महाबोधि मन्दिर : यहां प्राप्‍त हुआ था भगवान बुद्ध को ज्ञान

महाबोधि मन्दिर एक पवित्र बौद्ध धार्मिक स्थल है क्योंकि यह वही स्थान है जहाँ पर गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यहां पर पश्चिमी हिस्से में पवित्र बोधि वृक्ष स्थित है। मंदिर की संरचना में द्रविड़ वास्तुकला शैली की झलक दिखती है। राजा अशोक को महाबोधि मन्दिर का संस्थापक माना जाता है। यह सबसे पहले बौद्ध मन्दिरों में से है जो पूरी तरह से ईंटों से बना है और वास्तविक रूप में अभी भी खड़ा है।

बोध-गया घूमने के लिए दो दिन का समय पर्याप्‍त है। अगर आप एक रात वहां रूकते हैं तो एक दिन का समय भी प्रर्याप्‍त है। बोध-गया के पास ही एक शहर है गया। यहां भी कुछ पवित्र मंदिर हैं जिसे जरुर देखना चाहिए। इन दोनों को देखने के लिए कम से कम एक-एक दिन का समय देना चाहिए। एक अतिरिक्‍त दिन नालन्‍दा और राजगीर को देखने के लिए रखना चाहिए। बोधगया घूमने का सबसे बढिया समय बुद्ध जयंती (अप्रैल-मई) है जिसे राजकुमार सिद्धार्थ के जन्‍मदिवस के रुप में मनाया जाता है। इस समय यहां होटलों में कमरा मिलना काफी मुश्किल होता है। इस दौरान महाबोधि मंदिर को हजारों कैंडिलों की सहायता से सजाया जाता है। महाबोधि मन्दिर यह दृश्‍य देखना अपने आप में अनोखा अनुभव होता है। इस दृश्‍य की यादें आपके जेहन में हमेशा बसी रहती है।

बोधगया में ही मगध विश्‍वविद्यालय का कैंपस है। इसके नजदीक एक सैनिक छावनी है तथा करीब सात किलोमीटर दूर एयरपोर्ट है जहाँ से थाईलैंड, श्रीलंका बर्मा इत्यादि के लिए नियमित साप्ताहिक उड़ानें उपलब्ध हैं।

बोधि वृक्ष

बोधगया में स्थित इस वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध ने ध्यान करके ज्ञान प्राप्त किया था। इस मंदिर का निर्माण बोधि वृक्ष के ठीक पूर्व में करवाया गया है। जिसे मूल बोधि वृक्ष का वंश का माना जाता है।

बौद्ध पौराणिक कथाओ के मुताबिक, यदि इस स्थान पर कोई भी बोधि वृक्ष उत्पन्न नहीं होता है तो बोधि वृक्ष के आस पास के क्षेत्र के सभी पेड़ पौधे नष्ट हो जायेंगे।

इस स्थान पर पृथ्वी की नाभि है और कोई भी स्थान बुद्ध का वजन नहीं उठा सकता था। अन्य बुद्ध परंपरा का दावा है की युग के अंत में जब दुनिया नष्ट हो जायेगी, तब बोधिमन्दा नष्ट होने का सबसे अंतिम स्थान होगा और जब दुनिया का अस्तित्व फिर से उभरेगा तो प्रकट होने का सबसे पहला स्थान होगा। परंपरा यह भी दावा करती है की यहाँ एक कमल का फूल खिलेगा और यदि बुद्ध ने नए युग में फिर से जन्म लिया तो कमल का फूल उनके बड़े होने के साथ साथ बढ़ता ही रहेगा। पौराणिक कथाओ के अनुसार, जिस दिन गौतम बुद्ध जन्म लेंगे उस दिन बोधि वृक्ष बड़ा हो जायेगा।

20130707

मंदिर निर्माण

250 ईसा पूर्व के आस पास, बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के लगभग 200 वर्ष बाद, सम्राट अशोक ने बोधगया का दौरा किया और इस पवित्र स्थल पर एक मठ और मंदिर के निर्माण का आदेश दिया। नए महाबोधि मंदिर में हीरे का सिंहासन (जिसे वज्रासन भी कहा जाता है) है जो बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति स्थल को चिन्हित करता है। सम्राट अशोक को महाबोधि मंदिर का संस्थापक माना जाता है।  इस मंदिर का निर्माण 5वीं–6वीं शताब्दी के दौरान करवाया गया था। लगभग चौथी शताब्दी के दौरान, नव पटना में टेराकोट पटिया पाई गयी थी।

महाबोधि मन्दिर की केन्द्रीय लाट 55 मीटर ऊंची है और इसकी मरम्मत 19वीं शताब्दी में करवाई गयी थी। महाबोधि मन्दिर चारों ओर से पत्थरों की बनी दो मीटर ऊँची चहारदीवारी से घिरा है। चहारदीवारियों पर सूर्य, लक्ष्मी और कई अन्य हिन्दू देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनी हैं।

कैसे जाएं

बोधगया का नज़दीकी हवाई अड्डा गया सात किलोमीटर दूर है। गया अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा, जिसे बोधगया अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे को नाम से भी जाना जाता है, बोधगया से सात किमी तथा गया रेलवेस्टेशन से 10 किमी की दूरी पर है। यह बिहार का एकमात्र अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा है और चीन, जापान, श्रीलंका जैसे एशियाई देशों तथा प्रमुक भारतीय शहरों से जुड़ा है। निकटतम रेलवे स्टेशन गया है और सभी प्रमुख शहरों से गाड़ियाँ गया को जोड़ती हैं। बुद्ध परिक्रमा गाड़ी सभी बौद्ध तीर्थ स्थलों से होती हुई बोद्ध आध्यात्म पर्यटन कराती है।

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