जाने माने शायर डॉ. बशीर बद्र की याददाश्त गुम , पत्नी तक को नहीं पहचान पा रहे

भोपाल ” मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ चलती है, कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता…’’ के शायर इन दिनो खुद ही दरो-दीवार को ताकने लगे हैं।

कोरोना महामारी ने सभी की जिन्दगी में बदलाव सा दिया है। जिसके चलते लोग कद्रदान बशीर का हाल जानने फोन कर रहे हैं।

दुनिया भर में मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र (85) इन दिनो तन्हाईयों का शिकार हो गए है। कभी महफिल की शान माने जाने वाले रूमानी शायर पर इन दिनों परिजनों की पाबंदियां लगी हुई है। मतलब कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए उनका लोगों से मिलना जुलना बंद हो गया है। लेकिन उनकी सेहत के फिक्रमंद प्रशंसक उन्हें फोन करके लगातार हाल चाल ले लिया करते है। वहीं इसी बीच कई घर पहुंचने वाले प्रशंसक उन्हें देखने की जिद करते हैं तो उनकी पत्नी डॉ. राहत बद्र कोरोना संक्रमण का हवाला देकर विनम्रता से मना कर देती हैं।


इस कड़ी में बीती दोपहर में उनसे कोई मिलने आया। राहत ने उसे पहचान पूछी तो वह बोला- मुसाफिर हूं बशीर साहब से मिलना है।

आपको बता दे ये कोई पहला ऐसा मुसाफिर नहीं था जो शायरी के रास्ते उनके घर तक पहुंचा। ऐसे ही तमाम प्रशंसक रोजाना आया करते थे।

डॉक्टर शायर साहब के स्वास्थ्य में सुधार के लिए हर जतन करने में लगे हुए है, लेकिन उम्र का तकाजा भी कई दुश्वारियों के साथ खड़ा है। दरअसल बशीर बद्र डिमेंशिया नामक बीमारी से घिरे हैं। याददाश्त जा चुकी है। जिंदगी की आम बातों को सरल, सहज और सलीके से कहने का हुनर रखने वाले इस बुजुर्ग शायर के घर अब खामोशी है।


सन्नाटे को तोड़ती डॉक्टर साहब की खिलखिलाहट को परिजन सुनने के लिए बेताब हैं। बेटा तैयब और पत्नी राहत बद्र उनकी यादों को ताजा करने उनकी गजलें और शेर पढ़कर उन्हे सुनाया करते हैं, लेकिन डॉ. बद्र का चेहरा एकदम शांत रहता है। हां, कभी किसी मुशायरे की कोई याद आने पर वे बेसाख्ता इरशाद-इरशाद कह पड़ते हैं, लेकिन ऐसा रोज नहीं होता। राहत के मुताबिक पंजाबी, बंगाली, नेपाली और रशियन भाषा में उनकी शायरी का अनुवाद करने का निर्णय कुछ संस्थाओं ने लिया है। इसके लिए उन्होंने अपनी रजामंदी दे दी है। वैसे डॉ. बद्र के हिंदी में एक दर्जन से अधिक गजल संग्रह, जबकि उर्दू में 7 गजल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।


‘उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, ना जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए’’ जैसे शेर से डॉ. बद्र ने उर्दू गजल को नया लहजा दिया। रिवायती शायरी से कभी नाता नहीं रखा। उर्दू शायरी में नए प्रयोग भी किए। जदीद लफ्जों की जगह आसान शब्दों का प्रयोग करके शायरी को नई शक्ल दी। उनकी शायरी में मोहब्बत, गुरबत, जिंदगी के कई रंग दिखाई देते हैं। अपने तरजुमे और हादसों को भी शेरों की शक्ल दी। मसलन-लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में। वहीं जिंदगी के सफर को करीब से देखते हुए उन्होंने कहा- करीब मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में, हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं, उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में, मैं हर लम्हे में सदियां देखता हूं।

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