अब मच्छर मारेंगे माइक्रोसॉफ्ट और गूगल

मच्छरनई दिल्ली। ज़ीका, डेंगू, मलेरिया जैसी बेहद खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। लोग इन बीमारियों की चपेट में आकार अपनी जान तक गंवा देते हैं। लेकिन आने वाले टाइम में ये मुमकिन होगा की ये बीमारियां हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएं। क्योंकि अब मच्छरों को ख़त्म करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट और गूगल ने ज़िम्मा उठा लिया है।

आपको बात दें कि, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बड़ी टेक्नॉलजी कंपनियों ने मच्छरों के खिलाफ ऑटोमेशन और रोबॉटिक्स के जरिए जंग छेड़ दिया है। अगर ये कामयाब हो जाती हैं तो मच्छरों के बढ़ते प्रकोप को ख़त्म किया जा सकता है। माइक्रोसॉफ्ट कॉर्प और ऐल्फाबेट जैसी कम्पनियों के लाइफ सायंसेज डिविजन यूएस के पब्लिक हेल्थ ऑफिशल्स के साथ हाथ मिला रहे हैं और नए हाई-टेक टूल्स ईजाद कर रहे हैं।

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टेक्सस में, माइक्रोसॉफ्ट एडीज ऐजिप्टी मच्छरों को पकड़ने के एक स्मार्ट ट्रैप पर काम कर रहा है। ये मच्छर डेंगू के वाहक होते हैं। इस स्मार्ट ट्रैप की मदद से कीट विज्ञान शास्त्रियों की स्टडी को मदद मिलेगी जिससे मच्छरों से होने वाली बीमारियों के रिस्क घटाए जा सकेंगे। पक्षियों के पिंजरे के आकार के इस डिवाइस में रोबॉटिक्स, इन्फ्रारेड सेंसरों, मशीन लर्निंग और क्लाउड कम्प्यूटिंग की मदद ली गई है जिससे स्वास्थ्य अधिकारी मच्छरों पर नज़र रख पाएंगे।

अधिकतर पारंपरिक मच्छरदानियां मक्खियों, कीट-पतंगों सभी को पकड़ती हैं जिससे कीट विज्ञान शास्त्रियों के लिए कई सारे स्पेसिमेन इकट्ठे हो जाते हैं और उन्हें काम की चीज़ ढूंढनी पड़ती है। माइक्रोसॉफ्ट की मशीनें हर कीट के अलग फीचर से और उनके पंख फड़फड़ाने पर पड़ने वाली परछाईं से उन्हें पहचानेंगी। जब यह ट्रैप एक एडीज़ ऐजिप्टी मच्छर को अपने 64 चेम्बरों में से एक में पहचानेंगी तो तुरंत दरवाज़ा बंद हो जाएगा।

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यह डिवाइस डिवेलप करने वाले माइक्रोसॉफ्ट इंजिनियर ईथन जैकसन ने बताया कि टेस्ट्स में सामने आया कि ये ट्रैप्स एडीज़ ऐजिप्टी और दूसरे मेडिकली महत्वपूर्ण मच्छरों को 85% ऐक्युरसी के साथ पकड़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि ये मशीनें अभी सिर्फ प्रोटोटाइप्स हैं। ये तापमान और नमी जैसी वातावरण की स्थितियां भी रिकॉर्ड करती हैं। इस डेटा की मदद से यह जानने वाले मॉडल बनाए जा सकते हैं कि कब और कहां मच्छर ज्यादा ऐक्टिव रहते हैं।

इसी बीच, मस्कीटोमेट आईएनसी नाम के एक स्टार्टअप ने वोलबाचिया नाम के एक प्राकृतिक बैक्टीरिया की मदद से नर मच्छरों को स्टराइल कर दिया जाता है। जब ये स्टराइल मच्छर मादा मच्छरों से मिलते हैं, तो इनके अंडे ही नहीं बन पाते। लेकिन, इसमें सबसे बड़ी चुनौती है मच्छरों के लिंग को पहचानना।

यहां गूगल की पैरंट कम्पनी ऐल्फाबेट का लाइफ सायंस डिविजन वेरिली आता है। यह कम्पनी रोबॉट्स की मदद से मच्छरों का लिंग पहचानने की प्रक्रिया को तेज़ और बहुत अफॉर्डेबल बना रही है।

हालांकि, इन चीज़ों को बड़े स्केल पर उपलब्ध होने में कई साल लगेंगे, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन नई तकनीकों के आने से कीटों पर नियंत्रण के नए तरीके मिलेंगे। फिलहाल पारंपरिक तरीकों जैसे कीटनाशक और लार्वा नाशकों का ही प्रयोग किया जाता है।

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