ड हॉइड्रोलिक्स को ई-बाइक्स बनाकर गर्वित को देनी थी.
  3. समझौता डिमांड एंड सप्लाई पर आधारित था, यानी जितनी डिमांड की जाएगी उतनी ई-बाइक्स देनी है.
  4. जनवरी 2019 से समझौता अमल में आया जो मार्च 2019 तक चला.
  5. इन तीन महीनों में एकॉर्ड हॉइड्रोलिक्स ने गर्वित कंपनी को लगभग 500 ई-बाइक्स दीं जिसके बदले एकॉर्ड हॉइड्रोलिक्स को 5 करोड़ का भुगतान किया गया.
  6. सारा भुगतान सरकारी नियमों के तहत सारे कर चुकाकर, बैंक के माध्यम से  किए गये जिनके दस्तावेज़ प्रवर्तन निदेशालय के पास हैं.
  7. मार्च 2019 के बाद गर्वित ने ई-बाइक्स की डिमांड बंद कर दीं और ये समझौता खत्म हो गया.
  8. अभी भी गर्वित पर एकॉर्ड हॉइड्रोलिक्स का करीब 11 लाख रुपये का बकाया है.

 

 अब दूसरे समझौते के बारे में भी जान लीजिए

दिसम्बर 2018 में मार्स ग्रुप और गर्वित के बीच सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट को लेकर समझौता हुआ.

समझौते के मुताबिक ग्रेटर नोएडा के दादरी में मार्स एनवॉयरोटेक कंपनी को गर्वित के लिए एक पॉवर प्लांट लगाना था.

समझौते की शर्तों के मुताबिक प्लांट को लगाने और सारी सामग्री उपलब्ध कराके उसे चालू करने के बदले में मार्स एनवॉयरोटेक कंपनी को 15 करोड़ रूपये मिलने थे. काम मार्च 2019 तक ही चला.

इस दौरान गर्वित कंपनी ने मार्स एनवॉयरोटेक को 3.35 करोड़ रूपये दिए और उससे कहीं ज्यादा का काम कंपनी ने कर दिया.

मार्च 2019 के बाद काम बंद हो गया क्योंकि गर्वित कंपनी की तरफ से पेमेंट आनी बंद हो गई

 

यही वो दो सौदे थे जिनके आधार पर गर्वित कंपनी का मार्स ग्रुप के साथ संबंध होना बताया जा रहा है. अब जरा कुछ और तथ्यों पर गौर कर लीजिए.

सारे व्यावसायिक समझौते सरकारी नियमों के अनुसार ही किए गए.

पैसों के लेनदेन नियमों के मुताबिक हुए जिनके सारे टैक्स (जीएसटी समेत) का भुगतान किया गया.

सारे भुगतान बैंकों के माध्यम से किए गए और कंपनी के पोर्टल पर उनकी जानकारी उपलब्ध है.

जीएसटी का भुगतान करने वाली कंपनी का लेनदेन छुपा नहीं रह सकता.

अब प्रश्न ये हैं कि…

जब ये सारे समझौते और लेनदेन सार्वजनिक हैं तो फिर तलाशी क्यों ?

संवाददाताओं को मार्स ग्रुप के इस पक्ष की जानकारी क्यों नहीं दी गई ?

इन प्रश्नों का एक ही उत्तर समझ में आता है, वो ये कि किसी खास वजह से मार्स ग्रुप के मैनेजमेंट को प्रताड़ित करना, वजह क्या हो सकती है, ये शायद आप समझ गए होंगे.

 

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