फैशन डिजिनाइर मसाबा गुप्ता की बायोपिक नेटफ्लिक्स पर हुई रिलीज़, नीना गुप्ता ने कही ये बात …

हाल में नेटफिलक्स पर रिलीज सोनम नायर निर्देशित वेब सीरीज ‘मसाबा मसाबा’ में नीना गुप्ता अपनी ही भूमिका में नजर आईं। इस शो में उनकी बेटी मसाबा के जीवन के वास्तविक पलों के साथ काल्पनिक घटनाओं को भी जोड़ा गया है। असल जीवन में बेबाकी, शो में अपने किरदार व अन्य मुद्दों पर हुई बातचीत के अंश…

इस शो के लिए स्वीकृति देना आपके लिए आसान था?

शुरुआत में समझ नहीं आया कि निर्माता अश्विनी यार्डी क्या बनाने वाली हैं। धीरे-धीरे उन्होंने कहानी पर काम किया और उसका खाका खींचा। आखिर में जब छह एपिसोड की स्क्रिप्ट लिखी गई तो मुझे बहुत पसंद आई वर्ना मैं स्क्रिप्ट को लेकर तनाव में थी। उसे पढ़ने के बाद मेरे सारे संशय दूर हो गए।

आप अपनी बायोपिक के लिए कितनी तैयार हैं?

मैं अपने जीवन में खुश हूं। मेरे दुनिया को अलविदा कहने के बाद कोई बनाएगा तो चलेगा। बहरहाल, मैंने इस बारे में कभी सोचा नहीं।

वेब सीरीज के पहले एपिसोड में आप तीन रुपए के लिए सब्जीवाले से मोलभाव करती हैं। क्या अब भी यह आदत कायम है?

मैं बिल्कुल मोलभाव नहीं करती, लेकिन यह घटना तब की है जब मेरे पिताजी मेरे साथ मुंबई में रहते थे। वह दिल्ली से आए थे। सब्जी खरीदने से लेकर गेहूं पिसवाने तक का सारा काम खुद ही करते थे। मुंबई आने पर जब भी सब्जी लेने जाते तो कहते कि मुंबई में सब्जी बहुत महंगी है, जबकि दिल्ली में सस्ती है। वह एक-एक रुपए के लिए मोलभाव करते थे। मुझे बहुत गुस्सा आता था। मैं कहती थी कि आप सब्जीवाले से मोलभाव करते हैं। वह कितना कमाता ही है, मगर उनसे रहा नहीं जाता था। उन्हें यहां सब्जी महंगी ही लगती थी। लेखन के दौरान मैंने यह बात टीम से साझा की थी। उन्हें यह आइडिया पसंद आया और शो में मुझ पर ही फिल्मा दिया।

मसाबा आपके साथ बचपन से ही सेट पर जाती थीं। उनमें एक्टिंग का शौक नहीं जगा?

मसाबा 14 साल की उम्र से ही एक्टर बनना चाहती थीं, मगर मैंने ही उनसे इस तरफ ध्यान न देने की सलाह दी थी। उस उम्र में एक्टर बनने से ज्यादा ग्लैमर आकर्षित करता है। बाद में उन्होंने अपना ध्यान फैशन इंडस्ट्री की ओर केंद्रित कर लिया और खुद को फैशन डिजाइनर  के तौर पर स्थापित भी कर चुकी हैं।

शो में सीन है कि मसाबा अफ्रीका से हैं, इस बारे में कुछ बताएंगी?

यह भी असल जिंदगी में घटित घटना से लिया गया है। मसाबा दिल्ली के लाजपत नगर गई थीं। वहां उन्होंने अपने डिजाइन किए गए कपडे़ की कॉपी देखी। दुकानदार से पूछा कि यह प्रिंट कहां से मिला? तो उसने कहा कि अफ्रीका में एक जगह है मसाबा, यह वहां से इंपोर्ट होकर आता है। यह हिस्सा मसाबा की दिक्कतों को बयां करता है। मुझसे कुछ लोग पूछते थे कि आपकी बेटी हिंदी बोल लेती है? मैं उन्हें बताती थी कि बोर्ड परीक्षा में उसके 90 प्रतिशत अंक आए थे। वह बहुत अच्छी हिंदी बोल लेती हैं।

यह वेब शो कोई संदेश भी दे रहा है?

मेरे हिसाब से यह दो बातों की ओर खास ध्यान आकर्षित कर रहा है। पहला, जो लड़कियां टिपिकल हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियों जैसी नहीं दिखतीं, उनमें आत्मविश्वास बढे़गा कि अगर उनमें टैलेंट है तो वह भी अपना मुकाम बना सकती हैं। दूसरा, इसमें दिखाया है कि कैसे मसाबा की प्रोफेशनल और निजी जिंदगी में उथल-पुथल मची थी। इन हालातों से लड़ते हुए वह कैसे खड़ी होती हैं, मुझे लगता है कि यह युवा लोगों के प्रेरणादायक है। इसमें डायलॉग है कि आपको अपनी मुसीबतों से खुद लड़ना होगा। अपने रंग, वजन या  किसी भी तरह की बात को लेकर कोई पूर्वाग्रह न पालें। अपनी काबिलियत पर यकीन रखें।

अपनी बेटी का नाम मसाबा कैसे रखा?

यह नाम मेरी बेटी के पिता विवियन रिचर्ड का दिया हुआ है। तब तक उन्होंने मसाबा को देखा नहीं था। मैं फोन पर उनसे बात कर रही थी। बातों-बातों में मैंने उनसे बेटी के लिए कोई अच्छा सा नाम बताने को कहा। उन्होंने एक दिन बाद मुझे फोन करके कहा कि मसाबा नाम कैसा रहेगा? इसका अर्थ होता है  ‘राजकुमारी’। मैंने मसाबा की तरफ देखा तो लगा कि उसके अनुरूप परफेक्ट नाम है।

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