‘मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत’

सोनीपत। मानसिक स्वास्थ्य को सबसे उपेक्षित बताते हुए जिंदल इंस्टीट्यूट ऑफ बिहेवियरल साइंसेज (जेआईबीएस) के प्रधान निदेशक संजीव पी. साहनी ने पैरा-मेडिकल बिरादरी के बीच गुणवत्ता युक्त प्रशिक्षण व जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया।

दक्षिण अफ्रीका के स्टेलनबोस में एकेडमिक काउंसिल ऑफ यूएन सिस्टम्स (एसीयूएनएस) के 2019 के वार्षिक बैठक में साहनी ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य को अंतर्राष्ट्रीय रूप से विकास लक्ष्यों में सबसे उपेक्षित विकास के मुद्दों में माना जाता है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल के आंकड़े बताते हैं कि प्रति 100,000 जनसंख्या पर मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल सिफारिश के न्यूनतम स्तर से काफी कम है। इसे बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है, इसके लिए पैरा-मेडिकल बिरादरी के बीच जागरूकता और गुणवत्ता प्रशिक्षण की जरूरत है।”

साहनी ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) के एक भाग, जेआईबीएस द्वारा आयोजित, ‘एचीविंग द सस्टेनेबल डेवलेपमेंट गोल-3 : मेंटल हेल्थ एंड सब्जेक्टिव वेल बीइंग : टुवर्डस बिल्डिंग क्वालिटी ऑफ लाइफ’ पर एक कार्यशाला में बोल रहे थे।

मेडिकल चिकित्सकों के प्रतिनिधिमंडल में संजीव पी.साहनी और उनकी टीम शामिल थी जिसमें मोहिता जुन्नारकर, मंजुश्री पलित और तिथि भटनागर शामिल थीं। समिति का ध्यान दो सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने पर केंद्रित रहा। इसमें पहला सभी उम्र के लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होने व दूसरा मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की जरूरत है।

जेआईबीएस की उप निदेशक मोहिता जुन्नारकर ने बच्चों और युवाओं में आत्म-नियंत्रण, आत्म-जागरूकता, सहानुभूति जैसे सामाजिक और गैर-संज्ञानात्मक कौशल को बढ़ाने और विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

इसके अलावा, उन्होंने भावनात्मक स्वास्थ्य के आकलन की जरूरत पर ध्यान केंद्रित किया, जिसके लिए आत्म-नियंत्रण, आत्म-जागरूकता, सहानुभूति, यथार्थवादी अभिविन्यास, नेतृत्व के गुणों की जरूरत है। यह जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक है। उन्होंने भावनात्मक स्वास्थ्य पर चर्चा की, जिसे जेआईबीएस द्वारा विकसित किया जा रहा व मान्यता दी जा रही है।

जेआईबीएस की अतिरिक्त निदेशक मंजुश्री पालित ने मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए साइकोलॉजिकल इंटरवेंशन ट्रेनिंग व सलाह और पर्यवेक्षण की आवश्यकता पर विचार व्यक्त किए।

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उन्होंने कहा, “विश्व स्तर पर साक्ष्य-आधारित कार्यो में प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी है। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण में उच्च, मध्य व निचले आय वाले देशों के बीच साझेदारी की जरूरत है, जिससे प्रशिक्षण के लिए नियम, कार्यशालाएं और पर्यवेक्षण विकसित हो सकें।”

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