भारत ने लिखी सुनहरे कल की गाथा, इसरो का सबसे भारी रॉकेट ‘फैट बॉय’ लांच

जीएसएलवी एमके-III रॉकेटचेन्‍नई। नई पीढ़ी के हैवी लॉन्‍च व्‍हीकल जीएसएलवी एमके-III रॉकेट ‘फैट ब्‍वॉय’ को भारत की अंतरीक्ष्‍ा एजेंसी इंडियन स्‍पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) ने आज सफलता पूर्वक लांच किया। करीब तीन दशकों की कड़ी मेहनत और कुछ असफलताओं के बाद इसरो ने अपना सबसे बड़ा सैटेलाइट लॉन्‍च किया। ये रॉकेट अपने साथ कम्‍यूनिकेशन सैटेलाइट जीसैट-19 ले गया है। यह सैटेलाइट देश भर में डाटा कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगा।

श्रीहरिकोटा से इस सैटेलाइट की लॉन्चिंग का काउंटडाउन रविवार को दोपहर 3:58 मिनट पर शुरू हो गया था। इस रॉकेट को आज श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्‍पेस सेंटर से शाम 5:28 मिनट पर सफलतापूर्वक लॉन्‍च किया। हालांकि, यह पूरी तरह से नया लॉन्‍च व्‍हीकल है इसलिए नए सिस्‍टम से जुड़ी चुनौतियां और जटिलताएं भी होना लाजमी था। ऐसे में इसरो के लिए एक चुनौतीपूर्ण मिशन बना हुआ था।

200 हाथियों के बराबर वजन

इसरो के रॉकेट फैट ब्‍वॉय के जरिए 3,136 किलोग्राम के कम्‍यूनिकेशन सैटेलाइट जीसैट-19 को अंतरिक्ष की कक्षा में भेजा गया है। इस रॉकेट के तीन प्रपोल्‍शन, सॉलिड एस200, लिक्विड एल110 कोर स्‍टेज और सबसे ताकतवर क्रायोजनिक अपर स्‍टेज को भारत में ही विकसित किया गया है।

फैट ब्‍वॉय से जुड़ी खास बातें

640 टन का पूर्णतः स्वदेशी फैट ब्वॉय भारत का सबसे वजनी रॉकेट है।

इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे।

रॉकेट की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है।

04 टन तक के उपग्रह लॉन्च करने में सक्षम।

अपनी पहली उड़ान में 3,136 किलोग्राम के सेटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचायेगा।

इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है।

 

ऐसे करता है काम

पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं।

दूसरे चरण में विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है।

ये रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं।

अब बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती है।

अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है।

फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है।

अब क्रायोजेनिक इंजन अलग हो जाता है।

संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है।

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