माँ काली की अद्भुत प्रतिमा

rajrrapa50_1460002942_570c01309699cएजेंसी/झारखंड की राजधानी रांची के पास रजरप्पा स्थित छिन्नमस्तिके मंदिर दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है। मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर देखतीं माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप बना है। मान्यता है कि यह मंदिर महाभारत काल में बना था। यहां भक्त बिना सिर वाली देवी मां की पूजा करते हैं, मां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। 

इतना ही नहीं यहाँ है माँ काली की अद्भुत प्रतिमा जिसके दर्शन करना ही बड़े सौभाग्य की बात है तो आइये हम आपको बताते है इस अद्भुत प्रतिमा का कैसा स्वरुप है। उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है। शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं। बायां पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं।

मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में हैं। दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं।

क्या आप जानते है माता का सर उनके हाथ में क्यों है ?
माता का सर काटने को लेकर भूख से सम्बंधित कथा है जो की इस प्रकार है एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने आई थीं। स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि भूख से बेहाल उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। आग्रह के बाद मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बह निकलीं। सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने उन दोनों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा। 

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