प्रेरक-प्रसंग: पेशवा बाजीराव को सिखाया बड़प्पन

बाजीराव पेशवा मराठा सेना के प्रधान सेनापति थे। एक बार वह किसी युद्ध में विजयी होकर सेना सहित राजधानी लौट रहे थे। रास्ते में उन्होंने मालवा में पड़ाव डाला। पूरी सेना बुरी तरह से थकी हुई थी। क्या सैनिक और क्या राजा, सभी भूख-प्यास से बेहाल थे, किंतु खाने के लिए अब उनके पास पर्याप्त सामग्री नहीं थी। यह देखकर बाजीराव ने अपने एक सरदार को बुलाकर किसी खेत से फसल कटवाकर छावनी में लाने का आदेश दिया।

पेशवा बाजीराव

बाजीराव के आदेश का पालन करते हुए सरदार सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी लेकर पास के गांव में पहुंचा। गांव के बाहर उसे एक किसान दिख गया। उसने किसान को सबसे बड़े खेत पर ले जाने को कहा। किसान को लगा कि यह कोई अधिकारी है, जो खेतों का निरीक्षण करने आया है। बड़े खेत पर जाते ही सरदार ने सैनिकों को फसल काटने का आदेश दिया। यह सुनते ही किसान चकरा गया।

उसने हाथ जोड़कर कहा, ‘महाराज! आप इस खेत की फसल न काटें। मैं आपको दूसरे खेत पर ले चलता हूं।’ सरदार और उसके सैनिक किसान के साथ चल पड़े। वह उन्हें कुछ मील दूर ले गया और वहां एक छोटे-से खेत की ओर संकेत कर कहा, ‘आपको जितनी फसल चाहिए, यहां से काट लीजिए।’ सरदार ने नाराज होते हुए कहा, ‘यह खेत तो बहुत छोटा है। फिर तुम हमें यहां इतनी दूर क्यों लाए?’ तब किसान नम्रता से बोला, ‘वह खेत किसी दूसरे का था। मैं अपने सामने उसका खेत कैसे कटता देखता? यह खेत मेरा है, इसलिए आपको यहां लाया।’

किसान का बड़ा दिल देखकर सरदार का गुस्सा ठंडा हो गया। उसने फसल नहीं कटवाई और बाजीराव को सारी बात बताई। तब बाजीराव ने अपनी गलती सुधारते हुए किसान को उसकी फसल के बदले पर्याप्त धन दिया और फसल कटवाई।

शिक्षा: नम्रता बड़प्पन को दर्शाती है।

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