दिल के तार जुड़ेगे सीधे भगवान के साथ, अगर करेंगे प्रार्थना इन नियमों के अनुसार 

प्रार्थना के हर किसी के लिए अलग-अलग मायने हैं, किसी के लिए प्रार्थना बस भगवान के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो जाना है तो किसी के लिए किसी के समक्ष कुछ मांगने के लिए निवेदन करना है। व्याकरण कहता है कि किसी से निवेदन पूर्वक कुछ मांगा जाए तो वो प्रार्थना है, पर धर्म कहता है परम की कामना करना या पवित्र मन से अर्चन करना प्रार्थना है।

प्रार्थना करने के नियम

जब संसार के समक्ष झुक कर हम कुछ मांगते हैं तो वो प्रार्थना नहीं, सहज निवेदन होता है। लेकिन, जब यही निवेदन संसार से परे, परमात्मा को मनाने के लिए हो तो वो प्रार्थना बन जाता है। ग्रंथों मे प्रार्थना के कई अर्थ बताए गए हैं। कहीं भगवान से की गई कामना तो कभी मांगी गई मन्नत तो कही पवित्रता के साथ की गई अर्चना। लोगों के प्रार्थना करने के अलग-अलग तरीके हैं, जैसे प्रसाद चढ़ाना,धन चढ़ाना, व्रत रखना और मूर्तियों की परिक्रमा करना।

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प्रार्थना, मंत्रों का उच्चारण मात्र नहीं है, मन की आवाज है, जो परमात्मा तक पहुंचती है। जब सारी वासनाओं से उठकर जब हम सिर्फ उस परमानंद को पाने की मन से चेष्टा करते हैं, तो प्रार्थना हमारे भीतर गूंजने लगती है। अगर प्रार्थना मन से न की जाएं तो मात्र शब्द है और कुछ नहीं। प्रार्थना हृदय से निकलती है। भागवान के पास सच्चे दिल से की गई पुकार पहुंचती है बोले गए शब्द नहीं।

प्रार्थना करने के नियम भी होते हैं क्या है वो नियम, हम आपको बताते हैं…

पहला नियम

वासना से परे हो जाएं। संतों ने कहा है वासना जिसका एक नाम “ऐषणा” भी है, तीन तरह की होती है, पुत्रेष्णा, वित्तेषणा और लोकेषणा। संतान की कामना, धन की कामना और ख्याति की कामना। जब इंसान अपनी ख्वाहिशों से ऊपर उठकर परमात्मा को पाने के लिए जतन करता है, प्रार्थना करता है। वही सच्चे मन से की गई प्रार्थना ही आपको परमात्मा से मिला सकती है।

दूसरा नियम

प्रार्थना कभी भी अकेले में नहीं करनी चाहिए पर हमेशा एकांत में करनी चाहिए। अकेलापन और एकांत में एक गहरा अंतर होता है अकेलापन अवसाद को जन्म देता है, क्योंकि इंसान संसार से तो विमुख हुआ है, लेकिन परमात्मा के सम्मुख नहीं गया। एकांत का मतलब है आप आत्मा के साथ जुड़कर भगवान को नमन करते है। भगवान को सच्चे दिल से याद करते हैं। जब आत्मा के अंदर परमात्मा को पाने के लिए प्रेम उमड़ पड़े तो समझिए आपके जीवन में एकांत आ गया।

तीसरा नियम

इसमें परमात्मा से सिर्फ उसी की मांग हो। प्रार्थना सांसारिक सुखों के लिए मंदिरों में अर्जियां लगाने को नहीं कहते, जब परमात्मा से उसी को मांग लिया जाए, अपने जीवन में उसके पदार्पण की मांग हो, वो प्रार्थना है। इसलिए. अगर आप प्रार्थना में सुख मांगते हैं, तो सुख आएगा, लेकिन ईश्वर खुद को आपके जीवन में नहीं उतारेगा। जब आप परमात्मा से उसी को अपने जीवन में उतरने की मांग करेंगे तो उसके साथ सारे सुख “बाय डिफाल्ट” ही आ जाएंगे।

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