मकर संक्रांति की खिचड़ी कुडंली के ग्रहों पर क्या असर डालती है, यहां पढ़े

मकर संक्रांति का त्‍योहार तिल-गुड़ और खिचड़ी खाए बिना पूरा नहीं माना जाता है। इस पर्व के शुभ अवसर पर तिल-गुड़, खिचड़ी खाने के साथ-साथ दान करने का भी बहुत महत्‍व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों के जल में स्‍नान करते हैं। सूर्य को अर्ध्‍य देकर पूजा करते हैं और फिर तिल-गुड़, गजक, खिचड़ी का दान करते हैं। मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और उत्‍तरायण होने पर मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 14 और 15 जनवरी दोनों को मनाया जाएगा। हालांकि ज्‍योतिषाचार्यों के कारण पुण्‍य काल 15 जनवरी की सुबह रहने के कारण इस‍ दिन स्‍नान-दान करना बेहतर है।

मकर संक्रान्ति के दिन सभी को खिचड़ी जरूर खाना चाहिए। यह खिचड़ी बेहद खास होती है। इसका न केवल धार्मिक महत्‍व है, बल्कि यह ज्‍योतिष के लिहाज से भी बहुत खास है। इस दिन घरों में काली उड़द दाल डालकर खिचड़ी बनाई जाती है। यह खिचड़ी खाने से सूर्य देव और शनि देव दोनों की कृपा मिलती है। इसके अलावा चावल को चंद्रमा का कारक, नमक को शुक्र का, हल्दी को गुरु का, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है। वहीं खिचड़ी का ताप मंगल से संबंधित है। ऐसे में इस खिचड़ी को खाने से कुंडली के सारे ग्रह अच्‍छा फल देने लगते हैं।

मान्‍यता है कि मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी बनाने और बांटने की परंपरा बाबा गोरखनाथ के समय से शुरू हुई थी। जब खिलजी ने आक्रमण किया तो नाथ योगियों को युद्ध के बीच भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे ही लड़ाई के लिए निकल जाते थे। तब बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी पकाने की सलाह दी, इससे पेट भी भर जाता था और पूरा पोषण भी मिल जाता था। जब खिलजी से युद्ध के बाद मुक्ति मिली तो योगियों ने मकर संक्रांति के दिन उत्‍सव मनाया और याद के रूप में खिचड़ी पकाई। साथ ही सभी को खिचड़ी बांटी भी। तब से ही गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी का मेला भी लगता है।

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