सिर्फ अनामिका से ही नहीं लगता तिलक, सबका है अलग महत्व

तिलक कोई भी शुभ काम या किसी पूजा के समय माथे पर तिलक लगाने की परम्परा पुराने समय से है. सूने माथे को मांगलिक कार्य के वक्त अशुभ माना जाता है. तिलक लगाने और लगवाने के कई फायदे होते हैं. साथ ही इनकी वजह से सफलता इंसान के कदम चूमती है.

तिलक लगाने और लगवाने से जीवन में यश वृद्धि, संतान लाभ, ज्ञान की वृद्धि, मनोबल का बराबर बरकरार रहना, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है.

शास्त्रों के नियमानुसार, बिना तिलक पाठ-पूजन, गुरु-दर्शन, देव पूजन व देव दर्शन, पूजन और अर्क व तर्पण इत्यादि को निषेध माना जाता है.

तंत्र शास्त्र में मानव शरीर का तेरह भागों पर तिलक लगाने या लगवाने विधि-विधान है.

समस्त तेरह भागों को संचालित करने का मुख्य कार्य मस्तक का होता है इसलिए माथे पर तिलक लगाने या लगवाने की शुभ होता है.

तिलक लगाते और लगवाते वक्त करें ये काम

तिलक लगाने या लगवाने में दाहिने हाथ की उंगली के साथ अन्य का भी महत्व होता है. हाथ की कनिष्ठा उंगली यानी सबसे छोटी उंगली से तिलक नहीं लगाया जाता है.

प्रथम उंगली अनामिका जो कि सूर्य ग्रह की प्रदत्त उंगली है.

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रमल शास्त्र के अनुसार, यह सुख-शांति प्रदान करने वाली साथ ही सूर्य देवता के समान तेजस्वी, ज्ञानार्थ, कांतिमय मानसिक शांति प्रदान करती है.

द्वितीय उंगली मध्यमा उंगली है, जो कि शनि ग्रह से संबंधित रहती है. यह उंगली मानव की आयु की वृद्धि प्रदान का कारक है.

तृतीय उंगली तर्जनी है, जो गुरु ग्रह बृहस्पति की प्रदत्त उंगली है. इस उंगली से तिलक लगाने से मोक्ष मिलता है यानी कि यह जीवनचक्र (आवागमन) से मुक्ति प्रदान करने वाली उंगली है.

इसी कारण मृतक व्यक्ति को तिलक इसी उंगली से किया जाता है. अंतिम तिलक का अंगूठा याचक को लगाने पर विजयश्री को दर्शाता है. जगत के पालनहार भगवान शंकर व युद्ध मैदान या किसी खास अवसर पर तिलक त्रिपुण्ड द्वारा किया जाता है.

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