जानिए पर्यटन का बड़ा केंद्र, तमिलनाडु के बारे में…

तमिलनाडु का इतिहास 2000 साल से भी पुराना है। बहुत उतार-चढ़ाव से भरा हुआ इतिहास। इसने अपनी आंखों से अनेक राजवंशों को शिखर पर चढ़ते और नीचे आते देखा है, जैसेः चेर, चोल, पल्लव और पांड्या।

जानिए पर्यटन का बड़ा केंद्र है तमिलनाडु के बारे में...

हर शासकवंश के दौरान इस राज्य ने कुछ परंपराओं, रचनाओं को अपने में समेटा और समृद्ध होता रहा। राजवंश खत्म होते रहे और नए आते रहे। इस सब ने इस राज्य की सांस्कृतिक विरासत को और मजबूत ही किया।

वैश्विक पर्यटन के नक्शे में तमिलनाडु ने कुछ देरी से ध्यान खींचा। लेकिन अब यह पर्यटन का बड़ा केंद्र है।

चेन्नई की यात्रा करें ताकि देख सकें कि समृद्ध प्राचीन इतिहास को कैसे शानदार वर्तमान का रूप दिया जा सकता है। बहुत-से लोग तमिलनाडु की यात्रा पर आते हैं ताकि यह देख सकें कि यहां के भव्य मंदिरों के हर पत्थर पर देवी-देवताओं और दंतकथाओं को कैसे जिंदा किया गया है। तमिलनाडु की यात्रा करें ताकि देख सकें कि महाबलीपुरम और कांचीपुरम में ऐसी क्या कारीगरी है कि पत्थरों से संगीत उपजता है।

तमिलनाडु में मंदिर

तमिलनाडु के भव्य मंदिर इसके शानदार इतिहास और बीती शताब्दियों की बेमिसाल स्थापत्य कला की गवाही देते हैं। चोल, पल्लव, पांड्या और नायक राजवंश ने तमिलनाडु के अनेक मंदिरों पर अपने जमाने की रचनात्मकता, स्थापत्य कला और कुशल कारीगरी की निशानी छोड़ी है।

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भगवान वेंकटेश, विनायक और शिव, मुरुगन और विष्णु से लेकर अनेक देवताओं और देवियों की अद्भुत मूर्तियां ऐतिहासिक विरासत को आगे बढ़ाती हैं। तमिलनाडु में प्रागैतिहासिक काल से लेकर 20वीं शताब्दी तक के मंदिरों में अपने-अपने काल की स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप सामने आता है।

कला, संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं को आधार बनाकर तमिलनाडु के प्राचीन शासकों ने मूर्तियों और मंदिरों की लंबी और अतुलनीय शृंखला तैयार की, जो अब हमारी महान विरासत है।

इन सभी मंदिरों की एक विशेषता सबको आपस में जोड़ती है। वह है सबमें गोपुरम का होना। सातवीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक बने सभी मंदिरों में गोपुरम जरूर होता है।

शुरुआत में ये गोपुरम ईंट-गारे से बनते थे। ये मंदिर दुनियाभर में अपने भव्य स्तंभों, विशाल आकार और रंगबिरंगे व नक्काशीदार प्रवेश द्वार के लिए जाने जाते हैं।

तमिलनाडु के समुद्री तट

तमिलनाडु के समुद्री तट राज्य के पर्यटन के प्रमुख आकर्षण हैं। इनके चलते ही यह भारत के सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है। दक्षिण भारत के सर्वश्रेष्ठ समुद्री तटों में से कुछ तमिलनाडु में ही हैं।

यह अपनी तरह के खास हैं। ये सभी बीच धूप स्नान, विश्राम और जलीय खेलों जैसी गतिविधियों के लिए आदर्श हैं। चेन्नई से कुछ ही दूरी पर स्थित कोवलोंग उन लोगों के लिए छुट्टियां मनाने का आदर्श स्थान है, जो कम समय में ज्यादा से ज्यादा आनंद चाहते हैं।

कोवलोंग बीच बेहद सुंदर जगह है, जिसके किनारे ताड़ और नारियल के पेड़ लाइन से खड़े हैं। हरियाली ओढ़े यह बीच वाटर स्पोर्ट्स का शानदार अवसर उपलब्ध कराता है ताकि पर्यटक अपनी स्पोर्टिंग क्षमता का सही अंदाजा लगा सकें।

वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान
वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान

वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान

सांस्कृतिक रूप से अति समृद्ध तमिलनाडु की एक और विशेषता यहां की विविधता भरी प्राकृतिक खूबसूरती है। वन्यजीव अभयारण्य टूर पर्यटकों को हमेशा ही लुभाते हैं। तमिलनाडु के अभयारण्य दक्षिण भारत में सर्वश्रेष्ठ माने जा सकते हैं।

प्रकृति ने तमिलनाडु को अनगिनत दर्शनीय स्थलों से नवाजा है। राज्य की सीमा 1,30,058 वर्ग किमी. तक पसरी हुई है। इसमें से 17.6 फीसदी इलाका जंगलों से घिरा है। इन जंगलों में मैदानी भाग कम ही हैं।

राज्य के अधिकतर जंगली इलाके पर्वतीय या पश्चिम घाट में हैं। इन जंगलों को भी दो तरह से विभाजित किया जा सकता है, पहला वह जो काफी नम है और दूसरा जो काफी शुष्क है।

कुछ जंगल सदाबहार पेड़ों के हैं तो कुछ पतझड़ वाले हैं। इस कारण यहां जैव विविधता का दायरा बड़ा हो जाता है, जो पर्यटकों को लुभाने में कारगर साबित होता है।

तमिलनाडु में देखने लायक स्थान

वेलनकन्नी

वेलनकन्नी बंगाल की खाड़ी में छोटा-सा टापू है। यह तमिलनाडु में नागापट्टिनम से 14 किमी. की दूरी पर है। यहां स्वास्थ्य की देवी मरियम को समर्पित भव्य गिरजाघर है। यह ईसाईयों के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।

सिर्फ देश ही नहीं, दुनियाभर से और विभिन्न जाति-धर्म के लोग यहां आते हैं। इस अति सुंदर गिरजाघर का निर्माण पुर्तगाली और भारतीय स्थापत्य कला का नमूना है। इस गिरजाघर के चमत्कार और रहस्य से जुड़ी अनेक दंतकथाएं यहां प्रचलित हैं। खासकर, रोग ठीक होने की चमत्कारिक कहानियां।

यह भी मान्यता है कि यहां आकर आप जो भी मांगते हैं, वह मुराद पूरी होती है। गिरजाघर की दीवारों पर बाइबिल से संबंधित शानदार चित्रकारी देखी जा सकती है। सैकड़ों साल पुराने इस गिरजाघर की विशेषता यह भी है कि यहां हिंदुओं की कई परंपराओं को मानने की इजाजत दी गई है। यहां आने पर आप हिंदुओं को मुंडन और कर्णछेदन के संस्कार करते देख सकते हैं।

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वेदरनयम

वेदरनयम को तिरुमरैक्काडु के नाम से भी जाना जाता है। वेदरनयम आजादी की लड़ाई के दौरान सी. राजगोपालाचारी की नमक यात्रा और गांधीजी की दांडी यात्रा का गवाह भी रहा है। यह नागापट्टिनम से 55 किमी. दूरी पर है और अपने वेदरनयमेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

कोडिकराई

कोडिकराई समुद्र किनारे बसा छोटा लेकिन लोकप्रिय शहर है। यह नागापट्टिनम से 66 किमी. और वेदरनयम से 11 किमी. दक्षिण में स्थित है। कोडिकराई अपने पॉइंट कैलीमेयर के लिए मशहूर है। यहां जंगली जानवरों और प्रवासी पक्षियों का अभयारण्य है।

कारोमंडल तट पर स्थित इस अभयारण्य में रूस, साइबेरिया, ईरान, ऑस्टेलिया और हिमालय से पक्षी आते हैं। इन पक्षियों में फ्लेमिंगो, इबिसेस, वुडकॉक, स्पूनबिल, हॉर्नबिल, बगुले, स्टॉक्र्स, विलो वार्बलर, खंजन और जंगली बतख शामिल हैं। यहां एक बहुत पुराना लाइटहाउस भी है। हिंदू मान्यता है कि कोडिकराई में भगवान राम के चिह्न हैं, जिसे रामार पाथम कहा जाता है।

तिरुनलार

तिरुनलार, कराईकल से 5 किमी. दूरी पर स्थित है। यह भगवान शनीश्वरा के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

तिरुनवेली

तमिलनाडु के तिरुनवेली या नेल्लाई का इतिहास 2000 साल से भी पुराना है। यह ताम्रपर्णी नदी के पश्चिमी छोर पर बसा है। तिरुनवेली पहले कभी पांड्या कालीन राज्य की राजधानी थी। इसका नाम कांतिमथी नेल्लैयापार शिव मंदिर पर पड़ा है।

मुंडनथुरई-कलकड वन्यजीव अभयारण्य

मुंडनथुरई-कलकड वन्यजीव अभयारण्य को 1988 में बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया। यह अंबासमुंदरम (20 किमी.) और कलकड (15 किमी.) के बीच 817 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। बाघ के अलावा यहां तेंदुआ, जंगली बिल्ली, ऊदबिलाव, भेड़िया, सियार जैसे जानवर पाए जाते हैं।

इनके अलावा यह हाथी, भालू, जंगली भैंसे, हिरण, नीलगिरि जैसे जानवरों का सुरक्षित पनाहगाह है। जहरीले सांप, मगरमच्छ, पक्षियों की अनेक प्रजातियां भी इस अभयारण्य में बड़ी संख्या में मिलती हैं।

ट्रैकिंग पर जाने के लिए यहां 24 अलग-अलग कुदरती और जोखिमभरे टैकिंग स्थल हैं। बाघ संरक्षित क्षेत्र पर्यटकों के लिए रोज सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुले रहता है। मुंडुनथुरई और थलयानई वन विश्राम गृह पर्यटकों के लिए जरूरी सुविधा उपलब्ध कराते हैं।

जिला विज्ञान केंद्र

तिरुनवेली जिला विज्ञान केंद्र वैज्ञानिक तरीके से पढ़ाई का उत्कृष्ट और आदर्श उदाहरण है। यहां विज्ञान की पढ़ाई खोज और प्रयोग पर आधारित है। इस तरह यह विज्ञान की पढ़ाई को औरों से एक कदम आगे ले जाता है।

रचनात्मक प्रतिभाओं को प्रेरित करने के लिए यहां विज्ञान से जुड़ी समुद्र पर तीन स्थायी और अर्धस्थायी गैलरी स्थापित की गई हैं।

छह एकड़ इलाके में साइंस पार्क बनाया गया है। इसमें विज्ञान के प्रति जिज्ञासा बढ़ाने के लिए आविष्कार और प्रयोग से जुड़ी प्रदर्शनी लगाई गई हैं। यहां आकर आपको कई सवालों के जवाब खुद-ब-खुद मिल जाते हैं।

इस केंद्र में प्लेटेनेरियम, एनिमेटेरयिम और ऑब्जरवेटरी की सुविधा भी है। जिला विज्ञान केंद्र जिले और आसपास चलित विज्ञान प्रदर्शनी, विज्ञान मेला, फिल्म शो, अस्थायी प्रदर्शनी, साइंस ड्रामा भी आयोजित करता है।

कूंठनकुलम पक्षी अभयारण्य

तिरुनवेली के दक्षिण में स्थित यह अभयारण्य बेहद लोकप्रिय है। यह प्रवासी पक्षियों के लिए तेजी से स्वर्ग की तरह विकसित हो रहा है। शीत ऋतु में यहां 35 प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते हैं।

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कोर्टल्लम

तिरुनवेली जिले में स्थित कोर्टल्लम का जलवायु अत्यंत सुहाना है और हेल्थ रिजॉर्ट के तौर पर मशहूर है। यह खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है। यह अपने जलप्रपात के लिए भी प्रसिद्ध है, जो आगे जाकर आठ भागों में विभाजित होता है। पर्यटक यहां आने पर इन जलप्रपातों मे जलक्रीड़ा का मोह नहीं छोड़ पाते। मान्यता है कि जलप्रपात के शीतल जल में नस, दिल और जोड़ संबंधी बीमारियां दूर करने करने के चमत्कारिक गुण हैं।

स्वामी नेल्लैयापार कांतिमथि अंबल मंदिर

स्वामी नेल्लैयापार कांतिमथि अंबल मंदिर अपनी संगीतमय आवाज के लिए प्रसिद्ध है। मणि मंडपम के इस मंदिर के स्तंभों को जब भी थोड़ा सा धक्का दिया जाता है तो घंटियों की सुरीली आवाजें आती हैं। हजारों स्तंभ वाले सोमवारा मंडपम, वसंत मंडपम और ताम्रसभा का निर्माण सातवीं शताब्दी का माना जाता है।

तिरुचिरापल्ली

तिरुचिरापल्ली शहर को मदुरै के नायकवंश ने पवित्र कावेरी नदी के किनारे बसाया था। यह 146.90 वर्ग किमी. इलाके में फैला हुआ है। इतिहास में तिरुचिरापल्ली में चोल और पल्लव वंश का शासन मिलता है। लोग इसे त्रिचि के नाम से भी पुकारते हैं। यह अपने प्राचीन स्थापत्य कला के लिए भी मशहूर है। तमिलनाडु का यह शहर कांच की रंगीन चूड़ियों, कृत्रिम हीरों, सिगार, हथकरघा से बने वस्त्रों और लकड़ी व मिट्टी के खिलौनों के लिए भी खास पहचान रखता है।

रॉक फोर्ट

रॉक फोर्ट शहर के भीतर ही 83 मीटर ऊंचे चट्टान पर ऐतिहासिक निर्माण है। यह चट्टान लाखों साल पुरानी बताई जाती है। इससे इसकी प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे पर्यटकों का सबसे बड़़ा आकर्षण इस पर बना मंदिर है। भगवान गणेश का यह मंदिर उचि पिल्लयार मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां से शहर का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। मंदिर तक जाने के लिए 344 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। इस मंदिर का निर्माण 300 ईसा पूर्व माना जाता है।

श्रीरंगम

श्रीरंगम तिरुचिरापल्ली से सात किलोमीटर दूर 600 एकड़ में फैला सुंदर-सा द्वीप है। तिरुचिरापल्ली जिले के अंतर्गत आने वाला यह स्थान भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में गिना जाता है। यह एक तरफ से कावेरी और दूसरी तरफ से कोलिदम नदियों से घिरा है। श्रीरंगम का पूरा कस्बा श्रीरंगनाथमस्वामी मंदिर की सात विशालकाय दीवारों से घिरा है। यहां 21 गोपुरम (गुंबद) हैं। इनमें से राजागोपुरम सबसे बड़ा है। यहां से मीलों दूर का दृश्य देखा जा सकता है।

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तिरुवनैकवल या जम्बूकेश्वरा मंदिर

श्रीरंगम के नजदीक भगवान शिव का यह विशाल मंदिर है। यह अपने प्राचीन और उत्कर्ष स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है। जामुन के प्राचीन पेड़ के नीचे स्थित शिवलिंग को अत्यंत पवित्र माना जाता है। माना जाता है कि देवी पार्वती ने कावेरी का थोड़ा सा जल लेकर यह शिवलिंग बनाया था और उसकी पूजा की थी।

थेनी

थेनी तमिलनाडु का दक्षिणी शहर है, जो अपने दर्शनीय स्थलों और सुहाने जलवायु के लिए जाना जाता है। यहां के बांध, जलप्रपात और हरे-भरे प्राकृतिक दृश्य इसे अन्य पर्यटन स्थलों से अलग बनाते हैं। इसकी एक और खासियत इसका शांत वातावरण है, जो इसे भीड़भाड़ वाले और हलचलयुक्त पर्यटन स्थलों के मुकाबले मनमोहक बनाता है।

वैगई बांध

111 फीट ऊंचे इस बांध में 71 फुट तक पानी भरा जाता है। यह सिल्वन से 14 किमी. दूरी पर लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट है।

मवूथु वेल्लपर मंदिर

यह मंदिर आदिपति से 20 किमी. दूर वरुषानद की हरी-भरी पहाड़ी पर स्थित है। इसके परिसर में भगवान गणेश और सप्तकनिक्स का मंदिर भी है। आदि अमावस्या और थाई अमावस्या के दिन यहां भव्य उत्सव होता है। चितिराई के महीने में यहां वार्षिक मेला भी लगता है।

देवदनपथि

देवदनपथि में मुख्य पूजा कामात्ची अम्मन मंदिर में होती है। यहां का गर्भगृह कभी नहीं खोला जाता है। पूजा सिर्फ प्रवेशद्वार की होती है। अनेक वाद्ययंत्रों के साथ शाम को होने वाली आरती के वक्त यहां का वातावरण अति सुंदर और पवित्रता के अहसास से सराबोर होता है।

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तंजावुर

तंजावुर तमिलनाडु के पूर्व में कावेरी नदी के डेल्टा पर 29.24 किमी. क्षेत्र में बसा है। इसे तंजौर के नाम से भी जाना जाता है। तंजावुर चोलवंश के शासनकाल में 10वीं से 14वीं शताब्दी के बीच सत्ता का बड़ा केंद्र था। विजयनगर, मराठा और ब्रिटिश काल में भी यह सत्ता संतुलन का केंद्र रहा था। तंजावुर अपने प्रशिक्षण केंद्रों और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यहां के हस्तशिल्प, कांसे से बनी चीजें और संगीत के सामान देशभर में मशूहर हैं।

श्री बृहदेश्वरा मंदिर

श्री बृहदेश्वरा मंदिर चोल शासनकाल की भव्य स्थापत्यकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। द्रविड़ शैली में इसका निर्माण 10वीं शताब्दी में राजराजा चोल ने कराया था। 14 मंजिला इस मंदिर की ऊंचाई 216 फुट है। मंदिर के मुख्य स्थान का प्लिंथ 45.72 वर्ग फुट और गर्भगृह 30.48 वर्ग फुट है। श्री बृहदाश्वरा मंदिर वर्गाकार मंदिर है, जिसकी 60.98 मीटर ऊंचाई है। इसके ऊपर 339.5 किलो तांबे का कलश स्थापित है। 20 टन की विशालकाय नंदी बैल की प्रतिमा मंदिर परिसर में स्थापित है। यह प्रतिमा सिर्फ एक चट्टान से बनी है। इस विराट मंदिर के भीतर 7 मीटर ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की भीतरी दीवार पर सुंदर चित्र उकेरे गए हैं। दीवारों और सीलिंग पर उत्कृष्ट मूर्तिकला भी देखी जा सकती है।

महल

ईंट की दीवारों वाला यह खूबसरत महल दो राजवंशों के शासनकाल में बना। पहले इसे नायक वंश ने सन 1550 में बनाया और बाद में इसका कुछ हिस्सा मराठों ने पूरा किया। 15 फुट ऊंची दीवारों वाला यह महल 530 एकड़ में फैला हुआ है। महल के भीतर 190 फुट का आठ मंजिला शस्त्रागार है, जो पर्यटकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करता है। महल के उत्तर में बना शस्त्रागार नायक वंश की स्थापत्यकला का श्रेष्ठ उदाहरण है। यहां एक घंटाघर भी है और इसे मराठा दरबार के समय का माना जाता है। मराठा शासन के समय की पेंटिंग भी इसमें मिलती है। महल में सरस्वती महल नाम का अलग हिस्सा है। यहां प्राचीन काल की हाथ से लिखी दुर्लभ पुस्तकें और शिल्प रखी गई हैं। आर्टगैलरी में चोलकालीन कांसे और ग्रेनाइट से बनी मूर्तियों को स्थान दिया गया है। इसी तरह संगीत महल नामक अलग हिस्सा है। यह शिल्प कौशल का उत्कृष्ट नमूना है। संगीत के लिए अलग से बनाया दरबार इस बात का सबूत है कि इतिहास में इसे कितना महत्व हासिल था। महल के बगीचे में श्वार्त्ज चर्च भी बना हुआ है।

तंजावुर चर्च

शहर के पोकरा स्टीट पर सैकड़ों साल पुराना अवर लेड ऑफ सारो चर्च है। यहां हर साल सितंबर के तीसरे सप्ताह में बड़ी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें शामिल होने हजारों लोग दूर-दूर से आते हैं। पवित्र कैथेडल चर्च, सेंट पीटर्स चर्च, फोर्ट चर्च और लुथरन चर्च की धूमधाम यहां के धार्मिक सौहार्द की गवाही दते हैं।

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पुडुकोटई

पुडुकोटई तमिलनाडु के प्रमुख पर्यटन केंद्रों में से एक है। इस शहर का इतिहास 17वीं शताब्दी के बाद का है। शहर में पुरातात्विक महत्व की अनेक स्मारक हैं, जो पुडुकोटई राज्य की याद दिलाते हैं। शहर में अनेक भव्य मंदिर, तालाब और नहरें हैं जो इस राज्य के वैभवशाली इतिहास की कहानी कहते हैं।

पुडुकोटई तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 390 किमी. दूरी पर स्थित है। यहां रेल और बस दोनों ही मार्गों से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह शहर ऐतिहासिक विरासत का गवाह है और इसके कई स्मारक यहां अब भी हैं। भव्य मंदिरों के कारण यह धार्मिक महत्व की जगहों में भी प्रमुखता से अपनी जगह बनाता है।

श्री ब्रैगधम्बल मंदिर

यह दक्षिण भारत के सबसे पुराने मंदिरों मंे से एक है। यह मंदिर भगवान गोकर्णेश्वर को समर्पित है। मंदिर की स्थापत्यकला बेहद शानदार है। सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर में समय-समय पर सुधारकार्य और नए निर्माण होते रहे हैं।

मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर

यह देवी मीनाक्षी को समर्पित मंदिर है। यह मंदिर ब्रैगधम्बल मंदिर के नजदीक है। मंदिर के पास ही पेरिया-कुलम कुंड है। पेरिया-कुलम कुंड के दक्षिणी हिस्से में भगवान गणेश की 16 रूप वाली प्रतिमाएं हैं। यह देश के सबसे भव्य मंदिरों में गिना जाता है।

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