प्रेरक-प्रसंग: ‘‘ज्ञानी तो निडर भया’’

एक गुरू गोविन्दसिंह जी ने शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही । उन्होंने तम्बू में पहले से पाँच बकरे बाँधकर रख दिये । और उपस्थित सिक्ख समूह के सामने, जिनकी संख्या लगभग पाँच हजार थी । हाथ में नंगी तलवार लेकर आये और कहा, क्या तुममें से कोई एक अपना सिर देने को तैयार है ? हमें एक सिर की जरूरत है । यह सुन सारे लोग स्तब्ध रह गये । गुरू ने फिर पुछा, क्या कोई भी मुझे अपना सिर देने को तैयार नहीं ?

इतने में एक सिक्ख सामने आया और बोला, मेरा सिर हाजिर है । गुरू उसे तम्बु के अन्दर ले गये और उसे एक और बिठाकर उन्होंने तलवार से एक बकरे का सिर काट डाला । फिर खून से सनी तलवार के साथ बाहर आये और उन्होंने कहा, खून की कमी है । क्या और कोई एक सिर दे सकता है ?

एक दूसरा सिक्ख सामने आया । गुरू उसे भी अन्दर ले गये और उसे बिठाकर उन्होंने दूसरे बकरे का सिर काटा और बाहर आकर एक और सिर की माँग की । इस तरह कुल पाँच सिक्ख अपना सिर देने को तैयार हुए । उन सबको अन्दर बिठाकर वे फिर बाहर आये और उन्होनें और सिर की मांग की, लेकिन अब सब डर गये थे और कोई भी मौत के मुँह में जाने को तैयार न था । तब वे बोले बड़े दुःख की बात है कि पाँच हजार में से केवल पाँच ही निकले, जिन्होंने गुरू की खातीर अपना सिर देने की पेशकश की ।

फिर वे अन्दर गये और उन पाँचों सिक्खों को बाहर लाकर उन्होंने सबसे कहा, मैं तुम लोगों की परीक्षा ले रहा था कि कौन गुरू के लिए जान की परवाह नहीं करता । केवल ये पाँच सिक्ख इस परीक्षा में खरे उतरे । इस लिए आज से ये ‘‘पंच प्यारे’’ कहलायेंगे । आज भी सिक्ख सम्प्रदाय में ‘‘पंच प्यारे’’ की बड़ी महिमा है ।

 

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