सरकार बनने के 15 दिन बाद खुला सबसे बड़ा राज, इसलिए योगी को मिली यूपी की सत्ता, नहीं तो…

पारिवारिक कलह का लाभलखनऊ। हाल में संपन्न हुए उप्र विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) में अब रार शुरू हो गई है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने चुनाव के बाद पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि अखिलेश के पास दिमाग है पर वोट नहीं। पारिवारिक कलह का लाभ भाजपा को मिला। 

उन्होंने कहा, “मैं अब अखिलेश के भरोसे नहीं, बल्कि जनता के भरोसे रहूंगा। वहीं अखिलेश ने छह-सात अप्रैल को पार्टी के जिला से लेकर प्रदेश पदाधिकारियों एवं फ्रंटल संगठनों की बैठक बुलाई है।”

मालूम हो कि इस चुनाव में सपा का खासा नुकसान हुआ है। 224 विधायकों वाली पार्टी महज 47 सीटों पर सिमट कर रह गई है। लेकिन कलह का पार्ट-3 आरंभ हो गया है। चुनाव परिणाम आने के बाद ही सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि यह सपा की नहीं, घमंड की हार है।

इसके बाद अखिलेश यादव एवं मुलायम सिंह यादव ने जीते विधायकों की अलग-अलग बैठक बुलाई। लेकिन यह बैठक सिर्फ अखिलेश ही कर सके, जिसमें उन्होंने हार की समीक्षा करने के साथ ही नेता प्रतिपक्ष का पद अपने समर्थक राम गोविंद चौधरी को सौंप दिया। जबकि मुलायम मो. आजम खां एवं शिवपाल यादव को नेता प्रतिपक्ष का पद देना चाहते थे। ये दोनों ही नेता पूर्व में यह जिम्मेदारी संभाल भी चुके हैं।

इसके अलावा मुलायम ने चुनावी हार पर पहली बार चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा, “मेरी जिंदगी में यह मेरा सबसे बड़ा अपमान था। अखिलेश ने अपने ही चाचा शिवपाल को मंत्री पद से हटा दिया। पारिवारिक कलह का फायदा भाजपा को मिला। कोई बाप अपने बेटे को मुख्यमंत्री नहीं बनाता, लेकिन मैंने उसे बनाया। देश में किसी और नेता ने अब तक ऐसा नहीं किया।”

इस बीच लखनऊ कैंट सीट से चुनाव हार चुकी मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव इन दिनों भाजपा के करीब आती दिख रही हैं। महज 15 दिनों में वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर चुकी हैं। इसका मतलब साफ है कि यदि उन्हें सपा में तवज्जो न मिली तो उनके समक्ष भाजपा में जाने का विकल्प खुला रहेगा।

अखिलेश एक बार फिर स्वयं पर लगी हार का कलंक धोना चाहते हैं। इसके लिए वह संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने का काम आरंभ करने जा रहे हैं। वह 15 अप्रैल से सदस्यता अभियान आरंभ करने जा रहे हैं। यह अभियान दो माह यानी 15 जून तक चलेगा।

इसके अलावा उन्होंने जिलों में सम्मेलन करने का भी निर्णय लिया है। इसमें पिछड़ों एवं दलितों को जोड़ने की भरसक कोशिश की जाएगी। इसे लेकर उन्होंने पार्टी के जिला व महानगर अध्यक्षों व राज्य कार्यकारिणी के पदाधिकारियों की बैठक छह अप्रैल को बुलाई है। इसके साथ ही सात अप्रैल को पार्टी के चारों प्रकोष्ठों (युवजन सभा, लोहिया वाहिनी, यूथ ब्रिगेड तथा छात्र सभा) के जिला व महानगर अध्यक्षों व राज्य कार्यकारिणी के पदाधिकारियों की बैठक बुलाई है।

अखिलेश ने इस चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ी। जमकर सभाएं की, जिसमें भीड़ भी खूब आई, लेकिन वोट नहीं मिले। पार्टी को इस चुनाव में महज 21 प्रतिशत ही वोट मिल सके। हार के बाद वह संगठन को दोबारा खड़ा कर सूबे की सत्ता हासिल करना चाहते हैं।

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