
नई दिल्ली| भारतीय बैडमिंटन जगत में 2018 का साल महिला खिलाड़ियों के नाम रहा, जहां उन्होंने खिताबी जीतों से अपने कौशल को साबित किया, वहीं यह भी दर्शाया कि फिटनेस के मामले में वह पुरुष खिलाड़ियों से कम नहीं या यूं कहें कि उनसे बेहतर हैं।
फिर चाहे वह ऑल इंग्लैंड ओपन हो या एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों जैसे बड़े टूर्नामेंट।
ऑल इंग्लैंड ओपन की बात की जाए, तो इसमें एकमात्र पदक केवल एक भारतीय महिला खिलाड़ी ने जीता और वह थीं सिंधु। उन्होंने इस टूर्नामेंट में कांस्य पदक हासिल किया था।
सिंधु को ऑल इंग्लैंड ओपन के सेमीफाइनल में जापान की अकाने यामागुची से हार का सामना करना पड़ा था और ऐसे में उन्हें कांस्य पदक हासिल हुआ।
इसके अलावा, इस टूर्नामेंट में श्रीकांत, बी.साईं प्रणीत और एच.एस. प्रणॉय जैसे दिग्गज पुरुष खिलाड़ी सेमीफाइनल तक की राह भी तय नहीं कर पाए।
इसके बाद, राष्ट्रमंडल खेलों में भी महिला खिलाड़ियों ने अधिक सफलता हासिल की। मिश्रित टीम स्पर्धा में भारत को स्वर्ण पदक हासिल हुआ, वहीं एकल स्पर्धाओं में सिंधु ने महिला वर्ग में रजत और सायना नेहवाल ने स्वर्ण पदक हासिल किया।
सिंधु और सायना के बीच इस टूर्नामेंट का फाइनल मुकाबला खेला गया, जिसमें सायना ने रियो ओलम्पिक की रजत पदक विजेता को सीधे गेमों में 21-18, 23-21 से मात दी।
पुरुष वर्ग में श्रीकांत और प्रणॉय को निराशा हाथ लगी। जहां एक ओर श्रीकांत को रजत पदक हासिल हुआ, वहीं प्रणॉय को कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा।
विश्व चैम्पियनशिप में सिंधु को रजत पदक हासिल हुआ। उन्हें फाइनल में स्पेन की दिग्गज कैरोलिना मारिन ने सीधे गेमों में 21-19, 21-10 से मात दी। यहां सायना की किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और उन्हें क्वार्टर फाइनल में हारकर बाहर होना पड़ा।
पुरुष वर्ग में देखा जाए, तो समीर वर्मा अंतिम-32 दौर तक का सफर ही तय कर पाए। उनके साथ प्रणॉय भी इससे आगे नहीं बढ़ सके। श्रीकांत अंतिम-16 दौर तक ही पहुंच सके और प्रणीत एक कदम आगे क्वार्टर फाइनल तक पहुंचकर बाहर हो गए।
इस साल अगस्त में एशियाई खेलों में महिला खिलाड़ियों ने भारतीय बैडमिंटन को गौरवांन्वित किया। सिंधु को इस टूर्नामेंट में रजत और सायना को कांस्य पदक हासिल हुआ। हालांकि, सिंधु को एक बार फिर फाइनल में निराशा हाथ लगी लेकिन वह पदक जीतने में सफल रहीं।
श्रीकांत पुरुष वर्ग में अंतिम-32 दौर में ही बाहर हो गए, वहीं प्रणॉय भी इसी दौर तक हाथ आजमा सके। दोनों को ही बिना पदक के लौटना पड़ा।
भारतीय खिलाड़ियों के लिए अहम रहने वाले सैयद मोदी अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में समीर वर्मा ने खिताबी जीत हासिल कर साल का सकारात्मक रूप से समापन करने में सफलता पाई।
समीर ने फाइनल में चीन के ली ग्वांगझू को हराकर खिताबी जीत हासिल की। इस टूर्नामेंट में श्रीकांत हिस्सा नहीं ले सके, वहीं प्रणॉय अंतिम-32 दौर और प्रणीत क्वार्टर फाइनल तक ही पहुंच सके।
महिला वर्ग में सैयद मोदी अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में सिंधु ने हिस्सा नहीं लिया लेकिन सायना ने रजत पदक अपने नाम किया। उन्हें फाइनल में चीन की हान ये से हार मिली थी।
बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड टूर फाइनल्स में सिंधु ने खिताबी जीत हासिल की और वह इस उपलब्धि को हासिल करने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बन गईं। साल के समापन तक उन्होंने एक नया इतिहास रचा।
इस टूर्नामेंट के पुरुष वर्ग में समीर सेमीफाइनल तक का सफर तय कर पाए। इसके अलावा, श्रीकांत, प्रणॉय जैसे खिलाड़ियों ने इसमें हिस्सा नहीं लिया।
युगल वर्गो की स्पर्धाओं में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नजर डाली जाए, तो यह मिलीजुली रही हैं। सात्विक साईंराज रैंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी ऑल इंग्लैंड ओपन के पुरुष युगल वर्ग में अंतिम-16 दौर तक ही पहुंच सकी, वहीं अश्विनी पोनप्पा और एन.सिक्की रेड्डी की जोड़ी अंतिम-32 दौर तक की राह ही तय कर पाई।
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राष्ट्रमंडल खेलों में सात्विक और चिराग को कांस्य पदक हासिल हुआ, वहीं अश्विनी और सिक्की की जोड़ी ने कांस्य पदक अपने नाम किया।
विश्व चैम्पियनशिप में भारतीय जोड़ियों को खाली हाथ लौटना पड़ा। एशियाई खेलों में भी इन जोड़ियों को एक भी पदक हासिल नहीं हुआ।
सैयद मोदी अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में अश्विनी और सिक्की की जोड़ी ने रजत पदक हासिल करने में सफलता प्राप्त कही, वहीं सात्विक और चिराग की जोड़ी ने भी फाइनल में पहुंचकर रजत पदक अपने नाम किया।
इस साल जूनियर खिलाड़ियों में लक्ष्य सेन ने अपनी पहचान बनाने में सफलता हासिल की। उन्होंने एशिया जूनियर चैम्पियनशिप में खिताबी जीत हासिल करने के बाद यूथ ओलम्पिक खेलों में पहला रजत पदक हासिल किया।
विश्व जूनियर चैम्पियनशिप में वह सेमीफाइनल तक का सफर ही तय कर पाए, लेकिन उन्होंने टाटा इंडिया ओपन का खिताब जीतकर साल का सकारात्मक रूप से समापन किया।