बेकार गए नमामि गंगे प्रोजेक्ट 2000 करोड़, देखिए इन तीन सालों का आकड़े

नई दिल्ली। बीजेपी सरकार ने अपने घोषणा पत्र में इस बात की भी घोषणा की थी कि उनकी सरकार बनते ही गंगा की सफाई का भी काम शुरू होगा। सरकार बनने के बाद कई बार सरकार ने ये दावा भी किया कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट से गंगा के पानी में बदलाव आ रहा है। लेकिन हाल ही में आई एक एनजीओ की रिपोर्ट ने सरकार के सारे दावों पर पानी फेर दिया।

एनजीओ के रिपोर्ट के अनुसार गंगा के पानी को पिछले तीन सालों में पहले से भी खराब होने का दावा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) में बढ़ोत्तरी हुई है।

वाराणसी में स्थित एनजीओ संकट मोचन फाउंडेशन (एसएमएफ) ने एक सर्वे में गंगा के पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा अधिक बताई है। गंगा नदी के जल में ऐसे बैक्टीरिया का अधिक मात्रा में पाए जाने से उसकी जल क्वॉलिटी को कल्पना से भी ज्यादा खराब माना जा रहा है।

बता दें कि एनजीओ 1986 से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा लॉन्च किए गए गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा के जल क्वॉलिटी का सर्वे कर रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगा नदी के संरक्षण, स्वच्छता और कायाकल्प हेतु नमामि गंगे नामक एक प्रॉजेक्ट शूरू किया था। गंगा नदी की स्वच्छता के लिए कुल 20 हजार करोड़ रुपए लगाने का ऐलान 2015 में हुआ था। वहीं 2019 में इसकी डेडलाइन बढ़ाकर 2020 कर दी गई थी।

एनजीओ के अध्यक्ष और आईआईटी बीएचयू प्रोफेसर वीएन मिश्रा ने बताया, ‘गंगा जल में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की अधिक संख्या मानव स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है।’ सर्वे के अनुसार, पीने के पानी में कोलीफॉर्म ऑर्गनिज्म 50 एमपीएन/100 मिली या इससे कम होना चाहिए।

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वहीं नहाने के पानी में कोलीफॉर्म 500 एमपीएन प्रति 100 मिली होना चाहिए। जबकि बीओडी में यह 3 एमजी प्रति लीटर से कम होना चाहिए। वहीं यह भी ध्यान देने की बात है कि गंगा नदी के जल में कोलीफॉर्म जनवरी 2016 में 4.5 लाख (अपस्ट्रीम) और 5.2 करोड़ (डाउनस्ट्रीम) से फरवरी 2019 में 3.8 करोड़ और 14.4 करोड़ हो गया है। इसी तरह बीओडी लेवल भी जनवरी 2016 से फरवरी 2019 तक 46.8-54mg/l से 66-78mg/l हो गया है।

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