न निगाहों से छेड़ा न हाथ लगाया फिर भी भुगती आठ साल की जेल, रिहा होने पर मिला…

पी.सत्यम बाबूविजयवाड़ा। करीब आठ साल बाद रविवार को आंध्र प्रदेश का एक युवक पी.सत्यम बाबू एक ऐसे अपराध की सजा भुगतकर बाहर निकला, जो अपराध उसने किया ही नहीं था। हैदराबाद उच्च न्यायालय द्वारा एक छात्रा के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले से बरी किए जाने के दो दिन बाद पी.सत्यम बाबू को राजामुंदरी केंद्रीय जेल से रिहा किया गया। सत्यम बाबू ने आठ साल जेल में गुजारे।

अदालत ने आंध्र प्रदेश सरकार को सत्यम बाबू को एक लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया और मामले की जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया।

महिला सत्र न्यायालय ने विजयवाड़ा में 30 सितंबर, 2010 को सत्यम बाबू को आयशा मीरा से दुष्कर्म करने और उसकी हत्या करने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

विजयवाड़ा के निकट इब्राहिमपट्टनम में 27 दिसंबर, 2007 को एक निजी महिला छात्रावास में 19 वर्षीय फार्मेसी की छात्रा से दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी।

पुलिस ने 17 अगस्त, 2008 को एक सेलफोन चोरी मामले में सत्यम बाबू के गिरफ्तार होने पर मामले में सुराग मिलने का दावा किया था। पुलिस ने कहा कि उसने हत्या की बात स्वीकार की है।

जेल से अंतिम तौर पर रिहा होने पर रविवार को सत्यम बाबू अपनी मां मरिअम्मा को देखकर पूरी तरह भावुक हो गए।

सत्यम बाबू ने आयशा के माता-पिता के सहयोग के लिए उनका धन्यवाद किया और उन्होंने असली दोषियों को सजा देकर न्याय की मांग की।

आयशा के माता-पिता ने वास्तविक अपराधियों को बचाने के लिए गरीब दलित युवक को बलि का बकरा बनाए जाने का आरोप लगाया।

शमशाद बेगम और इकबाल बाशा ने आरोप लगाया कि राज्य के तत्कालीन मंत्री कोनेरु रंगा राव के संबंधी दुष्कर्म और हत्या में शामिल थे। पुलिस ने जांच को गुमराह करने के लिए सत्यम बाबू को हत्या और दुष्कर्म से जोड़ दिया और उसे गिरफ्तार कर लिया।

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