दार्जिलिंग : निर्यात को लेकर चाय उत्पादकों में आस बरकरार

दार्जिलिंगकोलकाता। पश्चिम बंगाल के उत्तरी इलाके की पहाड़ियों पर जारी अशांति के कारण गिरते निर्यात के बीच दार्जिलिंग के चाय उगाने वाले किसानों को उम्मीद है कि भौगोलिक परिस्थिति भविष्य में बाजार में उनकी साझेदारी जरूर बढ़ाएगी।

पिछले दो महीने से राज्य में लगातार बंद के कारण 9 जून से अब तक 87 बागानों में चाय उगाने और तोड़ने का काम लगभग बंद कर दिया गया है। इस कारण निर्यात के लिए बाजार में अच्छी गुणवत्ता वाली चाय उपलब्ध नहीं है। यह इस क्षेत्र की कंपनियों और दूसरे देशों में इसके खरीदारों के लिए तगड़ा झटका है।

समूचा दार्जिलिंग 8 जून से ही उबल रहा है। अलग गोरखालैंड राज्य के लिए गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन इसकी वजह है। इस आंदोलन के तहत मोर्चे ने 12 जून से राज्य में पूर्ण बंद का आह्वान किया था।

दुनिया की सबसे बड़ी चाय उत्पादक कंपनी मैकलियोड रसेल इंडिया के उपाध्यक्ष व प्रबंध निदेशक आदित्य खेतान ने आईएएनएस को बताया कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दार्जिलिग की चाय की उपलब्धता नहीं होने से इसके खरीदार इससे वंचित हर जाएंगे और तब दूसरे देश, जैसे नेपाल, श्रीलंका और केन्या की चाय बाजार में अपनी जगह बना सकती है।

साल 1984 में बने हालात का हवाला देते हुए आदित्य ने कहा कि उस दौरान सरकार ने चाय की सबसे मशहूर किस्म के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। इस कारण सुनने में आया था कि प्रतिबंध के कारण बहुत सी अंग्रेजी बाजार की खरीदार कंपनियों ने केन्या की चाय खरीदनी शुरू कर दी थी। लेकिन अब उन हालात से पार पाना सभी के लिए मुश्किल होगा, जैसा साल 1984 में रहा।

आदित्य ने आगे कहा कि अब अगर खरीदार दूसरे देश की चाय खरीद लेता है, तो दार्जिलिंग के लिए आने वाले समय में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

गुडरिक ग्रुप लिमिटेड प्रबंध निदेशक ए.एन. सिह ने खेतान का समर्थन करते हुए कहा कि लोगों का सुबह का कप कभी खाली नहीं जाता और जब उन्हें दूसरे देशों की चाय दार्जिलिंग की चाय जैसी ही लगेगी तो वे जरूर दूसरे उत्पाद को अपना सकते हैं।

सिह ने आगे कहा कि एक बार जब असली चाय, जो दार्जिलिग की है, की जगह दूसरी किस्म की चाय ले लेगी, तब इसका प्रभाव बाजार पर भी पड़ेगा जो दार्जिलिग की चाय के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

उन्होंने कहा कि इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल चाय का निर्यात जनवरी से लेकर जून तक महज 20.7 लाख किलो रहा, जबकि साल 2016 में यह 80.13 लाख किलो रहा था।

हालांकि दार्जिलिग चाय उगाने वालों को आस है कि बाजार में स्थिति सामान्य होने पर बाजार में उनकी साझेदारी जरूर बढ़ेगी, क्योंकि उनके इलाके की भौगोलिक परिस्थिति में अंतर के कारण उनकी चाय में अलग तरह का स्वाद है।

दार्जिलिग चाय एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अशोक लोहिया ने आईएएनएस को बताया कि बाजार में दार्जिलिग की चाय न होने पर खरीदार जरूर इसके दूसरे विकल्पों की तलाश करेंगे, लेकिन ऐसी हालत बहुत कम दिन रहने वाली है।

लोहिया ने बताया कि दार्जिलिग की चाय अपने आप में कुछ अलग है और इसका कोई विकल्प नहीं है। भौगोलिक परिस्थिति में अंतर होने के कारण बाजार में इसकी अलग पहचान है।

कुछ ऐसा ही डीटीए के मौजूदा अध्यक्ष विनोद मोहन ने कहा कि जीआई एक्ट के तहत दार्जिलिग की चाय पूरी तरह से सुरक्षित है और मुझे संदेह है कि कोई दूसरी चाय इसका विकल्प बन सके। बाजार में इसकी मात्रा में कमी हो सकती है, लेकिन जल्द ही ये बाजार में खरीदारी के लिए उपलब्ध होगी।

पहाड़ी इलाके में बंद के कारण दार्जिलिग चाय उगाने वाले किसानों को लगातार कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस कारण किसानों ने केंद्र सरकार से वित्तीय मदद देने की मांग की है। मोहन ने बताया कि चाय बोर्ड इस बारे में एक विशेष प्रस्ताव लाना चाहता है, जिसे तैयार किया जा रहा है। मोहन ने बताया कि इस क्षेत्र ने पहले भी कई दिक्कतें सही हैं, लेकिन उत्पादन के वक्त इतना लंबा बंद कभी नहीं देखा गया है।

मोहन ने कहा कि बंद के कारण चाय उत्पादन पर करीब 20 फीसदी तक असर पड़ा है और राजस्व में करीब 40 फीसदी तक कमी आई है। कुल मिलाकर कहा जाए, तो चाय उत्पादन क्षेत्र को करीब 350 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।

LIVE TV