समय जिस रफ्तार से दौड़ रहा है, उसकी दुगनी रफ्तार से इंसान को भागना पड़ रहा है। अगर वह ऐसा नहीं करेगा, तो वह उसी रफ्तार से पीछे भी चला जाएगा। समय से आगे होना और पीछे होना, यह बात तो चलती रहती है लेकिन इसका असर तब ज्यादा होता है और हमारे दिमाग को परेशान करता है। जब इसकी वजह से हमें दूसरों के ताने सुनने होते हैं या फिर अन्य कारणों से दबाव झेलना पड़ता है। अगर आप दबाव की बात करें, तो आपने इंग्लिश के एक शब्द को सुना जरूर होगा। क्योंकि यह शब्द दबाव के लिए ही इस्तेमाल होता है और काफी प्रचलित भी है।
बुलीइंग के सबसे ज्यादा उदाहरण हमें ऐसी उम्र में देखने को मिलते हैं, जब इंसान के दिमाग और शरीर के विकास का सही समय होता है। यह समय होता है बचपन का। आज एक युवा और बुजुर्ग इतना परेशान नहीं है, जितना कि स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा इस दबाव से परेशान है। दरअसल बुलीइंग का मतलब होता है, दबाव डालना या फिर धौंस दिखाना, चिढ़ाना या फिर मजाक उड़ाना और अंत में इसी के चलते पीटना भी।
इसके ज्यादातर मामले हमें बचपन के दौरान ही देखने को मिलते हैं और उस समय का प्रभाव इंसान पर ताउम्र रहता है। बच्चे एक तरफ जहां स्कूल में अपने साथियों, अध्यापकों और अन्य लोगों के जरिए दबाव झेलते हैं, तो वहीं कभी-कभी माता-पिता भी इस भूमिका को निभाने में पीछे नहीं रहते। यही कारण है कि ऐसे बच्चे इसी तनाव को लेकर पलते और बड़े होते हैं और उसका असर उनके काम में भी दिखने लगता है।
सारा अली खान की इस हरकत से सोशल मीडिया पर घटने लगी उनकी फैन फॉलोइंग…
हाल ही में लंदन में इस मामले को लेकर एक शोध हुआ था, जिसमें यह बात सामने आई थी कि किशोरावस्ता में बुलीइंग का शिकार होने वाले में से 40 प्रतिशत लोगों को मनोरोगी होने की आशंका रहती है। यह लक्षण इंसान में तब दिखाई देते हैं, जब वह 20 से 25 साल की उम्र में पहुंचते हैं। मनोरोग को हम आज कल डिप्रेशन के रूप में पुकारते हैं। यह बीमारी बोलने में जितनी साधारण सी लगती है, यह उतनी ही भयावह भी होती है, क्योंकि कभी-कभी इसकी वजह से इंसान की जान तक चली जाती है।
इसकी वजह से ही उन्हें आगे चलकर अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेने में दिक्कत होती है और फिर नौकरी पाने में भी उन्हें काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है और इसी तरह नाकामियां झेलते-झेलते धीरे-धीरे इंसान मौत के रास्ते को ही अंतिम सहारा बना लेता है। लैंकस्टर यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट स्कूल के अर्थशास्त्र विभाग में असोसिएट रह चुकीं एम्मा गॉरमैन ने अपनी इस स्टडी के लिए यूके के 7000 छात्र-छात्राओं को चुना।
उन्होंने उन छात्र-छात्राओं से उस समय बात की जब वे 14-16 की उम्र के थे। उसके बाद लगभग दस वर्षों तक उनसे समय-समय पर बातचीत की गई। जिसके बाद उन्होंने पाया कि टीनेजर्स की बुलीइंग मुख्यत: स्कूल में होती है। लड़कियां में यह मामले भावनात्मक बुलीइंग से जुड़े होते हैं। ऐसा तब होता है जब उन्हें ग्रुप से अलग-थलग कर दिया जाता है, दोस्तों से बातचीत बंद कर दी जाती है या किसी बात को लेकर उन्हें चिढ़ाया जाता है। वहीं दूसरी ओर लड़के में हिंसक बुलीइंग के ज्यादातर मामले देखे जाते हैं।
यह अध्ययन भले ही विदेश के बच्चों को शामिल कर किया गया हो लेकिन ऐसी स्थिति के शिकार दुनिया भर के बच्चे होते हैं। विकसित देशों में बच्चों को इसके खिलाफ कानून के तहत कई अधिकार मिले हुए हैं। इसलिए उन्हें मां-बाप या किसी और रिश्तेदार की बुलीइंग का शिकार नहीं होना पड़ता है। वहीं भारत में बच्चे अपने स्कूलों में नहीं बल्कि घर में ही पिता, चाचा या दादा की बुलीइंग का शिकार होते हैं।
यहां पर ऐसी रूढ़िवादी परंपरा चली आ रही है कि एक बच्चे के ‘भले’ होने का अर्थ होता है कि वह चुपचाप बड़ों की आज्ञा मानता रहे। अगर बच्चा अपनी मर्जी से कुछ भी करता है या अपनी आंखों से दुनिया देखने की कोशिश करने लगता है तो उसे मौखिक उपदेश दिया जाता है या फिर ज्यादा होने पर उसकी पिटाई कर दी जाती है। जिसकी वजह से वह अपनी इच्छाओं को और भावनाओं को मन ही मन मारने लगता है और यही से उसके मनोरोगी होने की शुरुआत होती है।
दिल्ली की 7 सीटों की किस्मत का आज हो रहा है फैसला, ये हैं प्रमुख मुद्दे
इसी बुलीइंग की वजह से ही उस बच्चे की सोचने-समझने की शक्ति, कल्पनाशक्ति और सृजनात्मक्ता आदि सभी खत्म हो जाती हैं। यही नहीं ऐसे बच्चे घर में या फिर बाहर कहीं भी खुलकर बोलने में संकोच करते हैं और घर में किसी का साथ भी नहीं पसंद करते।
अतं में वह अकेले में रहते हुए डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। बड़े होने पर ऐसे लोग कोई पहलकदमी नहीं कर पाते। वे नए विचार खोजने के बजाय केवल दूसरों के आदेश का पालन ही करते हैं। इनमें से कई ऊपर से भले ही शांत दिखते हों पर कई मौकों पर वे उग्र हो जाते हैं। ऐसे ही कुंठितों में से कुछ बलात्कारी भी निकलते हैं। परिवारों और स्कूलों में संवाद का माहौल बनना चाहिए ताकि बच्चों का स्वाभाविक विकास हो सके।