यूपी देगा भाजपा को अब तक का सबसे बड़ा झटका, डोल जाएगा पीएम मोदी का सिंघासन!

बीजेपी पांचों राज्यों मेंनई दिल्ली। आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी पांचों राज्यों में अपने झंडे गाड़ने की फिराक में है। इनमें से उसके लिए सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश होगा क्योंकि राजनीतिक परिदृश्य से उत्तर प्रदेश का पूरे देश में एक अलग ही रुतबा है और देश की राजनीति भी यहीं से होकर गुजरती है।

बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में अपनी पैठ बनाने की राह इसलिए भी थोड़ी आसान नजर आती है क्योंकि यहां पिछले लगभग छ महीने से सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में मचा घमासान किसी से छिपा नहीं है। बीजेपी नोटबंदी को भी इस चुनाव में एक अहम मुद्दा मान रही है। उसे इससे फायदा मिलने की उम्मीद भी नजर आ रही है।

बता दें कि अगले महीने उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड और पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं और देश के लगभग आधे राज्यों से ज्यादा राज्यों में बीजेपी की ही सरकार सत्ता पर काबिज है और भाजपा किसी भी हाल में इन सभी राज्यों में अपनी सरकार बनाना चाहेगी।

बीजेपी को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा की आपसी कलह के साथ साथ नोटबंदी से भी फायदा मिलने की उम्मीद है लेकिन राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में नोटबंदी का असर बीजेपी के लिए घातक सिद्द हो सकता है।

नोटबंदी से खुश नहीं किसान

नोटबंदी से नाखुश किसानों ने उन्हे होने वाली तमाम दिक्कतों के लिए पीएम मोदी को ही जिम्मेदार ठहराया है। किसानों का आरोप है कि नोटबंदी के माहौल में स्थानीय ग्रामीण बैंकों ने जमकर धांधली की है और हमें फसलों में खाद डालने तक के पैसे नहीं मिल पा रहे हैं। किसानों ने बताया कि आम जनता लाइन में लगी रहती है और बैंक के मैनेजर पिछले दरवाजे से अपने चहेतों को रकम बांट रहे हैं। किसानों ने बताया कि उन्हे अपने ही पैसे नहीं मिल पा रहे हैं और बीज और खाद लगातार महंगे होते जा रहे हैं। वहीं हमारी फसलों की कीमत घटती जा रही है।  ऐसे में हम क्या खायेंगे और अपने परिवार को क्या खिलाएंगे। वहीं दूसरी ओर शहर और कस्बों के लोग भी नोटबंदी से खासे परेशान नजर आ रहे हैं। उनका आरोप है कि लोग अपने ही पैसे लेने के लिए बैंक की लाइनों में घंटों खड़े रहते हैं और पुलिस वाले हमें ही अपराधी की नजरों से देखते हैं।

खबरों के मुताबिक सपा में मचे घरेलू घमासान में अखिलेश की छवि और निखर कर सामने आ रही है और पार्टी के मौजूदा नेता और विधायक अखिलेश के नाम को ही भुनाने में लगे हैं। लोग यूपी में पिछले पांच सालों में हुए विकास के नाम पर आगामी चुनाव में लोगों का समर्थन मांग रहे हैं और अखिलेश को एक बार फिर से चुनने की अपील कर रहे हैं।

डायल-100 और 108 ऐंबुलेंस सेवा ने जीता सबका दिल

बता दें कि सपा की हमेशा से एक ही समस्या रही है वह है राज्य में कानून और व्यवस्था की कमी। जिसके बाबत बीते 20 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव राज्य में अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना डायल-100 की शुरुआत की थी। जिसका उद्देश्य पिछड़े और दूर दराज के इलाकों से अपराध को मिटाना था और इस परियोजना से पुलिस की लगातार बढ़ रही पहुँच से काफी हद तक अपराध पर लगाम भी लगी है। वहीं दूसरी ओर अखिलेश प्रशासन की एक और परियोजना मील का पत्थर साबित होती हुई दिख रही है वह है 108 ऐंबुलेंस सेवा। इससे भी लोग खुश दिखाई देते हैं। अभी इस सेवा को शुरू हुए 3 महीने भी पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन इसको लेकर लोगों में अखिलेश की विकास के चेहरे वाली छवि मजबूत हो गई है।

सपा में कलह से मजबूत हुए अखिलेश

खबरों के मुताबिक राज्य में सत्तासीन समाजवादी पार्टी में मची कलह से भी अखिलेश का एक अलग व्यक्तित्व और रुतबा निकलकर सामने आया है और इसका फायद बीजेपी के मुकाबले अखिलेश को ही मिलता दिख रहा है। सपा के पुराने ढ़र्रे से परेशान लोगो ने अखिलेश को ही राज्य में अनुशासन और कानून-व्यवस्था के लिए ज्यादा अनुकूल माना है।

निजी स्कूलों के शिक्षक भी हैं खुश

अखिलेश ने निजी स्कूलों के शिक्षकों से किये गये अपने वादे को पूरा करके भी उनके दिल में अपनी पैठ बना ली है। बता दें कि अखिलेश सरकार ने निजी मान्यता प्राप्त शिक्षकों को 5,000 रुपये का वेतनमान देने का वादा किया था। अखिलेश ने इसके लिए बजट में भी प्रावधान किया था और पिछले एक महीने से कुछ विद्यालयों के शिक्षकों को यह वेतनमान मिलने भी लगा है। वहीं दूसरी ओर जिन शिक्षमित्रों को सहायक अध्यापक के तौर पर नियुक्त किया गया है वे भी अपना पूरा समर्थन समाजवादी पार्टी को ही देंगे।

बसपा की ढीली पकड़

इसबार समाजवादी पार्टी में अखिलेश के रुतबे के आगे बसपा सुप्रीमो मायावती भी फीकी पड़ती नजर आ रही हैं। यूपी की जनता भी अखिलेश में हाथ में कमाने आने से काफी खुश नजर आ रही है और राज्य में पहले की अपेक्षा कानून-व्यवस्था में भी सुधार हुआ है। जिसका पूरा श्रेय लोग अखिलेश को ही दे रहे हैं। सूत्रों की माने तो बसपा का हरिजन और पिछड़ा वोटबैंक भी कहीं न कहीं सपा और बीजेपी में ही जाता दिख रहा है। बीएसपी की रैलियों में होने वाली हल्की-फुल्की भीड़ से जानकारों का कहना है कि इस बार बीएसपी के लिए किसी भी सीट पर जीत हासिल करना टेढ़ी खीर होगी।

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