जानिए भगवान विष्णु को माता तुलसी ने क्यों दिया था श्राप

तुलसीकार्तिक माह की शुक्‍ल पक्ष की देवोत्‍थान एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम के साथ रचाया जाता है. इस एकादशी को देव उठनी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि तुलसी कौन थी. अगर नहीं तो अब जान लें.

तुलसी कौन थी?

तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म में एक लड़की थी, जिसका नाम वृंदा था.  उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी. बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी. जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया. जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.

वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा- स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है. आप जब तक युद्ध में रहेंगे मैं पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूंगी.

जलंधर तो युद्ध में चले गये और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी. उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गए.

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सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता.

फिर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं.

भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा.

युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

उन्होंने पूछा- आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गए.

सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगी और प्रार्थना करने लगे तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गईं.

उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा– आज से इनका नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी के भोग स्वीकार नहीं करुंगा. तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे.

तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में होता है. देव-उठवनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है.

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