जानिए शिल्प कला की अद्भुत धरोहर के बारे में…

अपर्णा मिश्र देश के करीब 26 मंदिरों का परिदर्शन कर चुकी हैं। अपर्णा मूल रुप से लखनऊ की रहने वाली हैं। उन्होंने लखनऊ से शिक्षा दीक्षा पूरी की। इतिहास की विद्यार्थी रही अपर्णा का अपनी सहेलियों के साथ मंदिरों का परिदर्शन रास आता है।

जानिए शिल्प कला की अद्भुत धरोहर के बारे में...
अपर्णा मिश्र फिलहाल बेंगलुरु में रहती है। वैसे भी दक्षिण भारत मंदिरों का क्षेत्र रहा है। अपर्णा मिश्र का कहना है कि आज जरुरत है कि लोगों को पौराणिक इतिहास की जानकारी होनी चाहिए। अपर्णा मिश्र इस बार अपनी कुछ महिला मित्रों के साथ लेपाक्षी गई थीं। वहां के अनुभवों को उन्होंने साझा किया है।

वैसे तो भारत में कई विख्यात मंदिर है जो पौराणिक कथाओं से जुड़े हुए हैं। इन मंदिरों के बारे में अनेक किंवदंतियां है।

करीब 25 विख्यात मंदिरों का परिदर्शन करने वाले अपर्णा मिश्र, पूनम पांडेय आदि बेंगलुरु से 140 किलोमीटर स्थित लेपाक्षी गांव स्थित वीरभद्र मंदिर देखने निकलीं।

लेपाक्षी का यह मंदिर रामायण एवं महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर का निर्माण करने वाले शिल्पकारों ने पत्थरों को तरास कर मूर्तियां बनाकर यह सिद्ध कर दिया कि पत्थर भी गीत गाते हैं और बोलते हैं। इस समूह के सभी पर्यटकों के लिए के लिए यह एक नया अनुभव था।

लेपाक्षी का यह मंदिर

लेपाक्षी गांव की पौराणिक मान्यता है कि यह वह जगह है जहां रावण के साथ युद्ध करने के दौरान जटायु गिद्ध गिर पड़ा था। वह बुरी तरह घायल हो गया था। इसी बीच भगवान राम सीता को खोजते हुए पहुंचे तब उनकी नजर घायल पक्षी पर पड़ी। राम ने कहा ले पक्षी उठो पक्षी।  इसी से इस जगह का नाम लेपाक्षी पड़ा। लेपाक्षी तेलगू शब्द है।

5 वीं शताब्दी में बने अपने कलात्मक लेपाक्षी मंदिर के लिए जाना जाने वाला यह मंदिर विशाल है। इस मंदिर में शिव की महिमा के बारे में भी किंवदंती है।

यहां भगवान शिव,भगवान विष्णु एवं भगवान वीरभद्र के मंदिर है।

मंदिरों की शिल्पकारी कमाल की है।

इस मंदिर को देखकर कोई भी अभिभूत हो जाते हैं।

हैंगिग पिलर के नाम से विख्यात यह मंदिर 70 खंभे पर खड़ा है लेकिन एक खंभा जमीन को नहीं छूता।

कहते हैं कि किसी ने इस खंभे को हिला दिया जो आज भी झूलता रहता है।

मंदिर की भव्यता देखकर मन मोहित हो जाता है।

इस मंदिर से कपड़ा निकलता है तो समृद्धि बढ़ती है।

वस्तुत: इस मंदिर का निर्माण 1583 में विजयनगर के राजा के यहां काम करने वाले दो भाइयों ने करवाया था।

कहते हैं लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित वीरभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि आगस्त ने कराया था।

देश में इससे विशाल नाग लिंग प्रतिमा कहीं नहीं है। ग्रेनाइट से बने इस लिंग के ऊपर भगवान शिव के लिंग के ऊपर सात फन वाला नाग फन बैठाए बैठा है।कहते हैं यहां माता सीता के पैरों के निशान हैं। भगवान राम के पद चिन्ह भी यहां हैं। इसके अतिरिक्त लेपाक्षी मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति एवं मंदिर निर्माण के बाद बचे चूने के पत्थर भी है जिसकी श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। अपर्णा एवं पूनम पांडेय एवं उनके साथ गयी महिलाएं कांजीवरम की एक तरह की साड़ियां पहन कर मंदिर परिसर गयी थी। भगवान गणेश की मूर्ति की शिल्पकला एवं आकार अद्भुत है। पिलरों में शिल्पकला को आज भी अपनाया जाता है। जब हम ताजमहल को बनाने वाले शिल्पकारों की चर्चा करते हैं तो हमें लेपाक्षी के मंदिरों के शिल्पकारों को भी याद रखना चाहिए। इस तरह के ढ़ांचे का निर्माण आसान नहीं था।

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मंदिर की शिल्पकला तो अद्भुत है लेकिन धर्म एवं विज्ञान के लिए भी पहेली है यह मंदिर।

पिछले साढ़े चार सौ सालों से यह मंदिर अबूझ पहेली बना हुआ है। यही वजह है कि आज भी लोग इस पहेली को जानना चाहते हैं।

समृद्ध संस्कृति के लिए विख्यात लेपाक्षी एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है।

यहां आने का सबसे उपयुक्त समय है अक्टूबर से फरवरी तक।  इस दौरान यहां का मौसम सुहावना रहता है।  रात के समय तो मौसम ठंडा रहता है।

लेपाक्षी मंदिर परिसर में नाट्य एवं कल्याण मंडप में की गयी कलाकृतियां पर्यटकों को आकर्षित करती है।

वीरभद्र मंदिर की अपनी अलग खूबसूरती है। यहां वीरभद्र स्वामी की पूजा होती है यह मंदिर अपनी बेहतर शिल्पकला एवं प्राचीन इतिहास के लिए विख्यात है।

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