पूर्व सैनिकों की चिट्ठी का सच आया सामने, इस तरह हुआ खुलासा

नई दिल्ली। गुरुवार को खबर चली कि देश के आठ पूर्व प्रमुखों और 148 अन्य पूर्व सैनिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर सशस्त्र सेनाओं का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने पर आक्रोश जताया है। इस खबर पर विपक्ष अपनी रोटियां सेंक पाता उससे पहले ही इस खबर ने दम तोड़ दिया।


बता दें कि जो पत्र राष्ट्रपति को लिखा गया, उसमें जिन लोगों के हस्ताक्षर की बात कही जा रही है उनमें पूर्व सेना प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) एसएफ रॉड्रिग्ज, जनरल (सेवानिवृत्त) शंकर रॉयचौधरी और जनरल (सेवानिवृत्त) दीपक कपूर, भारतीय वायु सेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) एनसी सूरी शामिल हैं।

तथाकथित पत्र में पूर्व सैनिकों ने लिखा था, “महोदय हम नेताओं की असामान्य और पूरी तरह से अस्वीकृत प्रक्रिया का जिक्र कर रहे हैं जिसमें वह सीमा पार हमलों जैसे सैन्य अभियानों का श्रेय ले रहे हैं और यहां तक कि सशस्त्र सेनाओं को ‘मोदी जी की सेना’ बताने का दावा तक कर रहे हैं।” पत्र में पूर्व सैनिकों ने चुनाव प्रचार अभियानों में भारतीय वायु सेना के पायलट अभिनंदन वर्धमान और अन्य सैनिकों की तस्वीरों के इस्तेमाल पर भी नाखुशी जताई है।

इस तरह के पत्र को लेकर सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश की जाने लगी। लोग मोदी सरकार को सवालों में घेरने लगे। लेकिन अब 150 पूर्व सैनिकों के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को खत लिखने की बात झूठी साबित होती दिख रही है। बता दें कि राष्ट्रपति भवन ने भी ऐसे किसी पत्र के मिलने से इनकार किया है। अब आ रही जानकारी में कहा गया है कि पूर्व सैनिकों द्वारा लिखित कोई भी खत राष्ट्रपति भवन को नहीं मिला है।

इतना ही नहीं राष्ट्रपति भवन के खंडन के बाद पूर्व सेना प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) एसएफ रॉड्रिग्ज ने भी इन खबरों को झूठ बताया है। और कहा कि उन्होंने ऐसे किसी भी पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

रिटायर्ड एयर चीफ मार्शल एनसी सूरी ने मीडिया को बताया कि राष्ट्रपति को यह चिट्ठी एडमिरल रामदास ने नहीं लिखी जैसा दावा किया जा रहा है। यह सोशल मीडिया पर ही टहल रही है।

इसको लेकर पूर्व सेना उपाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल एमएल नायडु ने भी साफ किया कि, ‘नहीं इस तरह के किसी भी पत्र के लिए मेरी सहमति नहीं ली गई और न ही मैंने कोई पत्र लिखा है।

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इस कथित चिट्ठी को लेकर जो अब सच सामने आया है उससे साफ है कि पूर्व सेना प्रमुखों के सहारे फायदा उठाकर अपना राजनीतिक फायदे साधने की कोशिश की जा रही थी।

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