गुजरात के इस ‘हवामहल’ में आ कर तो देखिए असली वाला भूल जाएंगे

पावागढ़ लोग घूमने के लिए अक्सर किसी खास टूरिस्ट प्लेस की तलाश करते रहते हैं. लेकिन इस खास जगह पर घूमने के साथ देवी माँ के भी दर्शन हो जाएंगे. तो ऐसे में घूमने का मजा दोगुना हो जाता है. यह जगह पर्यटन स्थल के साथ ही आस्था का एक बड़ा केंद्र माना जाता है. यह वड़ोदरा से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पावागढ़ के नाम से मशहूर है.

गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित पावागढ़ महाकाली का मंदिर पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है.

ऊंची पहाड़ी पर स्थित मंदिर और उसके आसपास का नज़ारा बहुत ही शानदार है.
यह मंदिर अयोध्या के राजा भगवान श्री रामचंद्रजी के समय का है. इस मंदिर को एक जमाने में शत्रुंजय मंदिर कहा जाता था. माघ महीने के शुक्ल पक्ष में यहां मेला लगता है.

पावागढ़ की कहानी भी बहुत ही रोचक है. एक जमाने में दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई आसान नहीं थी. चारों तरफ गहरी खाइयां और इनकी वजह से हवा का वेग भी हर तरफ एक-सा रहता है. इसलिए इसे पावागढ़ कहा जाता है. इसका मतलब ऐसी जगह जहां पवन का वास एक हो.
पावागढ़ में स्थित प्राचीन महाकाली का मंदिर माता के शक्तिपीठों में से एक है. शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहां सती के अंग गिरे थे.

पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है. इसकी तलहटी में चंपानेरी नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था.

करीब 1471 फुट की ऊंचाई पर माची हवेली स्थित है. यहां स्थित मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोप वे की सुविधा उपलब्ध है. मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.

पुराणों के अनुसार, दक्ष के यज्ञ के दौरान अपमानित हुई सती ने योग बल से अपने प्राण त्याग दिए थे. सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे. माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गये.

सती के दाहिने पैर का अंगूठा यहीं गिरा था, जिसके कारण इस जगह का नाम पावागढ़ हुआ. इस मंदिर में दक्षिणमुखी काली मां की मूर्ति है, जिसकी तांत्रिक पूजा की जाती है.

एक ओर जहां महाकाली मंदिर हिंदुओं की आस्था का केंद्र है तो वहीं इस मंदिर की छत पर मुस्लिमों का पवित्र स्थल है, जहां अदानशाह पीर की दरगाह है. यहां बड़ी संख्या में हिंदुओं के साथ ही मुस्लिम श्रद्धालु भी दर्शन करने के लिए आते हैं.

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