गजब है ये थ्योरी अब जवानी में पता चल जाएगी बुढ़ापे की यह बीमारी, 20 साल पहले ही हो जाएगा इलाज…

नई दिल्ली। अब आपको दो दशक पहले पता चल जाएगा कि बुढ़ापे में आपकी याद्दाश्त कैसी होगी। अगर आपकी याद्दाश्त खराब होने वाली होगी तो आप दो दशक पहले की उसका इलाज करा सकते हैं।

यह अद्भुत करिश्मा कर डाला है वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिकल की टीम ने। उन्होंने लंबी रिसर्च के बाद यह उपाय खोज निकाला है जिससे अब आपको बुढ़ापे की कोई चिंता करने की ज़रुरत नहीं है।

एक ब्लड टेस्ट के जरिए अब डिमेंशिया का पता लगाया जा सकेगा। खास बात है कि बढ़ती उम्र से जुड़ी भूलने की इस बीमारी का पता दो दशक पहले ही चल जाएगा। एक हालिया अध्ययन के मुताबिक साधारण ब्लड टेस्ट के जरिए बीमारी के लक्षण दिखने से 16 साल पहले ही डिमेंशिया की जांच की जा सकेगी। इस तरह रोग की आहट से पहले ही रोग का पता चल सकेगा और वक्त रहते रोकथाम कर पाना संभव होगा।

परीक्षण में न्यूरोफिलामेंट नाम के प्रोटीन का पता लगाया गया है। आमतौर पर मस्तिष्क की कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त या मृत होने के बाद यह प्रोटीन रक्त और सेरेब्रोस्पाइनल फ्लुड में लीक होता है। शोधकर्ता स्टेफनी शुल्त्स का कहना है कि लक्षण प्रकट होने से 16 साल पहले बीमारी का पता चलना बहुत प्रारंभिक प्रक्रिया है, लेकिन हम अंतर देख पाए हैं। यह उन मरीजों की पहचान करने के लिए एक अच्छा प्रीक्लिनिकल बायोमार्कर हो सकता है, जिनमें इस बीमारी से जुड़े लक्षण पनप रहे हैं।

दरअसल शोधकर्ता लंबे समय से यह जानते हैं कि डिमेंशिया की बीमारी में एक निश्चित प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं में लीक होने के बाद सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड में चला जाता है। लेकिन इस प्रोटीन को कैसे मापा जाए, इस बारे में पता नहीं लगा सके थे। मगर, वैज्ञानिकों का कहना है कि वह रक्त जांच में अब इस प्रोटीन को डिटेक्ट कर सकते हैं।

इतना ही नहीं, इस प्रोटीन के स्तर के साथ ही उसके बढ़ने की गति की भी जांच की जा सकती है। टेस्ट में देखा जा सकेगा कि क्या प्रोटीन उसी गति से बढ़ रहा है, जिस गति से मस्तिष्क के न्यूरॉन खत्म हो रहे हैं और मस्तिष्क सिकुड़ रहा है।

सेंट लुई में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिकल की टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्लड टेस्ट बेहद आसान है। इसके नतीजे अच्छे हैं, फास्ट है और सबसे बड़ी बात सस्ता है। क्लीनिक में ब्रेन कंडीशन की रुटीन जांच में यह ब्लड टेस्ट अहम भूमिका निभा सकता है। प्रोटीन की जांच करने वाला यह ब्लड टेस्ट मिडिल एज में किया जाएगा। ठीक उस अवस्था से पहले, जब अधिकतर लोगों में एल्जाइमर जैसी बीमारी का पता चलता है।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह परीक्षण अल्जाइमर के शुरुआती लक्षणों और अन्य न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर का पता लगाने में मददगार साबित होगा। कुछ वर्षों में इसे क्लीनिक में इस्तेमाल होते देखा जा सकेगा।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी हम उस पड़ाव पर नहीं हैं, जहां इस जांच के बाद व्यक्ति को कह सकें कि पांच साल बाद आपको डिमेंशिया होगा। लेकिन, उस कदम की ओर बढ़ जरूर रहे हैं और जल्द कामयाबी मिलने की संभावना है।

अनुमान के हिसाब से सभी उम्र के करीब 5.7 लाख अमेरिकी 2019 में अल्जाइमर से पीड़ित हुए। अल्जाइमर एसोसिएशन के अनुसार, 2050 तक यह आंकड़ा 1.4 करोड़ तक होने की संभावना है। इससे जूझ रहे रोगी की याददाश्त में कमी आ जाती है और संज्ञानात्मक बोध कम हो जाता है।

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अध्ययन में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों में दोषपूर्ण जीन वैरिएंट वाले 40 लोग थे। अपनी पिछली क्लीनिकल जांच के दो साल बाद उनका ब्रेन स्केन और संज्ञानात्मक परीक्षण हुआ। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन प्रतिभागियों के प्रोटीन में दो साल के अंतराल पर जादुई इजाफा हुआ, उनके उनके मस्तिष्क में न्यूरॉन की कमी और सिकुड़न भी देखी गई। मेमोरी टेस्ट और संज्ञानात्मक परीक्षण में भी उनकी प्रस्तुति खराब निकली।

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